Friday, 26 June 2020
घर वापसी कब और कैसे ???
Monday, 15 June 2020
क्या भगवा आतंकियों को साम्प्रदायिक नफरत का जिम्मेदार ठहराना उचित है ?
Saturday, 6 June 2020
ईश्वर का असली ग्रंथ कौन सा है ?
इतिहास के झरोखे से शूरवीरो की गाथा
इस्लाम पर लगाये गए 12 आक्षेपों के अत्तर
Sunday, 17 May 2020
आर्यो,हिन्दुओ का कुरान की आयतो पर आपत्ति का जवाब
।।काफ़िर और नास्तिक।।
आपने फिर भी शान्तिमय तरीके से अपना सन्देश सुनाने और फैलाने का क्रम जारी रखा। आपके समकालीन लोगों ने आपके मिशन के बढ़ते प्रचार और प्रसार को देखकर आप व आपके साथियों को सताना व यातनाएं देनी प्रारम्भ कर दी। आपका बहिष्कार किया गया। भूखा-प्यासा रहने पर विवश किया गया। आप ताइफ़ (शहर) चले गए ताकि वहां के लोगों को अपना सन्देश सुनाकर अपना समर्थक बनाए, मगर वहाँ भी आपके साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया।
आप मक्का छोड़कर मदीना (शहर) चले गए, मगर इस्लाम के कट्टर विरोधियों ने वहां भी आपका पीछा नहीं छोड़ा। जो लोग आपकी शिक्षाओं को समझकर आपके साथ आना चाहते थे, उनको रोकने के लिए उनपर असहनीय जुल्मों-सितम ढाए गए।
आइए कुछ उदहारण देखते हैं-
"म्लेच्छवाचश्चार्यवाचः सर्वे ते दस्यवः स्मृताः।।" (मनुस्मृति 10:45)"म्लेच्छ देश स्तवतः परः।" (मनुस्मृति 2:23)"भावार्थ: जो आर्यवत से भिन्न देश है वे दस्यु (दुष्ट) और म्लेच्छ देश कहलाते है।"-पृष्ठ 264:8 समुल्लास।
Saturday, 17 September 2016
कुछ गैर मुस्लिम भाई लोग पूछते हैं कि अल्लाह का अस्तित्व वास्तव मे है भी या नहीं, मुस्लिम भाई ये कैसे सिद्ध करेंगे ??
अस्तित्व वास्तव मे है भी या
नहीं, मुस्लिम भाई ये कैसे सिद्ध करेंगे ??
पहली बात तो मै यही कहना चाहता हूँ कि अल्लाह कोई अलग ईश्वर नहीं बल्कि विश्व के हर धर्म के मूल मे बताए गए एक और निराकार ईश्वर का ही नाम है …तो विश्व का जो भी व्यक्ति एक और निराकारईश्वर मे विश्वास करता है वो वास्तव मे अल्लाह पर ही विश्वास करता है! हां, ये बात अलग है कि वो अल्लाह का हक न अदा करता
हो !!
ध्यान देने की बात है कि कुरान का अवतरण एक ऐसे महापुरुष पर हुआ जो न तो पढ़े लिखे थे, न ही पेशे से कोई वैज्ञानिक या चिकित्सक थे इसके बावजूद कुरान मे ऐसी ऐसी विज्ञान की बातें आज से 1400 साल पहले लिख दी गई हैं,जिनको पढ़ के आज भी आधुनिक विज्ञान का ज्ञान रखने वाले अपने दांतो तले अंगुलियां दबा लेते हैं ।
आप ही सोचिए ब्रह्माण्ड के जन्म की बिग बैंग थ्योरी,चन्द्रमा का प्रकाश उसका अपना नही,धरती का आकार वास्तव मे गोल है, पेड़ पौधों मे भी जीवन है, मानव शिशु के जन्म की प्रक्रिया जैसी विज्ञान की जिन बातों का ज्ञान मनुष्य को अब से महज़ डेढ़ दो सौ वर्ष पूर्व ही हो सका है ।
इसके अतिरिक्त आप ये भी जानते होंगे कि विश्व मे ऐसी बहुत सी अनोखी बातें हुई हैं जिनके होने का क्या कारण था, विज्ञान इस पर मौन रहा है … और हार कर दुनिया के
वैज्ञानिकों को मानना ही पड़ा है कि कोई न कोई ऐसी सुपर नेचुरल पावर है , जिसे विज्ञान के द्वारा समझा नहीं जा सकता, और जो विज्ञान से परे होने वाली ऐसी
घटनाओं का कारण है, यही सुपर नेचुरल पावर है अल्लाह और अल्लाह ने कुरान ए पाक मे ऐसी कई चमत्कारी घटनाओं का वर्णन किया है जिनपर विज्ञान मौन है,
को यही सलाह है कि वो दुनिया मे फैले चमत्कारों जैसे बरमूडा त्रिकोण, फिरऔन का अक्षय शरीर आदि के उत्तर ढूंढ कर लाने की कोशिश करें… साथ ही ये भी पता करने की कोशिश करें कि पवित्र कुरान मे विज्ञान की वो बातें कैसे दर्ज कर ली गई थीं जिनका ज्ञान 1400 वर्ष पहले किसी भी मनुष्य को नही था और यदि आप इन सवालों का कोई उत्तर न ढूंढ पाएं तो मान लीजिए कि इन सब बातों के पीछे अल्लाह ही कारण है मुझे तो अपने अल्लाह के अस्तित्व पर पूरी तरह विश्वास है क्योंकि अल्लाह ने कुरान मे वादा किया है कि
“मुझसे दुआ मांगो (एकेश्वर मे पूरा विश्वास रखकर), मै
तुम्हारी दुआ कुबूल करूंगा”
तो मैंने जब भी अल्लाह से पूरे विश्वास के साथ दुआ मांगी मेरी दुआ अक्षरश कुबूल हुई है …. जिन लोगों का भी विश्वास अल्लाह/निराकार ईश्वर के विषय मे डांवाडोल रहता है वो पहले कुरान के प्रमाणो पर शोध कर के ये जान लें कि अल्लाह का अस्तित्व है
फिर केवल एक अल्लाह मे विश्वास करते हुए दुआ मांगे तो जब उनकी दुआएं कुबूल हो जाएंगी तो उन्हें ये विश्वास भी हो जाएगा कि केवल अल्लाह ही पूज्यप्रभू है॥
Friday, 16 September 2016
तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हे..???
