कुछ बुद्धिजीवी प्रकृति पूजा और मूर्ति पूजा को हड़प्पा सभ्यता से जोड़कर देखते है जो कि इतिहासकारो की नजर में अमूमन 5000 वर्ष पुरानी है और इस आधार पर अपने आपको सही साबित करने की कोशिश करते है, यैसे लोगों से मै कहना चाहूगा कि मूर्ति पूजा तो हड़प्पा से भी सैकड़ो वर्ष पुरानी है ,लेकिन इस दलील के आधार पर इसे सही समझने की कोशिश करना और सच जानने की कोशिश न करना सिवाय हठ के और कुछ नहीं ,
ब्रह्मांड के निर्माता ने प्रथम मनुष्य आदम अलैहिस्सलाम को पैदा करने के बाद उनकी पीठ से महा-प्रलय के दिन तक जन्म लेने वाली सन्तति निकाली और चींटियों के समान उनके सामने फैला कर उन्हें स्वयं उनके ऊपर गवाह बनाया कि क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूं। बोले: क्यों नहीं, हम गवाह हैं। तब अल्लाह ने कहा कि तुम महा-प्रलय के दिन कहीं यह न कहने लगो कि “हमें तो इसकी सूचना ही न थी।” या यह कहने लगो कि बहुदेववाद तो हमारे पूर्वजों ने किया था, हमने तो मात्र उनका अनुसरण किया था क्या तू उनके पापों की सज़ा हमें दे रहा है ? ( क़ुरआन 7:172)
मानो आदम की संतान ने शरीर में ढलने से पूर्व यह वादा किया था कि मरते दम तक तेरे घर से जुड़े रहेंगे, फिर जब आदम के पुत्र को धरती पर बसाया गया तो उसे अधिसूचित कर दिया गया था कि शैतान तुम्हारा दुश्मन है वह तुम्हें अपने घर से निकालने का अंथक प्रयास करेगा लेकिन उसके छल में मत आना।
प्रथम इंसान आदम की संतान दस शताब्दी तक वादे पर कायम रही और अपने ही घर में निवास किए रही जिस में उसे उसके निर्माता ने बसाया था, लेकिन दस शताब्दियां बितने के बाद शैतान आदम की संतान के पास आया और उन्हें उकसाया कि तुम्हारे पाँच बड़े महापुरुष (वद्द, सुआअ, यग़ूस, यऊक़ और नस्र) थे, जो इस दुनिया से जा चुके हैं उनकी याद ताजा रखने के लिए उनकी प्रतिमा बनाकर अपनी सभाओं में रखा करो ताकि उन्हें अपने लिए आदर्श बना सको।
आदम अलैहिस्सलाम के बेटों को यह बात अच्छी लगी और उन्होंने उन पांचों की प्रतिमा बनाकर अपनी सभाओं में स्थापित कर दिया, जब बितते दिनों के साथ मूर्तियां बनाने वाले गुजर गए तो राक्षस ने उनकी संतान के पास आकर यह कहना शुरू कर दिया कि तुम्हारे पूर्वज संकट में इन मूर्तियों से मांगते थे और उन्हें मिला करता था, इस प्रकार उन्हों ने मूर्ति पूजा आरम्भ कर दिया।
यह पहला समय था जब शैतान आदम अलैहिस्सलाम के बच्चों को उसके वास्तविक घर से निकाल बाहर किया था। और अलग घर बनाकर उस में उनको बसाने में सफलता प्राप्त कर ली थी।
लेकिन अल्लाह की दया जोश में आई और मनुष्यों को अपना भूला हुआ पाठ याद दिलाने और अपने असली घर की ओर लौटाने के लिए हज़रत नूह अलैहिस्सलाम को भेजा, हज़रत नूह अलैहिस्सलाम साढ़े नौ सौ वर्ष तक अपने समुदाय को उनके असली घर की ओर बुलाते रहे। जब घमंड समुदाय घर वापसी के लिए तैयार न हुआ तो तूफान द्वारा उन्हें नष्ट कर दिया गया।
फिर हर युग में उसी घर की ओर वापस करने के लिए संदेष्टा भेजे गए, जिनकी संख्या एक लाख चौबीस हजार तक पहुंचती है। सारे संदेष्टाओं का नारा एक ही था, और वह थाः घर वापसी।
यह घर पूर्ण सौंदर्य और बेहतरी के साथ बनाया गया था, लेकिन उसके एक कोने में एक ईंट का स्थान खाली था, मानो लोग उसके चारों ओर चक्कर लगाते हैं और उस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहते हैं “यह ईंट क्यों न लगाई गई?”
