Monday 16 March 2015

ईसलाम और बेबुनियाद आरोप@आखिर कमी किसमे है? अंक १.१

आखिर कमी किसमे है?
आजकल हमने एक अजीब बात देखी है,कि जब हमारे समाजी दोस्त और सनातनी हिन्दु इसलाम पर इल्जाम लगते हुए यह महसुस करने लगे की यह मुसलीम तो हमारी तरफ आते ही नही तब लोगो मे गलतफहमी का बीज बोने के इरादे से आजकल दोनो ही पुराने जमाने की मिलती जुलती बातो मे वेद और हिन्दु धर्म घुसते देखे जा सकते है!
गौरतलब है कि' हजरत इब्रहीम को वेदिक धर्म से और अरब को वैदिक धर्म से जोडा जाने की कोशिश की जा रही है!
अच्छा इनकी ये अटकले मात्र इनकी किताबों से ही है!जबकी तौरात से संबंधित किताबों मे आदम से ईसा तक की इतिहास मौजुद है!
अब हम आपसे २ अहम सवाल पुछते है ! (१)धर्म किसकी ओर से ?
क्या आपका विश्वास है कि धर्म ईश्वर की ओर से है!(२) आपकी नज़र मे धर्म क्या है? धर्म यानी धारण यानी आपनाने काबिल !
तो जनाब जब धर्म अपनाने काबिल शय है तो यह मुमकिन है! कि वह एक खास वक्त तक ही अपनाने काबिल रहे तो क्या उसे परमेश्वर की ओर से माना जाये या धर्म हर दौर मे रहना जरुरी है!
अब जहाँ तक ईसलाम का सवाल है वह तो आदम से मुहम्मद तक नबी की चैन को इसलाम कहता है!
अब यह जो बिचमें वेदिक धर्म लुप्त रहा है हमे शक है कि जिनकी तरफ ये ईशारा कर रहे है कि वेदिक धर्म अरब आदी मे भी था कही इन्होने तो वहाँ से कॉपी नही किया.......
जब धर्म और धर्म के मानने वाले अल्लाह की राह को अप्रचलित करे उसमे मिलावट करे तब धर्म मे सफाई ही नबी के जरिये होती है!
दुसरी और हमारे मुर्ती पुजक भाई यह बताये की क्या कोई किसी मुर्ती से दुआ प्रार्थना करे तो वह मुर्ती सुनती है या भगवान ,और उस मुर्ती को वहाँ से हटा दो तब क्या मुर्ती न होने पर भगवान न सुन पायेंगे तब मुर्ती की मौजगी से क्या फायदा........चलो आप कहोगे की पापी पुरुष का मन चंचल होता है तो ध्यान लगाने के लिये मुर्ती चाहिये?
अच्छा हमारा एक सवाल है...क्या जो मुर्ती आप बनाते हो वह परमेश्वर की हुबहु नकल है, तो जो आदमी मुर्ती रुप मे परमेश्वर की कल्पना करने जो मुर्ती परमेश्वर का रुप नही परमेश्वर पर ध्यान लगाने मे कामयाब हो जाये तो सिधे यह क्यो नही कर सकता की मैं उस परमेश्वर से मांगता हुँ जिसका रुप नही पर उसकी दयालुता पर मे विश्वस रखता हुँ
अच्छा हम दुनिया मे किसी की मुहब्बत पाने के लिये क्या करते है !और इसके लिये कि हम उसके खास हो जाये ...ज़ाहिर सी बात है उसकी पसंद का काम करके तो अजीब बात है हमारे मुर्ती पुजक भाई ईश्वर के करीब होने के लिये उसकी बात मानने के बजाये मुर्ती की पुजा क्यों करते है....इस संसार मे वह करो जो परमेश्वर का हुक्म है...जिसका रुप देखा तक नही कल्पना से उसकी मुर्ती बनाकर ध्यान करने से क्या लाभ ....तब क्या जो मुर्ती पुजा नही करते उनसे आपकी नफरत सही है!
अच्छा जो लोग हमारे भाई हिन्दु बनते है....क्या खुदा उनसे यह बात नही पुछेगा की जिस चिज़ की जरुरत न थी मैं उसकी यानी मुर्ती पुजा की इजाजत दुँगा....आज दुनिया मे गरीबी है! तो हिन्दु बन गये कल हश्र मे क्या कहेंगै ज्याद से ज्यादा १००साल जी सकते हो...बाद क्या होगा....
अछा एक और बात की इनके नज़दीक पुराना होना अपनाने की दलील है! पर धर्म का अर्थ है जिस तरीके को अपनाया जाये और जिस पर चलकर मौक्ष यानी नजात मिले...यह वैदिक और हिन्दु दोनो ही मानते है! और क्या मौक्ष की राह के लिये जरुरी नही की हर दौर मे लोगो तक हर एक तक पहुँचे...अब जबकी इसलाम तौरात इंजील और नबीयो के जरिये हर दौर में मौजुद रहा मगर रहा महदुद तो वेद और पुराण कही यह तो संकेत नही की ये पिछले नबीयो के सहीफे थे...अब क्या धर्म उक्त परिभाषा पर कौन सटीक बैठता है...फिर कभी परहाना ताज कभी किसी और गुमराह के बहकावे मे आकर गलत चुनाव कर लिया मर कर गलती सुधारने वापस नही आओगे......
...............लेख नासिर अहम, मेरी मेमन, मुजम्मील चौधरी,नंदिता, विकास,शाहरुख,जाहिद राणा,और तमाम ईत्तेहादुल मुस्लीम के भाई बहनों की और से.....

