Saturday 6 June 2020

ईश्वर का असली ग्रंथ कौन सा है ?

{सवाल}
मेरे सामने सभी बढ़े धर्मों के धर्मग्रंथ रखे हैं, मैं जानना चाहता हूँ कि इसमें ईश्वर का असली ग्रंथ कौन सा है ? यह तो मैं भी समझता हूँ कि यह सभी ग्रंथ ईश्वर के नहीं हो सकते क्यों कि इनमे अलग अलग बातें लिखी हैं, अब अगर ईश्वर एक है जैसा कि लगता है कि वह एक ही है तो उसकी बात भी एक ही होगी, तो मेरे पास ऐसी क्या कसौटी है जिस पर मैं इन्हें घिस कर परख सकूँ, और सही नतीजे पर पहुँच सकूँ ?

{जवाब}

वैसे तो ईश्वर की किताब को जांचने के लिए बहुत सी कसौटी हैं जिन पर उसे परखना चाहिये और उन सब पर उसे खरा उतरना चाहिए, लेकिन मैं आप की आसानी के लिए सिर्फ वही टेस्ट लिख देता हूँ जिनके लिए बहुत ज़्यादा इल्म (ज्ञान) की आप को ज़रूरत ना पड़े और आप का विवेक भी कहे कि हाँ यह टेस्ट तो ईश्वर कि किताब को पास करने ही चाहियें.
सबसे पहले तो आप को अपने अन्दर से हर तरह के पूर्वाग्रह पक्षपात को बिलकुल निकालना होगा यह बहुत ज़रूरी है अगर आप ऐसा नहीं करते तो इन किताबों के बारे में आप इन्साफ से फैसला नहीं पर पाएंगे, आप चाहे नास्तिक हों या किसी एक धर्म को मानने वाले हों किसी भी हाल में आप के अन्दर दूसरे धर्म के लिए जर्रे के बराबर भी नफरत नहीं होनी चाहिए, पहले अपने आप को एक ईमान दार जज के रूप में पूरी तरह तैयार कर लीजये. इसके बाद इन किताबों को इन कसौटी पर परखये.

1. उस किताब का खुद दावा हो कि वह खुदा कि तरफ से है. यानि यह बात उसमे खुद लिखी हो की वो ईश्वर की किताब है कहीं ऐसा ना हो कि उस किताब का खुद यह दावा ही ना हो कि वह ईश्वर की तरफ से है और हम उसे अपनी तरफ से ईश्वर की किताब समझ रहे हों.

2. उसका दावा हो कि वह सब इंसानों की हिदायत के लिए है. यानि उसमे खुद साफ़ तौर पर लिखा हो कि वह किताब सब इंसानों और क़यामत तक के लिए बराबर हिदायत (मार्गदर्शन) के लिए ईश्वर ने हम इंसानों को दी है. क्यों कि यह भी मुमकिन है कि वह किताब तो ईश्वर की ओर से है लेकिन हमारे लिए ना हो बल्कि किसी खास समय या किसी खास जगह के लोगों के लिए हो तो भी वो हमारे लिए बेकार है.

3. उसमे तज़ाद (विरोधाभास) ना हो. यानि अगर वो वाकई ईश्वर की किताब है और बिना मिलावट के हम तक पहुँची है तो उस में परस्पर विरोधी बाते नहीं हो सकती क्यों कि ईश्वर गलती नहीं कर सकता अगर वो गलती करे तो वो ईश्वर नहीं हो सकता.

4. उसमे इंसान को बनाने का मक़सद साफ़ तौर पर लिखा हो क्यों कि यही विषय है जो धर्म से जुड़ा है और धर्म के अलावा किसी और रास्ते से हम इस सवाल का जवाब नहीं ढूंड सकते, अगर उसने इन बिन्यादी सवालों ही के जवाब नहीं दिये कि हम कहाँ से आए हैं? क्यों आए हैं? हमें कहाँ जाना है? क्यों जाना है? या ईश्वर ने यह दुनिया किस मकसद से बनाई है तो भी उस किताब को ईश्वर की किताब नहीं माना जाना चाहिए, और अगर वह ईश्वर की है भी तो वह हमारे लिए नहीं हो सकती.