क्या इस्लाम एक बुरा धर्म हैं!!!
जब से इस्लाम धर्म दुनिया में आया हैं , तब से ही इस्लाम को बुरा कहने वाले भी पैदा हो गये हैं।
इस्लाम धर्म से चिढने वालों की हर वक़्त यही कोशिश रहती हैं कि किसी न किसी तरीके से इस्लाम को बदनाम किया जाए।
और वे इस्लाम धर्म के प्रति अलग अलग प्रकार की भ्रामक बातें फैलाते रहते हैं।आखिरकार वे इस्लाम से चिढते क्यों हैं? जबकि
1-इस्लाम कहता है कि हमें एक ईश्वर को पुजना चाहिए जो हम सबका मालिक हैं। जिसका कोई रंग हैं ना कोई रूप हैं। जिसे किसी ने नहीं बनाया पर उसने हर चीज़ को बनाया। अगर ये बात बुरी हैं तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
2-इस्लाम कहता है कि तुम्हारी मेहनत की कमाई से 2.5% गरीबों को देना हर हालत में जरूरी हैं। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
3- इस्लाम कहता है कि तुम लोगों की मदद करोगे तो खुदा तुम्हारी मदद करेंगा। और जो कुछ भी तुम अपने लिए चाहते हो वही सबके लिए भी चाहो तो ही एक सच्चे मुसलमान बन सकते हो। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
4-इस्लाम कहता है कि तुम एक महीने तक सुबह से शाम भूखे और प्यासे रहो ताकि तुम्हें एहसास हो सकें कि भूख और प्यास क्या होती हैं। अगर ऐसी बात सिखाना गलत हैं तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
5-इस्लाम कहता है कि तुम्हारे घर बेटी पैदा हो तो दुखी मत होना क्योंकि बेटियाँ तो खुदा की रहमत (इनाम) हैं। और जो व्यक्ति अपनी मेहनत की कमाई से अपनी बेटी की परवरिश करें और उसकी अच्छे घर में शादी कराएँ तो वो जन्नत (स्वर्ग) में जायेगा। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
6-इस्लाम कहता है कि सबसे अच्छा आदमी वो हैं जो औरतों के साथ सबसे अच्छा सुलूक करता हैं। अगर ये बुरी बात है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
7- इस्लाम कहता है कि विधवाएं मनहूस नहीं होती इन्हें भी एक बेहतर जीवन जीने का पूरा अधिकार है। इसलिए विधवाओ और उनके बच्चों को अपनाओ। अगर विधवाओ को अधिकार देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
8- इस्लाम कहता है कि ऐ मुसलमानों जब नमाज पढ़ो तो एक दूसरे से कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़े रहो क्योंकि तुम सब आपस मे बराबर हो तुम में से कोई छोटा या बड़ा नहीं हैं। समानता की शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
9-इस्लाम कहता है कि ऐ मुसलमानों अपने पड़ोसियों से अच्छा बर्ताव करो चाहे तुम उन्हें जानते हो या न जानते हो। और खुद खाने से पहले अपने पड़ोसी को खाना खिलाओ। पड़ोसी की मदद करना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
10-इस्लाम कहता है कि शराब और जुआ सारी बुराइयों की जड़ है। इनसे अपने आप को दूर रखे। अगर समाज में मौजूद बुराइयों को समाप्त करना बुरी बात हैं तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
11- इस्लाम कहता है कि मजदूर का पसीना सूखने से पहले पहले उसकी मजदूरी दे दो। और कभी किसी गरीब और अनाथ की बद्दुआ न लेना नहीं तो बरबाद हो जाओगे। अगर ये बुरी बात है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
12-इस्लाम कहता है कि अपने आप को जलन (ईर्ष्या) से दूर रखो क्योंकि ये तुम्हारे (नेकियों) अच्छे कामों को ऐसे बरबाद कर देती हैं जैसे दीमक लकड़ी को। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
13-इस्लाम कहता है कि बुजुर्ग व्यक्ति का सम्मान करना मानों खुदा का सम्मान करने जैसा हैं। अगर तुम जन्नत (स्वर्ग) में जाना चाहते हो तो अपने मा बाप को हर हाल में खुश रखो। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
14- इस्लाम कहता है कि सबसे बड़ा जिहाद ये है कि कोई व्यक्ति अपनी इच्छाओं को मारे और अपने आप से लड़े। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
15-इस्लाम कहता है कि अगर खुश रहना चाहते हो तो किसी अमीर को मत देखो बल्कि गरीब को देखो तो खुश रहोगे। और लोगों से अच्छा बर्ताव करना सबसे बड़ा पुण्य का काम हैं। अगर ये बुरी बात है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
16- इस्लाम कहता है कि हमेशा नैतिकता और सच्चाई के रास्ते पर चलो। बोलों तो सच बोलों, वादा करो तो निभाओ और कभी किसी का दिल मत दुखाओ। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
17- इस्लाम कहता है कि सबसे बुरी दावत वह हैं जिसमें अमीरों को तो बुलाया जाता हैं परन्तु गरीबों को नहीं बुलाया जाता हैं।