जब सातवीं शताब्दी में दुनिया अपनी पूरी जवानी को पहुँच गई तो अल्लाह ने घर की इस ईंट को भी पूरा कर दिया। और उस घर को ऐसा मज़बूत किला बना दिया कि सभी जिन्नात और इनसानों की लौकिक और पारलौकिक सफलता उसी घर में शरण लेने पर ठहरी, जिसने उस में शरण ली वह लौकिक और पारलौकिक जीवन में सफल हुआ और जो घर से बाहर रह गया वह लोक और प्रलोक में विफल रहा। क़ुरआन ने कहाः
“दीन (धर्म) तो अल्लाह की स्पष्ट में इस्लाम ही है।” (क़ुरआनः 3: 19)
दूसरे स्थान पर कहाः
“जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन (धर्म) तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा।” (क़ुरआनः 3: 85)
और अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रवचनों में आता हैः
“क़सम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है जो कोई भी इस उम्मत का चाहे वह ईसाई हो या यहूदी हो
या मजूसी, मेरे संदेश के संबंध में सुनता है और मुझ पर ईमान लाए बिना मर जाता है वह जहन्नमी है।” (सही मुस्लिमः 153)
यही वह असल घर है जिसे हम इस्लाम कहते हैं। जिस पर हर बच्चे की पैदाइश होती है। क़ुरआन ने कहाः
“अतः एक ओर का होकर अपने रुख़ को ‘दीन’ (इस्लाम) की ओर जमा दो, अल्लाह की उस प्रकृति का अनुसरण करो जिस पर उसने लोगों को पैदा किया। अल्लाह की बनाई हुई संरचना बदली नहीं जा सकती। यही सीधा और ठीक धर्म है, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं।” (क़ुरआनः 30:30)
और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रवचनों में आता हैः
“हर बच्चा इस्लाम पर पैदा होता है यह अलग बात है कि उसके माता पिता उसे यहूदी बना देते हैं या इसाई बना देते हैं या अग्नीपूजक बना देते हैं।” (सही बुख़ारीः 1385)
किसी के मन में यह प्रश्न पैदा हो सकता है कि आख़िर इस्लाम की ओर पलटना ही घर वापसी कैसे है? तो इसका संक्षिप्त उत्तर यह है यह धर्म इंसान को उसके ऊपर वाले असल स्वामी और प्रभू से डाइरेक्ट मिलाता है, यहाँ बीच में किसी मेडिल मैन की ज़रूरत नहीं है। जातिवाद और भेदभाव का पूर्ष रूप में खंडन करता है और प्रत्येक मानव को एक माता पिता की संतान ठहराता है। मन को शांति प्रदान करने वाली शिक्षायें देता और जीवन के हर विभाग में मानव का मार्दगर्शन करता है। इसके सोर्सेज़ भी बिल्कुल प्रमाणिक और सुरक्षित हैं। यह स्वभाविक धर्म है। यह प्रकृति की आवाज़ है। यह हवा और पानी के जैसे हर इंसान की ज़रूरत है, हवा और पानी शरीर की ज़रूरत है तो इस्लाम आत्मा की ज़रूरत है। अतः सपूत आत्माएं मनुष्य के बनाए हुए कच्चे घरोंदों को तोड़कर इस मजबूत घर में शरण लेने लगीं जो उसके निर्माता का घर था और जिस में उसी का कानून चलता था, यहां तक कि दुनिया के कोना कोना में इस घर की ओर निस्बत करने वाले फैल गए और मानवता के सामने उसका परिचय कराया और ऐसा व्यावहारिक नमूना पेश किया कि पूरी दुनिया उसकी ओर लपकने लगी।