Monday 2 March 2015

क्या मुर्ती पुजा हक है?

क्या लॉजिकल है मुर्तीपुजा ? और आखिर हम क्या चाहते है ईश्वर से..
आम तौर पर कोई इस बात से इंकार नही कर सकता कि ईश्वर हर जगह सुनता है!और हर बात को जानता है..तब वह मदबूर तो नही कि उस तक अपनी भावना पहुँचाने को मुर्ती बनानी पडे आपकी भावना तो वह पहले ही जानता है!
तब यह कहा जायेकि हमे मुर्ती आदी प्रतीक की जरुरत है तब क्या ईश्वर को याद रखने के लिये ,तो हम अपनो को भी बिना मुरत के याद करते है, तो परमेश्वर को याद करने मे मुश्किल कहां,
तो ध्यान जमाने को जरुरत है! मतलब यह की वसवसों या बुरे ख्यालों से बचने के लिये , तब तो घुर कर देखें और दिल मे यह ख्याल भी रखा जाये की यह ईश्वर का रुप है..पर तब भोग और मुर्ती से मांगने कि जरुरत क्या है! और वसवसों से बचने के लिये भी तो उसकी मुरत के सामने भी उसके ईश्वर का प्रतीक होने यकीन रखना पडेगा, क्योकि सबसे बडा बुरा ख्याल तो यही है की वह मुरत जो ईश्वर है बोलता नही,हिलता नही, जब बात विश्वास की ही है तब मुर्ती पुजा की जरुरत है...आखिर लोग बेहतरिन धर्म छोड कर मुर्ती पुजा मे पडे ...
नन्दिता और नासिर कुरैशी...chandrawatn@radiffmail.com

इस्लाम पर बे बुनियाद ईल्जाम

आजकल इसलाम की बढती लोकप्रियता को रोकने के लिये अजीब से आरोप लगाये जाते है! कुछ वक्त पहले जेहाद को उछाला गया जब सारी दुनिया मे जेहाद और आतंकवाद की सच्चाई की इसलाम आतंकवाद के खिलाफ है सामने आ गई तो नये तरीके से ईसलाम के खिलाफ बाते खढी जा रही है!
...कोई काबा को शिवालय बताता है..जबकी मुसलमान न काबा की पुजा करते न ही उसे मोहतरम मानते है...बल्की काबा धरती के बिच है इस कारण वहाँ मस्जिद पहली तामीर हुई ..काबा के अंदर कुछ नही..
२:- जिन उंचे मिनारों को शिवलिंग बताया जाता है वे कुछ ही वक्त पहले शैतान को कंकरी मारने की सन्नत निभाने की सुविधा  के लिये तामीर की गई
३:- मुसलमान काबा के ऊपर चढ कर आजान देते रहे है..क्या कोई अपने बुतो पर चढेगा..यानी मुर्तीयो पर ..
४:- अगर यह मान भी लिया जाये कि वेदिक धर्म इब्राहम तक फैला था तो क्या धर्म एक समय विशेष तक सिमित होता है..या हमेशा के लिये..यही बात आपके गप्प को सबित करती है कि वेद कहाँ तक थे..
५:- अगर बेबिलोनिया की गुफाओ में विष्णु के चित्र है जबकी ऐसा है हि नही..तब भी इब्रहीम तो आये ही थे मुर्ती पुजा को खत्म करने तो आप भी मुर्ती पुजा छोडो..
६:- इसलाम मे नयी बात क्या आगई..आप यह बताये आपकी पुरानी कौन सी कायम रही जब धर्म खत्म होता है ! नया अपडेट तो आयेगा ही और जब कोई ईश्वर की ओर से धर्म स्थापना करे तो वह ना काम नही होता..अब इस कसौटी पर आप स्वयं को परखो आप लोग कहाँ हो...
७:- जबकी ईब्राहीम के समय मे खुद उनके पुत्र नबी थे तब कहां रहा एक किताब का सिद्धांत जबकी आप भी अपनी किताबो से बात साबित करने के फिराक मे हो जबकी साफ तौर पर तौरात मे इब्राही के समय मे लुत के नबी होने का भी जिक्र है..तो कुरान सही है की हर दौर मे एक पैगांबर भेजा गया..
८:- बात जो भी हो जनाब अगर सब एक जगह से ही है तब जब आपने हिदायत का कोई फर्ज नही निभाया तब कुरान तो आना ही था..आपका सवाल यह है जो सवाल आपने कुरान पर उठाये तो इस पत्रिका मे हम उन्ही का जवाब देंगे..
                     नासिर अहमद.....nasirahmedq@gmail.com