18-पानी को ज़रूरत तक ही इस्तेमाल(उपयोग) करना। और बिना वजह पानी का दुरूपयोग करना गुनाह(पाप)। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
19-रास्ते में अगर कोई तक़लीफ़ देने वाली वस्तु(पत्थर,कील,) होतो उसे किनारे करना जिससे दुसरो को पीड़ा न हो। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा धर्म हैं।
20-महिलाओ को आँख उठा कर देखना गुनाह(पाप) समझना। ऐसी शिक्षा देना गलत है तो फिर इस्लाम एक बुरा घर्म है ।
Thursday, 15 September 2016
नियोग औरतो पर अत्याचार और उनकी इज्जत की लूट बलत्कार
क्या वेदकाल से ही नपुसकँ है आर्य राजा ~
आर्यो ब्रहाचार्य का भडाँफोड ~
नियोग या सिर्फ भोग ~
अगर हम धार्मिक ग्रथोँ का अध्ययन करते है तो वेदकाल से
ही आर्य राजा नपुसँक दिखते है और ब्रहाचार्य का
चोला पहने ऋषी भोगी दिखते है ।
ब्रहाचार्य तो सिर्फ एक चौला था
लेकिन ब्रहाचार्य का पालन किसी ने भी
नहीँ किया कोई किसी राजा कि पत्नि के साथ
नियोग कर रहा है । कोई किसी के साथ ।
और वहीँ आर्य राजाओ को देखा जाए तो वो बेचारे
नपुसकँ दिखते धार्मिक ग्रथोँ मे
राजा दशरत 4 पत्नि पुत्र चारो नियोग से । राजा
जनक सिता जी उनकी पुत्रि
नहीँ थी बल्कि खेत मे मिली
थी जिसका जिकर स्वामी जी ने
अपने अमर ग्रथँ सत्यार्थ मे किया है ।
महाभारत कि बात करे तो एक भी विवाह से सतानँ
उत्तपन नहीँ हुई जहाँ पाडवोँ कि बात है वो कुतिँ
कुवारी थी तभी नियोग कर लिया
था ।
ध्रतराष्ट वो भी नियोग से हुए । उनकी
शादी हुई गाधारीँ के साथ पर पुत्र
नहीँ हुए तभ एक से नियोग किया फिर आगे लिखा है
वो 2 वर्ष
तक गर्भवती रही फिर 100 पुत्रोँ का
जन्म एक ही बार की
डिलीवरी मेँ ।
आगे भिष्म
जिन्हे बडा बहुत बडा ब्रहाचारी कहा जाता है वो
भी नियोगी थे । ब्रहाचार्य का पालन
किसी ने नहीँ किया ।
ब्रहाचार्य आर्यो का चोला था जैसे हाथी के दातँ खाने के
और दिखाने
के और होते है ।
आज आपको ऐसे आर्य मिल जाएगेँ जो नियोग को आपात कालिन
स्थिती का उपाय बताते है । की नियोग तो
पती के मर जाने पर है ।
आर्यो के दावोँ का भडाफोँड उनके ही स्वामी
जी के अगर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश से
सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 4 पृष्ट 102 पर यह भी
लिखा है कि जिस स्त्री का पति जीवित है
वह दूर देश में रोजगार के लिए गया हो तो उसकी
स्त्री तीन वर्ष तक बाट (प्रतिक्षा)
देखकर किसी अन्य पुरूष से नियोग
( कुकर्म ) कर के सतानँ कर ले, जब पति घर आये तो नियोग किए
पति को त्याग दे तथा उस गैर संतान का गोत्र भी विवाहित
पति वाला ही
माना जाएगा।
समिक्षा ~ यहाँ साफ बताया गया है कि अगर किसी
औरत का पत्ति जिवित है और अगर वो बाहर गया है रोजगार के
लिए तो पत्नि को चाहिए कि किसी गैर मर्द से नियोग
(कुकरम ,
बिना विवाह के शारिरिक सबधँ अर्थात जिना गुनाह ) कर ले
इतने गटीया तो अग्रेजोँ के भी नियम
नहीँ जितने आर्यो के है ।
(4). जिस पुरूष की पत्नी अप्रिय बोलने
वाली हो तो उस पुरूष को चाहिए कि किसी
अन्य स्त्री से नियोग कर ले तथा रहे
अपनी पत्नी के
साथ ही।
समिक्षा ~ अगर किसी कि पत्नी अप्रिय
बोले तो उसे छोडकर किसी दुसरी से नियोग
( कुकरम ) कर ले और रहे उसके साथ ।
कुछ जाहिल नयुज चैनल वाले तलाक " का मजाक उडाते है और
इस्लाम को बदनाम करते है । देख लो जाहिलोँ
अगर इस्लाम का कानुन तलाक " ना होता तो ये होता औरतो के साथ
"बताइए भला क्या कोई अप्रिय बोलने कि वजह से हि
किसी दुसरी
औरत के साथ सबधँ क्यु बनाये जब वो उसके साथ रह सकता है
तो फिर उसे उसका हक कयो नहीँ दे सकता क्यो
किसी दुसरी औरत से सबधँ बनाये ।
इसी प्रकार जो पुरूष अत्यन्त दुःखदायक हो तो
उसकी स्त्री भी दूसरे पुरूष से
नियोग से कर
के उसी विवाहित पति के दायभागी संतान कर
लेवे।
समिक्षा ~ हद है जाहिलियत की अगर
किसी का पत्ति दुखदायक है तो उसकी
पत्रनी उसे छोडकर किसी दुसरे पुरुष से
नियोग ( कुकरम) क्यो करे ।
इतना ही नहीँ सत्यार्थ प्रकाश मे
स्वामी जी ने ये तक फरमाया है
की अगर कीसी कि
पत्नी गर्भवती हो और पति से ना रहा
जाए तो किसी दुसरी औरत से नियोग कर ले
"
स्वामी जी ने आर्यो औरतो को 11 मर्दो
और मर्दो को 11 औरतोँ तक नियोग (कुकरम) करने
कि छुट दी है ।
समिक्षा ~ इन बातो के बाद नियोग के
आपातकालिन होने का तो सवाल ही नहीँ
उठता और दुसरी तरफ ब्रहाचार्य के दावे का
भी भडाँफोड हो जाता है । कयोकिँ अगर
पतनी के गभवर्ती होने तक
ही अगर ब्रहाचार्य का पालन नहीँ किया
