Monday 20 July 2015

कुरान पूरी मानव जाती के लिए हे केवल मुस्लिम के लिए नही ..@

कुरआन केवल मुस्लिमों का ग्रन्थ नही ये समस्त मानवजाती के लिए ईश्वरीय सिध्दांत है 

कुरआन मजीद इतने उच्चकोटि की वाणी है कि उसे जो सुनता लहालोट हो जाता। हजरत मुहम्मद (सल्ल0) कुरआन पढ़कर लोगो को सुनाते, जो पढ़े-लिखे और समझदार थे वे इस पर र्इमान लाते कि यह अल्लाह का कलाम  हैं। 

इस प्रकार कुरआन के मानने वालों की संख्या बढ़ने लगी और दुश्मनों की परेशानी बढ़ने लगी। जो इस पर र्इमान लाता उसको मारा-पीटा जाता, किसी के पैर मे रस्सी बॉधकर घसीटा जाता, किसी को जलती हुर्इ रेत पर लिटाकर उपर से भारी पत्थर रख दिया जाता, किसी को उलटा लटकाकर नीचे से धूनी दी जाती। फिर भी ये र्इमान लाने वाले पलटने को तैयार नही थे। 

जब लोगो ने देखा कि ईमान लाने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही हैं तो तय किया गया कि मुहम्मद (सल्ल0) ही को कत्ल कर दिया जाए। र्इश्वर ने मुहम्मद (सल्ल0) को आदेश दिया कि रातो-रात मदीना चले जाओ, वहां के लोग अच्छे हैं और बहुत-से लोग इस किताब पर र्इमान ला चुके हैं। 

अत: मुहम्मद (सल्ल0) मदीना हिजरत कर गए जो मुसलमान जहां-जहां थे, धीरे-धीरे मदीना पहुचने लगे। इस प्रकार कुरआन मजीद पर र्इमान लाने वालों का एक गिरोह मदीना में बन गया। इस पर विरोधी बहुत चिन्तित हुए और इस छोटे-से गिरोह को खत्म करने के लिए उन्होने कर्इ बार आक्रमण किए, मगर हर बार पराजित हुए। 
इस प्रकार बद्र, उहद, हुनैन इत्यादि स्थानों पर युद्ध हुआ, पर हर जगह र्इमान लाने वाले सफल रहे और अरब मे इस कुरआन के आधार पर एक छोटी-सी इस्लामी हुकूमत बन गर्इ। 
वह अरब जहां कोर्इ हुकूमत ही न थी, दिन-दहाड़े काफिलें लूट लिए जाते और बस्तियों के लोग रातभर डर के मारे सो भी नही पाते कि डाकुओं को कोर्इ गिरोह रात को उनके घर पर आक्रमण करके लूट ना ले और मर्दो और औरतों को बाजार में ले जाकर बेच देते। यह थी अरब के लोगो की दुर्दशा। 
परन्तु जब इस्लामी हुकूमत स्थापित हुर्इ तो वहां ऐसा अमन हुआ कि एक बुढ़िया सोना उछालते हुए ‘सनाआ’ से ‘हजरे-मौत’ तक सैकड़ो मील की तन्हा रेगिस्तानी यात्रा करती है। रास्ते मे उसको कोर्इ भय नही होता। 
यह दशा देखकर लोग बड़ी संख्या मे र्इमान लाने लगे और पूरे अरब मे इस्लामी हुकूमत स्थापित हो गर्इ। 