5. अगर उस किताब में कुछ ऐसी बातें लिखी हैं जो इंसानी फितरत कहती है कि वो ईश्वर में नहीं हो सकती तो भी वो किताब ईश्वर की किताब नहीं हो सकती, जैसे उस किताब में लिखा हो कि ईश्वर झूठा है, ईश्वर कमज़ोर है, वो थक जाता है, उसकी कोई शक्ति कभी उसमे नहीं भी रहती, वह अपनी शक्ति दूसरों को भी दे देता है जिससे वह खुद कमज़ोर हो जाता है, ईश्वर को किसी बात का पता नहीं था, उसे कोई धोका दे देता है, वो सो जाता है, या किसी से हार जाता है, कोई उसे मजबूर कर देता है या ईश्वर एक से ज़्यादा हैं, या उसने यह दुनिया बे मकसद ही बनादी है, या वह बे मकसद के कामों में लगा रहता है वगैरह.
यह तो वह चीज़ें थीं जो आप को ग्रंथ के अन्दर तलाश करनी हैं.
अब कुछ बातें वह हैं जो आप को ग्रंथ के बाहर देखनी है.

6. उस किताब की हिफाज़त यकीनी हो, यानि उस का पूरा इतिहास हमारे सामने मौजूद हो जिससे हम इस नतीजे पर पहुँच सके कि हां ये वही किताब है और बिलकुल ऐसी ही है जैसे इसे सबसे पहले लिखा गया था. अगर वह इस कसोटी पर खरी नहीं उतरती तो भी वो किताब ईश्वर की किताब नहीं हो सकती और अगर हो भी तो हमारे लिए नहीं हो सकती क्यों कि अगर वो हमारे लिए होती तो ईश्वर की जुम्मेदारी थी कि वो उसे हम तक बिना मिलावट के पहुंचाता.

7. उसमे कोई बात ऐसी ना हो जो झूठी साबित हो चुकी हो. यानि भूत काल या भविष्य कि अगर कोई बात उसमे ऐसी लिखी है जो साफ़ तौर पर बिलकुल झूठी है तो भी वो ईश्वर की किताबा नहीं हो सकती क्यों कि ईश्वर के लिए यह ज़रूरी है कि उसे भूत काल या भविष्य काल का सही सही ज्ञान हो.

8. जिसने वो किताब पेश की है उसके बारे में हमें सारी जानकारी हो. यानि यह बात यकीनी हो कि जिसने वो किताब सबसे पहले लोगों के सामने पेश की थी वो वाकई उसी ने की थी और इसी दावे से पेश की थी कि वह ईश्वर की किताब पता होनी चाहिए कि क्या उसने खुद उस किताब के अनुसार अपनी पूरी ज़िन्दगी गुज़ारी है या बाद में वो बात से फिर गया था या उसने किताब के अनुसार अमल (कर्म) नहीं किये. इसकी सारी जानकारी होना ज़रूरी है.

9. ज़िन्दा ज़ुबान में हो. यानि उस किताब की भाषा आज भी बहुत सारे लोग बोलते हों लिखते हों उस भाषा में अखबार और मैगज़ीन छपते हों और वो बिकते हों, क्यों कि अगर वो किताब ऐसी भाषा में है जो पूरी तरह जिन्दा ना हो या बहुत थोड़े से लोग ही उस भाषा को जानते हों तो भी वो किताब हमारे लिए बेकार है, फिर तो वह किताब बहुत थोड़े लोगों के हाथ की कटपुतली बन कर रह जाएगी वो थोड़े से लोग जिस तरह चाहेंगे उस में लिखी हुई बातों को अपने हिसाब से अनुवाद कर के बताया करेंगे. जिससे हम सही बात तक नहीं पहुँच पाएंगे.

यह वे 9 चीज़ें हैं जो एक आम आदमी भी समझ सकता है और इन कसौटी पर हर ग्रंथ को परख सकता है. जो किताब भी यह सारे टेस्ट पास करले उसको ईश्वर की किताब मानये और जो किताब भी इनमें से किसी एक टेस्ट में भी फ़ैल हो जाए वो रद्द करने के काबिल है.
साथ ही एक बहुत ज़रूरी बात यह है कि जब आप यह सवाल किसी ग्रंथ के बारे में उसे परखने के लिए किसी से करेंगे तो यह ज़रूरी है कि उस ग्रंथ के मानने वाले और माहिर लोगों ही से उसकी जानकारी लें और जो वो बताएँ उसके सबूत उनसे मांगे रेफरेंस ले फिर उनको खुद चेक करें.

ऐसा बिलकुल ना कीजियेगा कि कुरआन के बारे में आप किसी पंडित से जानकारी लें और वेद के बारे में किसी मौलाना से पूछें.

अगर आप की नियत बिलकुल सच्ची है, और आप इन 9 टेस्ट से उन सब किताबों को जो आपके सामने रखी हैं गुजारेंगे, तो आप को मुबारक हो बहुत ज़ल्द आप सही ग्रंथ तक पहुँचने वाले हैं.
शुक्रिया.

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