जाए तो कैसा ब्रहाचार्य ।
ये ब्रहाचार्य सिर्फ दिखावा है जैसे हाथी के दातँ खाने
के और दिखाने के और होते है ।
अब आर्यो के ही धार्मिक ग्रथोँ से नियोग (कुकरम ,
बिना विवाह शारिरिक सबधँ ,
गुनाह ) के प्रमाण देखीये ~
रामायण/ महाभारत/स्मृति में नियोग के प्रमाण
व्यासजी का काशिराज की पुत्री
अम्बालिका से नियोग- महाभारत आदि पर्व अ 106/6
वन में बारिचर ने युधिस्टर से कहा- में
तेरा धर्म नामक पिता- उत्पन्न करने वाला जनक हूँ- महाभारत वन
पर्व 314/6
उस राजा बलि ने पुन: ऋषि को प्रसन्न किया और अपनी
भार्या सुदेष्णा को उसके पास फिर भेजा- महाभारत आदि पर्व अ
104 कोई गुणवान ब्राह्मण धन देकर बुलाया जाये जो
विचित्र वीर्य की स्त्रियों में संतान उत्पन्न
करे- महाभारत आदि पर्व 104/2
उत्तम देवर से आपातकाल में पुरुष पुत्र की इच्छा
करते हैं-
महाभारत आदि पर्व 120/26
परशुराम द्वारा लोक के क्षत्रिय रहित होने पर वेदज्ञ ब्राह्मणों
ने क्षत्रानियों में संतान उत्पन्न की- महाभारत आदि
पर्व 103/10
पांडु कुंती से- हे कल्याणी अब तू
किसी बड़े ब्राह्मण से संतान उत्पन्न करने का
प्रयत्न कर- महाभारत
आदि पर्व 120/28
सूर्ष ने कुंती से कहा- तू
मुझसे भय छोड़कर प्रसंग कर- महाभारत आदि
पर्व 111/13
किसी कुलीन ब्राह्मण को
बुलाकर पत्नी का नियोग करा दो, इनमे कोई
दोष नहीं हैं-
सूर्य ने कुंती से कहा-भय मत करो संग करो-
महाभारत अ। पर्व 111/13
वह तू केसरी का पुत्र क्षेत्रज नियोग से उत्पन्न बड़ा
पराकर्मी – वाल्मीकि रामायण किष कांड
66/28
मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को उत्पन्न किया –
वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15
जिसका पति मर गया हैं-वह 6 महीने बाद पिता व भाई
नियोग करा दे- वशिष्ट स्मृति 17/486
किन्ही का मत हैं की देवर को छोड़कर
अन्य से नियोग न करे- गौतम स्मृति 18
जिसका पति विदेश गया हो तो वह नियोग कर ले- नारद स्मृति श्लोक
98/99/100
देवर विधवा से नियोग करे- मनु स्मृति 9/62
आपातकाल में नियोग भी गौण हैं- मनु 9/58
नियोग संतान के लोभ के लिए ही किया जाना चाहिए-
ब्राह्मण सर्वस्व पृष्ट 233 यदि राजा वृद्ध
हो गया या बीमार रहता हो तो अपने मातृकुल तथा
किसी अन्य गुणवान सामंत से अपनी भार्या
में नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न करा ले- कौटिलीय शास्त्र
1/17/52
जब कई भाई संग रहते हो और उनमें से एक निपुत्र मर जाये तो
उसकी स्त्री का ब्याह पर
गोत्री से न किया जाये-उसके पति का भाई उसके पास
जाकर उसे अपनी स्त्री कर ले –
व्यवस्था विवरण 25/5-10
यदि देवर नियोग से इंकार करे तो भावज उसके मुह पर थूके और
जूते उसके पाव से उतारे- व्यवस्था 25/2
आर्य राजा नपुसकँ थे और ब्रहाचार्य कहलाने वाले भोगी थे ।
Tuesday, 29 December 2015
कुरान को आसमानी किताब क्यों कहा जाता है?
यह बात सही है कि कुरआन में कुछ अच्छी बातें लिखी हैं लेकिन यह तो हर धर्म की किताबों में लिखी होती हैं और कोई भी समझदार इंसान लिख सकता है, फिर हम कुरआन को अल्लाह की किताब क्यों माने, क्या सबूत है कि कुरान अल्लाह की तरफ से ही है ?
जवाब - मैं इस सवाल का जवाब कई पहलुओं से दूँगा, क्यों कि कुरान ने अलग पहलुओं से अल्लाह के कलाम (वाणी) होने के सबूत दिए हैं, अगर आप घहराई से बिना पक्षपात के विचार करेंगें तो मैं आप को यकीन दिलाता हूँ कि कोई भी ज़रा भी शक बाकि नहीं रहेगा.
(1) पहली बात, अगर आप अरब का मुहम्मद (ﷺ) के टाइम का इतिहास पढेंगे जो इतिहास की बड़ी किताबों में आप को आसानी से मिल जाएगा, तोआप पाएँगे कि मुहम्मद (ﷺ) बिलकुल बिलकुल पढना लिखना नहीं जानते थे और तो और वो अपना नाम भी लिखना नहीं जानते थे और ना ही उन्हें शाइरी वगैरह का कोई शौक था,लेकिन अरब के लोग शाइरी के बादशाह थे वो अपना पूरा इतिहास और अपनी कई पीढयों के नाम भी शाइरी में ही बयान कर दिया करते थे,आप जानते हैं कि किसी भी भाषा या शब्दों का सबसे अच्छा इस्तिमाल एक शायर (कवि) ही करता सकता है उस ज़माने में अरब में एकसे बढ़कर एक शायर मौजूद थे, हर साल वहां शाइरी की बहुत बड़ी प्रतियोगिता होती थी जिस में दूर दूर के लोग भाग लेते थे, जीतने वाले शायर का शेर काबा की दीवार पर लगाया जाता था और उस शायर को सब सजदा किया करते थे
अब ऐसे माहौल में मुहम्मद (ﷺ) अचानक एक कलाम पेश करते हैं और दावा करते हैं कि यह कलाम अल्लाह की तरफ से है और अगर तुम्हे इसमें शक है तो तुम भी ऐसा कलाम बना कर दिखाओ (सूरेह बक्राह-23,24).
