Saturday 25 July 2015

इस्लाम सबके लिए हे केवल अरब वालो के लिए नही .@

कुरआन_क्या_पुकारता_हैं ? कुछ लोग समझ बेठे कुरआन सिर्फ मुसलमानों के लिए है! 
दूसरी ओर एक विशेष संगठन को हमेशा कहते सुना के कुरआन सिर्फ अरबवासियों के लिए उतारा गया! 
लोगो के दिलो मे ये गलतफहमी दिन-दर-दिन बेठाई जा रही है! जबकी सच्चाई इसके उलट है! 
अल्लाह तआला ने कुरआन मे कहीं "ऐ लोगो" कहकर तो कही "इब्ने आदम" (आदम की सन्तान) कहीं "ऐ इन्सानों" कहकर समस्त मानवजाति को संबोधित किया! कुरआन किसी धर्म विशेष,सम्प्रदाय,जाति, या संगठन का ग्रन्थ नही है बल्कि ये ईश्वरीय सिध्दांत समस्त मानवजाति के लिए है! 
मनुष्य किसी भी जाति का रहना वाला हो! इस पार का हो या उस पार का! हम सबका कौमों और कबीलो मे बट जाना एक स्वाभाविक बात थी, इस अन्तर और विभेद का उद्देश्य यह बिल्कुल न था कि इसके आधार पर उच-नीच, भद्र और अभद्र, श्रेष्ठ और क्षुद्र की सीमा-रेखाए खींची जाएं| 
अल्लाह ने जिस कारण इन्सानी समुदायों को कौमों और कबीलो का रूप दिया था वह सिर्फ यह था कि उनके बीच पारस्परिक सहयोग और परिचय का स्वाभाविक रूप स्थित रहे। इस छोटे लेख मे कुरआन की सब आयात लिख पाना मुमकिन नही! 
सुर:नम्बर ओर आयत नम्बर दे दिया जाएगा! आप उनको कुरआन से मिलाकर देख सकते हैं! 
कुरआन केवल मुस्लिमों की किताब नही बल्कि ये सब इन्सानों के लिए नसीहत ओर मार्गदशक है:- 

•"ऐ लोगो तुम अल्लाह के मोहताज हो और अल्लाह तो निराश्रित,सम्पन्न और प्रशंस्य है! वह चाहे तो तुम्हे हटाकर कोई नई स्रष्टि तुम्हारी जगह ले आए, ऐसा करना अल्लाह के लिए कुछ भी कठिन नही है! (अल-फातिर: 15,16,17) अल-बकर: 21,168,208 अन-निसा: 1,170,174 सुर:अनआम: 142 अल-आराफ: 22,158 सुर:यूनुस: 23,24,57,104,108 सुर:यूसुफ: 5 सुर:हज: 1,2,49,51,56,73 अल-कसस: 15 सुर:लुकमान: 13,33 अल-फातिर: 3,5,6,15,18 सुर:या-सीन: 60 सुर:जखरुफ: 62 अल-हुजुरात: 13 अल-अबस: 34,37 

•"ऐ आदम की सन्तान, क्या मैने तुम्हें आदेश न दिया था कि शैतान की बन्दगी न करना, वह तुम्हारा खुला दुश्मन हैं। और मेरी ही बन्दगी करना, यही सीधा मार्ग है? मगर फिर भी तुममें से एक बड़े गिरोह को उस (शैतान) ने पथ-भ्रष्ट कर दिया। क्या तुम बुद्धि नहीं रखते थे? (कुरआन, सुर:या-सीन: 60-62) अल-बकर: 168,208 अल-अनआम: 142 अल-आराफ: 22,26,27,31,32,35,172,174 सुर:यूसुफ: 5 सुर:बनीइस्राईल: 70 अल-कसस: 15 अल-फातिर: 6 अल-जखरुफ: 62 सुर:अत-तीन: 4 

•"क्या मनुष्य समझता है कि हम उसकी हड्डियों को एकत्र न करेंगे। क्यों नहीं, हम इस पर सक्षम हैं कि उसकी उँगलियों के पोर पोर तक ठीक कर दें।बल्कि मनुष्य चाहता है कि वह ढिठाई करे उसके सामने।वह पूछता है कि क़यामत का दिन कब आयेगा। तो जब आँखें चोंधिया जायेंगी। और चाँद प्रकाशहीन हो जायेगा।और सूरज और चाँद एकत्र कर दिये जायेंगे। 
उस दिन मनुष्य कहेगा कि कहाँ भागूं। कदापि नहीं, कहीं शरण नहीं।उस दिन तेरे पालनहार ही के पास ठिकाना है।उस दिन मनुष्य को बताया जायेगा कि उसने क्या आगे भेजा और क्या पीछे छोड़ा। 
बल्कि मनुष्य स्वयं अपने आप को भली भाँति जानता है। चाहे वह कितने ही बहाने (तर्क) प्रस्तुत करे। 
(अलकुरआन सुर:अलकियामह आयत 3 से 15) सुर:नहल: 61 अल-कहफ: 49 सुर:मरियम: 36 सुर:या-सीन: 82,83 सुर:अश-शूरा: 48 अल-अहकाफ: 15 सुर:रहमान: 1,4 अल-हाक्का: 19 अल-मआरिज 19,21 अल-अबस: 17,24 अल-इन्फितार: 6,12 अल-इन्शिकाक: 6

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