लेकिन जब मुसलमानों के मन-मस्तिष्क से इस घर की महानता निकल गई, उनके अंदर से निमंत्रण चेतना निकल गई और वह घर वापस कराने में सुस्ती बरतने लगे तो शैतान के चेले चुस्त हो गए, हर और कच्चे कच्चे घरोंदे बना लिए गए और उसकी ओर लोगों को “घर वापसी” के नाम से बुलाया जाने लगा।
लेकिन सवाल यह है कि घर है कहां कि घर वापसी होगी, हिंदू धर्म हो या दूसरे अन्य धर्म अपने विरोधाभासों, मतभेदों और धार्मिक उथल पथल के कारण अपने अंदर किसी प्रकार का आकर्षण नहीं रखते, बहुदेववाद और विभिन्न देवताओं की पूजा पर सम्मिलित धर्म आख़िर स्वाभाविक धर्म पर पैदा होने वाले इंसानों का धर्म कैसे हो सकता है। एक मुसलमान के लिए इस्लाम का सौभाग्य प्राप्त करना दुनिया की सारी नेमतों में सब से बढ़ कर नेमत है, मुसलमान चाहे कितना ही कमजोर हो इस्लाम के सार्वभौमिक शिक्षाओं को छोड़ कर स्वयं बनाये हुए धर्म को गले नहीं लगा सकता।
यह काम तो मुसलमानों का था कि वे इस्लाम पर जन्म लेने वाले दुनिया के इंसानों को फिर दोबारा इस्लाम की ओर बुला कर उनकी “घर वापसी” कराते ताकि वे मुक्ति मार्ग पर अग्रसर हों और मरनोपरांत जीवन में सफलता प्राप्त कर सकें कि मूल घर वापसी तो इस्लाम की ओर पलटना है जिस पर हर बच्चे का जन्म होता है।
हिन्दु धर्म के धार्मिक ग्रन्थ भी एकेश्वरवाद, ईश्दुतत्व और महाप्रलय के दिन की आस्था का समर्थन करते हैं और उन मैं मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगमन की भविष्य-वाणियां भी मौजूद हैं, खुद उनके बड़े बड़े पंडितों ने अपनी धार्मिक पुस्तकों के हवाले से साबित किया है कि वेदों में 31 स्थान पर नराशंस और पुराणों में कल्की अवतार की जो विशेषतायें बयान की गई हैं उन से अभिप्राय मुहम्मद साहब ही हैं जिन्हें माने बिना हिंदुओं को मुक्ति नहीं मिल सकती।
मेरी बात का सारांश यह हुआ कि इस्लाम की ओर पलटना ही असल घर वापसी है ।।
इसलिये बुद्धिमान है वो मनुस्य जो विचारणीय बातों में विचार कर सत्य को खोजने में संघर्स करें , तर्क वितर्क कर अपने आप को ही श्रेष्ठ और सच्चा समझना ये किसी बुद्धिजीवी का काम नहीं , बाकी जीवन आपका है जैसा चाहो वैसा जिओं , हम तो सिर्फ समझा ही सकते है ।।
आपका शुभ चिंतक
आपका भाई
अब्दुल रहमान (महेन्द्र पाल सिंह)
और संक्षिप्त में जानकारी के लिये ये पोस्ट पढ़े- तो इस्लाम एक बुरा धर्म हे??
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Post By-Pathan