आप तसव्वुर कीजये एक तरफ कोई एक अनपढ़ आदमी है जिसे सब जानते हैं कि यह हम में 40 साल रहा है इसने कहीं से तालीम हासिलनहीं की और दूसरी तरफ इक़बाल, ग़ालिब, मीर और हाली जैसे महान शायर मौजूद हैं जो अपनी शानदार शाइरी के लिए मशहूर हैं, वो अनपढ़ आदमी इन शायरों को चैलेंज कर कह रहा है कि तुम सब मिलकर भी मेरे मुकाबले का कलाम पेश नहीं कर सकते, ये बड़े बड़े शायरउस आदमी से दुश्मनी रखते हैं उसके खिलाफ़ जंग लड़ते हैं उसकी दुश्मनी में अपनी जाने और माल खर्च करते हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि वे सब मिलकर भी एक पेज भी ऐसा नहीं लिख सके जिसको वे कुरआन के मुकाबले में दुनियां के सामने पेश करके कह सकें कि देखो हमने मुहम्मद (ﷺ) को झूटा साबित कर दिया है.
इससे साफ़ ज़ाहिर है कि यह अज़ीम कलाम किसी अज़ीम हस्ती ही का हो सकता है कोई इंसान तो अपने लिखे हुए कलाम के बारे में ऐसा दावा नहीं कर सकता.
(2) जो लोग अरबी भाषा का थोड़ा भी ज्ञान रखते हैं वो यह हकीक़त अच्छी तरह जानते हैं कि कुरआन ने अरबी भाषा को नई ऊँचाइयाँ दी हैं यानि कुरआन में बहुत हाई स्टेंडर्ड की अरबी शैली का इस्तिमाल किया गया है इतने स्टेंडर्ड की अरबी की कोईकिताब इसके बाद कभी नहीं लिखी जा सकी, आज भी जो कोई कुरआन की शैली के 10% करीब की अरबी बोले या लिखे उसे दुनियां में हाई स्टेंडर्ड अरबी बोलने वाला माना जाता है, इतने हाई स्टेंडर्ड की अरबी कोई आम इंसान लिखे यह नामुमकिन है.इससे भी यह बात साफ़ ज़ाहिर होती है कि कुरआन कोई आम किताब नहीं है.
(3) कुरआन में अल्लाह तआला ने दावा किया है कि इस में कोई ज़रा भी बदलाव नहीं कर सकता क्यों कि हम इसकी हिफाज़त करते हैं(सूरेह हिज्र-9)
इस बात का भी इतिहास गवाह है कि कुरआन में आज तक कोई एक नुक्ते का भी बदलाव नहीं हुआ, वरना यूं तो बाइबल भी अल्लाह की किताब है लेकिन सब जानते हैं कि उसके कितने ही नए एडिशन कुछ ना कुछ बदलाव के साथ आते रहते हैं, लेकिनकुरआन 1450 सालों से ऐसा ही है.इससे भी पता चलता है कि कुरआन कोई आम किताब नहीं है.
(4) आप जानते हैं कि कुरान करीब 600 पेज की एक बड़ी और मोटी किताब है इसके बावजूद यह लाखो नहीं बल्कि करोड़ों लोगोंको ज़ुबानी याद है, और इसका कुछ ना कुछ हिस्सा तो हर मुस्लमान को याद होता है, यह रुतबा दुनियां की और किसी भी किताब को हासिल नहीं है, आप सोच कर देखें किसी छोटी सी किताब को भी वर्ड-टू-वर्ड ज़ुबानी याद करना कितना मुश्किल काम है और अगर वो कोई 600 पेज की मोटी किताब हो तब तो यह काम बेहद मुश्किल हो जाता है और इतना ही नहीं फिर अगर वो किताब किसी ऐसी भाषामें हो जो आप को समझ ही नहीं आती तो ???
लेकिन कुरान को अल्लाह ने कुछ ऐसा बनाया है जो वो चमत्कारी ढंग से बड़ों का तो क्या कहना 12,13, साल का बच्चा पूरा कुरआन ज़ुबानी याद किया हुआ आप को मुसलमानों की हर गली या मोहल्ले में आसानी से मिल जाएगा यह तो आम है लेकिन ऐसे बच्चों की भी बहुत बड़ी तादाद है जिनको पूरा कुरआन याद है और उनकी उमर सिर्फ 6,7, और 8 साल है, अगर आप गौर करें तो यह कोई मामूली बात नहीं कि 600 पेज की एक मोटी किताब जो ऐसी भाषा में लिखी है जो गैर अरब को समझ नहीं आती और उसको छोटे छोटेबच्चे पूरा ज़ुबानी याद कर लेते हैं.इससे भी पता चलता है कि कुरआन कोई आम किताब नहीं है.