मुहम्मद (सल्ल0) की मृत्यु के पश्चात उनके चार खुलफा- 
1. हजरत अबूबक्र (रजि0) 
2. हजरत उमर (रजि0) 
3. हजरत उस्मान (रजि0) 
4. हजरत अली (रजि0) ने उस वक्त की सभ्य दुनिया के बहुत बड़े क्षेत्र पर इस्लामी हुकूमत कायम कर दी। 
यह हुकूमत र्इश्वर के बादशाह होने और इन्सान का इससे पृथ्वी पर र्इश्वर का खलीफा (नायब) होने के आधार पर बनी थी। पूरे देश में र्इशग्रन्थ (कुरआन मजीद) के आधार पर कानून चलता था। पूरे देश मे जनता बड़ी सुखी थी और हुकूमत से पूर्णत: संतुष्ट थी। गैर मुस्लिम लोग जो इस हुकूमत के अन्दर रहते थे, वे हूकूमत से बहुत खुश थे। 
ईसाइयो विषय मे मिस्टर आरनाल्ड का कथन काफी हैं। वह कहते है- ‘‘मुसलमानों की हुकूमत मे जो र्इसार्इ फिरके रहते थे उनके साथ न्याय करने मे इस्लामी हुकूमत ने कभी कोताही नही की।’’ 
अन्य गैर मुस्लिम वर्गो के बारे मे केवल दो मिसाले प्रस्तुत की जाती है- मिस्त्र के एक गैरमुस्लिम ने उस वक्त के खलीफा हजरत उमर फारूक (रजि0) से शिकायत की आपके गवर्नर ने मेरे लड़के को नाहक कोड़े मारे है। गवर्नर और उसका लड़का तलब किया गया। शिकायत सही साबित हुर्इं। 
खलीफा हजरत उमर रजि0 ने लड़के को हुक्म दिया कि तुम भी गवर्नर के लड़के को कोड़े मारो। 
अत: उस लड़के ने गवर्नर के लड़के को कोड़े मारे। जब कोड़ा रखने लगा तो खलीफा ने कहा कि दो कोड़े गवर्नर साहब को भी मारो, क्योकि उनके लड़के को अगर यह घमण्ड न होता कि उसका बाप गवर्नर है तो तुम्हे कोड़े कदापि न मारता, परन्तु गैर मुस्लिम लड़के ने यह कहते हुए कोड़ा रख दिया कि जिसने मुझे मारा था मैने उससे बदला ले लिया, मेरा दिल ठंडा हो गया, मै गवर्नर को क्यो मारूं। 
मिस्त्र की एक गैर मुस्लिम बुढ़िया ने खलीफा हजरत उमर से शिकायत की आप के गवर्नर अबुल आस ने मेरी आज्ञा के बगैर मेरा मकान गिराकर मस्जिद मे सम्मिलित कर लिया हैं गवर्नर बुलाए गए। उन्होने इस बात को स्वीकार किया कि शिकायत सही हैं। मस्जिद तंग पड़ती हैं। किसी तरफ बढ़ने की गुंजाइश नही हैं, इसके मकान ही की तरफ बढ़ने की गुंजाइश हैं। 
बुढ़िया को उसके मकान की दुगुनी कीमत दी जा रही हैं, परन्तु उसने लेने से इन्कार कर दिया। हमारे सामने भी मजबूरी थी। 
अत: हमने उसका मकान गिराकर उसपर मस्जिद बना दी और मकान की दुगुनी रकम बैतुलमाल में जमा हैं। इस पर खलीफा बड़े गजबनाक हुए और हुक्म दिया कि बुढ़िया का मकान वही बनाया जाए जहॉ पहले था। इस प्रकार बहुत से वाकियात ऐसे हुए जिनसे मालूम होता है कि गैर मुस्लिम जनता भी इस्लामी हुकूमत से बहुत खुश थी। 
यह सारी बाते इतिहास के पन्नों में आज भी सुरक्षित हैं, जिन्हे पढ़कर आज के बुद्धिजीवी भी बोल उठे- नेपोलियन बोनापार्ट ने कहा, 
‘‘ मुझे आशा हैं कि वह समय दूर नही जब मै इस योग्य हो जाउंगा कि संसार के सारे देशों के शिक्षित और योग्य लोगो को एकत्रित कर दूॅ और उनकी सहायता से कुरआन की बुनियाद पर एक ऐसी व्यवस्था स्थापित कर दूॅ जो सत्य हैं और मानवता को सफलता के मार्ग पर ले जा सकती हैं।’’

बर्नाड शां ने कहा, 
‘‘आने वाले सौ वर्षो मे हमारी दुनिया का मजहब इस्लाम होगा, मगर आज के मुसलमानों का इस्लाम नही, बल्कि वह इस्लाम जो मानव बुद्धि में रचा बसा हैं।

’’ रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा,
‘‘ वह समय दूर नही जब इस्लाम अपनी ऐसी सच्चार्इ जो ठुकरार्इ न जा सके, रूहानियत द्वारा सब पर विजय पा लेगा और हिन्दू मजहब पर भी विजयी हो जायेगा, तो हिन्दुस्तान मे एक ही मजहब होगा और वह इस्लाम मजहब होगा। 

महात्मा गॉधी ने कहा:, 
‘‘जब हिन्दुस्तान स्वतंत्र हो जाएगा तो हम यहां भी वैसा ही शासन स्थापित करेंगे जैसा अबूबक्र ने स्थापित किया था।’’ 
जय प्रकाश नारायण ने पटना मेडिकल कालेज मे सौरेत पर भाषण देते हुए कहा, 
‘‘यदि आज दुनिया के मुसलमान गफलत के पर्दे चाक करके मैदान मे आ जाएं और इस्लामी सिद्धान्तों पर काम करें तो सारी दुनिया का मजहब इस्लाम हो सकता हैं।’’ 

मुसलमान भाइयों अब हम खुद मुहासिबा करें,क्या हम वही कर रहै हैं- जो हुक्म हमे अल्लाह रब्बुल ईज्जत ने कुरआन में फरमाया! क्या हम अपने मजहब के सिध्दांतो,आदर्शों पर खरे हैं?

 क्या हम मुसलमान कहलाने का हक रखते हैं?

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