(5) कुरआन का एक कमाल यह भी है कि हर किताब तो एक खास तबके के लिए लिखि जाती है यानि लिखने वाला पहले यह फैसला कर लेताहै की मैं किस तरह के लोगों के लिए यह किताब लिख रहा हूँ कोई आम आदमी की समझ के अनुसार होती है और कोई बड़े एजुकेटिड लोगों को ध्यान में रख कर लिखी जाती है तो कोई ख़ास ज़माने और देश को ध्यान में रख कर लिखी जाती है, लेकिन कुरआन जितना अनपढ़ के लिखे हिदायत है उतना ही बहुत पढे लिखे के लिए भी हिदायत है,
जैसे इसे पढ़कर आम लोग के ईमान लाने की बेशुमार मिसालें हैं ऐसे ही बहुत पढ़े लिखे एजुकेटिड लोगों के इस को पढ़ कर ईमान लाने की भी मिसालों की कमी नहीं यानि चाहे कोई मर्द हो या औरत, भारत से हो अफ्रीका से, अमीर घर से हो या गरीब घर से, बूढ़ा हो या नौजवान, बहुत पढ़ा लिखा हो या कम पढ़ा लिखा हो यह किताब सब को समझ में भी आती है और सब की रहनुमाई (मार्गदर्शन) भी करती है, इसी लिए कुरआन में अल्लाह ने फ़रमाया है कि- हमने कुरआन को नसीहत के लिए आसान बना दिया है, तो क्या कोई है नसीहत चाहने करने वाला ?(सूरेह क़मर-32)
और बहुत ज्यादा गहराई में जा कर बात समझने वालों के लिए तो यह समुन्द्र के जैसा है,आज तक अलग अलग आलिमों की तरफ से कुरआन की हजारों बड़ी बड़ी तफसीरें (Commentary) लिखी जा चुकी हैं लेकिन हमेशा लिखने वाले कहते हैं कि हमने तो कुछ भी नहीं लिखा अभी तो बहुत ज्यादा लिखना बाकि है.यानि एक तरफ तो कुरआन इतना सादा है कि एक आम रेढ़ी चलाने वाला भी इससे फाएदा हासिल करता है और दूसरी तरफ गहराई इतनी कि कोई बड़े से बड़ा आलिम भी यह दावा नहीं करता कि मैंने पूरा कुरआन समझ लिया है अब और ज्यादा कुरान में कुछ नहीं है बल्कि वोयह ही कहता है कि जितना समझा है उससे कहीं ज्यादा समझना बाकि है.इससे भी ज़ाहिर होता है कि यह कोई आम किताब नहीं है.
(6) एक अहम पहलू यह भी है कि जब हम किसी बड़े कवि या लेखक को पढ़ते हैं तो हमेशा हम देखते हैं कि वक़्त से साथ साथ उस लेखक के ज्ञान, भाषा शैली और विचारों में विकास हुआ है यह ना मुमकिन है कि एक लेखक लम्बे समय तक कुछ लिखता हो और उसके लेखन में विकास न हुआ हो, इसी विचारों के विकास की वजह से एक ही लेखक की शुरू ज़िन्दगी की लिखी हुई बातों और आखिर ज़िन्दगीकी लिखी हुई बातों में विरोधाभास मिलना एक आम बात है, आप चाहे इकबाल को पढ़लें या ग़ालिब को या विलियम शेक्सपियर को या किसी भी लेखक को जिसने सालों लिखा हो आप को उसके लेखन में विकास और विरोधाभास साफ नज़र आएगा,
क्यों कि हर इंसान के विचारों में विकास होता रहता है.लेकिन कुरआन 23 साल के लम्बे अरसे में लिखे जाने के बावजूद उसमे आप को कोई विकास नज़र नहीं आ सकता, और ना ही उसमे विरोधाभास पाया जाता है जिस मापदंड के विचार, भाषा शैली, ज्ञान और दावे उसमे शुरू में हैं आखिर तक वैसे ही हैं, यह किसी इंसान के वश की बात नहीं यह अल्लाह ही है जिसके ज्ञान में विकास नहीं होता क्यों कि वो पहले से ही सब जनता है, इसी लिए कुरआन में लिखा है कि- अगर यह कुरआन अल्लाह के बजाए किसी और की ओर से होता तो वे इसके भीतर बहुत विरोधाभास पाते (सूरेह निसा-82) इससे साफ़ ज़ाहिर है कि कुरआन किसी इंसान का लिखा हुआ नहीं है.
(7) अब कुछ कुरआन की की हुई भविष्यवाणयों पर नज़र डालये जो अब इतिहास बन चुकी हैं- कुरआन के नाज़िल होते वक़्त दुनियाँ में दो बहुत बड़ी सलतनतें थी एक रूमी सलतनत जो ईसाइयों की थी उसका बादशाह हरकुल (हरक्युलिस) था दूसरी ईरानी सलतनत जो मजूसयों (आग को पूजने वालों) की थी और उसका बादशाह खुसरो था, ईरानियों ने रूमयों को बुरी तरह हरा दिया था और रूमयों के फिर से उठने के कोई आसार नहीं थे, मक्के के मुशरिक इस पर खुशियाँ मना रहे थे और मुसलमानों से कहते थे कि देखो ईरान के आगके पुजारी विजय पा रहे हैं और रोमन पैगम्बरों के मानने वाले ईसाई हार पर हार खाते चले जा रहे हैं, इसी तरह हम भी अरब के बुत परस्त तुम्हें और तुम्हारे धर्म को मिटा कर रख देंगे.
कुरआन ने ऐसे हालात में भविष्यवाणी की कि रूमी 10 साल के अन्दर फिरसे विजय पाएगें (सूरेह रूम), इसे सुनकर मक्का के मुशरिक मुसलमानों की मज़ाक उड़ाने लगे कि देखो मुस्लमान पागल हो गए हैं जो ऐसी बात कह रहे हैं जो मुमकिन ही नहीं है,लेकिन दुनियां ने देख लिया कि कुरआन की यह नामुमकिन भविष्यवाणी 9 साल के भीतर पूरी हुई, इतिहासकार भी हरक्युलिस की जीत को किसी चमत्कार से कम नहीं मानते.इससे भी पता चलता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.
(8) इतिहास से ही आप को पता चल सकता है कि एक वक़्त ऐसा भी था जब मुसलमानों की तादाद उँगलियों पर गिनने लायक थी और जो थे उनकी भी हालत गरीबी में ऐसी थी कि उनके पास अपनी हिफाज़त करने के लिए तलवारें भी ना के बराबर थी, जबकि उनके दुश्मन अनगिनत थे और बड़े बड़े सरदार थे जो मुसलमानों और इस्लाम को ज़मीन से मिटाने के लिए बेताब थे और देखने वाले समझ रहे थे कि अब मुसलमानों का बचना नामुमकिन है, ऐसे हालत में कुरआन ने दो भविष्यवाणी की एक मक्का शहर मुसलमान फ़तेह करेंगे और दूसरी लोग फ़ौज की फ़ौज इस्लाम क़ुबूल करेंगे (सूरेह नस्र).
जिस वक़्त यह दोनों भविष्यवाणी हुई उस वक़्त इनसे नामुमकिन बात और कोई नहीं थी लेकिन कुछ ही अरसे बाद दुनियां ने ये दोनों भविष्यवाणी भी पूरी होती हुई देखली थी.इससे भी अंदाज़ा होता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.
(9) मक्का में मुहम्मद (ﷺ) का एक पड़ोसी था वो कुरैश का सरदार था उसका नाम अबू लहब था वो और उस की बीवी अल्लाह के रसूल के बहुतबड़े दुश्मन थे वो हर तरह से उन्हें सताता था, उसकी मौत से करीब 10 साल पहले कुरआन ने भविष्यवाणी की थी कि वो कभी ईमाननहीं लाएगा और उसकी मौत अज़ाब से होगी (सूरेह लहब), वो इस्लाम दुश्मनी में कुछ भी कर सकता था अगर वो ईमान क़ुबूल करलेता जैसे उसकी बेटी और दोनों बेटों ने किया तो कुरआन की भविष्यवाणी गलत साबित हो जाती लेकिन वो ऐसा ना कर सका और उसकी मौत भीबहुत बुरी बीमारी से हुई जिससे उस का शरीर सड़ गया था उसके परिवार के लोगों ने भी उसके शरीर को हाथ नहीं लगाया.इससे भी पता चलता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.
(10) कुरआन के नाजिल होने से बहुत पहले अल्लाह के एक पैगम्बर मूसा (अलैहिस्सलाम) के ज़माने में मिस्र में फिरौन नामीएक राजा को जो ज़बरदस्ती खुद को खुदा कहलवाता था अल्लाह ने अज़ाब के तौर पर दरया में डुबा कर मार दिया था उसका ज़िक्र ओल्ड टेस्टीमेंट में भी है,कुरआन में उसके बारे में भविष्यवाणी हुई थी कि उसकी लाश को अल्लाह एक दिन ज़ाहिर करेगा ताकि बाद में आने वालों लोगों के लिए वो इबरत की निशानी बने (सूरेह यूनुस-92).
ध्यान रहे उसके अज़ाब से मरने के बारे में तो ओल्ड टेस्टीमेंट में ज़िक्र है लेकिन उसकी लाश पानी में गर्क नहीं होगी ऐसा कुरआन के अलावा किसी भी किताब में नहीं लिखा था,सन 1898 में चमत्कारी तौर पर उसके मरने के हजारों साल बाद उसकी लाश 'नील' नामी दरया के पास से मिली, जो ममी ना होनेके बावजूद भी हजारों साल तक गर्क नहीं हुई थी उसे आज भी मिस्र के म्युज्यम में देखा जा सकता है, उसकी लाश की पहचान और मिलने का विवरण 'डॉ. एलीड स्मिथ' की किताब ''royal mummies'' में देखा जा सकता है.
अगर किसी इंसान ने हकीकत से आंखें बंद करने की कसम ही ना खा रखी हो तो यह एक बहुत बड़ा सबूत है कि कुरआन अल्लाह की किताब है.इनके अलावा भी कुरआन और सही हदीसों में बहुत सी भविष्यवाणयां हैं जो पूरी हुई हैं लेकिन वो इल्मी तरह की हैं इसलिए मैं उन्हें स्किप कर रहा हूँ, लेकिन एक बात साबित शुदा है कि अल्लाह और उसके रसूल की की हुई एक भी भविष्यवानि आज तक गलत साबित नहीं हुई है.
(11) अगर आप किसी लेखक से कहें की एक छोटी सी कहानी लिखो और उसमे फला फला शब्द इतनी इतनी बार आना चाहिए और फला फला शब्द नहीं आना चाहिए और फला फला शब्द जितनी बार पहले वाक्य में इस्तिमाल होगा दुसरे में भी इतनी ही बार होना चाहिए जैसी 5,6 कंडीशन आप लगादें तो आप अंदाज़ा कर सकते हैं कि लेखक पहले तो इन शर्तों के साथ कुछ लिख ही नहीं पाएगा और अगर लिख भी दिया तो वो जितना टूटा फूटा होगा आप खुद समझ सकते हैं.
लेकिन कुरआन में अपनी बहतरीन शैली के साथ साथ गणित के पहलु से भी अनगिनत चमत्कार मौजूद हैं, मैं समझाने के लिए सिर्फ एक मिसाल देता हूँ, कुरआन मैं कहा गया है कि अल्लाह की नज़र में हज़रत ईसा (अ) की मिसाल हज़रत आदम (अ) के जैसी है (सूरेह आलेइमरान-59) यानि कि ईसा (अ) को बिना बाप के पैदा किया और आदम (अ) को बिना माँ बाप के पैदा किया,मायने के लिहाज़ से यह बात बिलकुल साफ़ है लेकिन अगर आप पूरे कुरआन में शब्द ''ईसा'' तलाश करें तो वो 25 बार पूरे कुरआन में आया है, और शब्द ''आदम'' भी पूरे कुरआन में 25 बार ही आया है, तो गिनती के लिहाज़ से भी यह दोनों एक जैसे ही हैं,अगर कुरआन में यह चीज़ें दो चार बार होती तो माना जाता कि यह इत्तिफाक से है, लेकिन यह गणित के चमत्कार तो कुरआन में अनगिनत हैं कुरआन में यह खोज अभी नई है और जारी है इसलिए इस टॉपिक पर अभी कुछ खास किताबें नहीं लिखी जा सकी, कुरआन में गणित के ऐसे चमत्कारों जो समझने के लिए आप हमारे ब्लॉग में कई पोस्ट हे और इस लिंक की विडियो देखें -http://www.youtube.com/watch?v=Y96KuhAQBMI
इस नई खोज से भी पता चलता है कि कुरआन इंसानी दिमाग की उपज नहीं है.
(12) कुरआन साइन्स की किताब नहीं है, उसका मकसद लोगों को साइन्स के बारे में बताना नहीं है लेकिन फिर भी ऐसी बहुत सीबातें कुरआन में हैं जिनकी पुष्टि आज साइन्स से होती है,मिसाल के तौर पर कुरआन में अल्लाह ने फ़रमाया - हमने हर जीवित चीज़ को पानी से पैदा किया है (सूरेह अंबिया-30)
आज से पहले तो शायद लोग इस बात को ऐसे नहीं समझते होंगे जैसे अब हम साइन्स की मदद से इस आयत को समझ सकते हैं,एक जगह अल्लाह ने कुरआन में अजीब सी कसम खाई - कसम है सितारों के मरने या टूटने के मौक़े की, और अगर तुम जान लो तो यह बहुत बड़ी कसम है (सूरेह वकिअह-75) आज से पहले लोग इस आयत को भी ऐसे नहीं समझ सकते थे जिस तरह आज हम जानते हैं कि सितारा मरने के बाद एक बेहद ताकतवर ब्लैक होल में बदल जाता है, तो वाकई यह बहुत बड़ी कसम है,इसी तरह और बहुत सी आयतें हैं जिनमे अंतरिक्ष, जल चक्र, पहाड़ों के बारे में और माँ के पेट में बच्चे के बन्ने के स्टैप वगैरा के बारे में बताया गया है, जो अब साइंस की मदद से हमें सही सही समझमे आती हैं, इस टॉपिक को ज्यादा जानने के लिए यह(Bible, Quran and Science, Author Dr. Maurice Bucaille) नामी किताब पढ़ें,किसी को धोड़ी देर के लिए कोई गलत फहमी हो जाए तो और बात है
वरना आज तक साइन्स ने जितनी भी तक्की की है वो कभी कुरआन के खिलाफ़ साबित नहीं हो सकी और उल्टा साइन्स ने कुरआन को सच ही साबित किया है और बहुतसी आयातों को समझने में मददगार साबित हुआ है.इससे भी साबित होता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.
(13) कुरआन को आप यह ना समझें कि इसमें कोई अलग ही बातें बताई गई हैं, कुरआन अपने से पहली आसमानी किताबों का विरोधी नहीं बल्कि वो तो उनकी बार बार पुष्टि करता है, बस वो यह कहता है की धर्म के ठेकेदारों ने उन किताबों में अपनी अकल से छेड़ छाड़ करके उनमे काफी कुछ गलत चीज़े मिलादी है और लोगों से कहते हैं कि यह ईश्वर की तरफ से है, वो भी अल्लाह ही था जिसने पहले वे किताबें नाजिल की थी और यह भी अल्लाह ही है जिसने कुरआन नाजिल किया है.
इसके अलावा भी बहुत से पहलु हैं जिनसे कुरआन अल्लाह का कलाम साबित होता है लेकिन सबको एक पोस्ट में लिख देना मेरे लिए मुमकिन नहीं है, लेकिन एक ऐसे इंसान के लिए जो बिना पक्षपात के बातों को देखता और समझता है उसके लिए ये सबूत काफी हैं किकुरआन अल्लाह का कलाम है, और जिसने पक्षपात का चश्मा लगाया हुआ है उसके लिए हज़ार सुबूत भी कम हैं, वरना कुरआन में 6500 से ज्यादा आयतें हैं और ''आयत'' का मतलब ही ''निशानी'' होता है.
हमारी दावत (पुकार) इसके सिवा कुछ भी नहीं कि हम मुहब्बत और हमदर्दी के साथ ज़मीन पर रहने वाले इंसानों को उनके असल रब का यह पैगाम पहुंचा दें जो हमारे पास उनकी अमानत है, हम आप से इसके बदले में कुछ नहीं चाहते हमारा बदला तो रब के जुम्मे है,और कुरआन की दावत इसके सिवा कुछ नहीं कि वो इंसानों को उस दिन से खबरदार कर दे जो अब करीब आ लगा है, जिस दिन यह दुनियां ख़त्म हो जाएगी और इंसान और उनके रब के बीच का पर्दा उठ जाएगा और इंसान बंद आखों से भी वो सब कुछ देख लेगा जिसे आज वो खुली आखों से भी देखना नहीं चाहता, जिस दिन हर ज़ालिम को उसके हर ज़ुल्म की सज़ा मिल कर रहेगी और हर नेक को उसकी हर नेकी काबदला मिलेगा जिस दिन फैसले हमारी कमज़ोर अदालते नहीं बल्कि इंसानों का रब खुद करेगा.
कुरआन लोगों को बताना चाहता है कि तुम अच्छी बुरी ज़िन्दगी जी कर मिट्टी हो जाने के लिए पैदा नहीं किये गए हो बल्कि तुम्हारे अज़ीम रब ने एक अज़ीम स्कीम एक अज़ीम प्लान के तहत तुमको पैदा किया, अब जो चाहे अपने होने का मकसद इससे जान ले और जो ना चाहे ना जाने.अब जिसके जी में आए वो ही पाए रौशनी,हम ने तो दिल जलाके सरे आम रख दिया..