Monday, 20 July 2015

आर्य समाज की नियोग विधि,औरत पर अत्याचार

औरत पर अत्याचार ===>> नियोग (भाग-2) :-D :-D यह भी एक तथ्य है कि पुनर्विवाह के दोष और हानियाँ तथा नियोग के गुण और लाभ का उल्लेख केवल द्विज वर्णों, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के लिए किया गया है। चैथे वर्ण ‘शूद्र को छोड़ दिया गया है। क्या ‘शुद्रों के लिए नियोग की अनुमति नहीं है ? क्या ‘शूद्रों के लिए नियोग की व्यवस्था दोषपूर्ण और पाप है ? जैसा कि लिखा है कि अगर पत्नी अथवा पति अप्रिय बोले तो भी वे नियोग कर सकते हैं। अगर किसी पुरुष की पत्नी गर्भवती हो और पुरुष से न रहा जाए अथवा पति दीर्घरोगी हो और स्त्री से न रहा जाए तो दोनों कहीं उचित साथी देखकर नियोग कर सकते हैं। क्या यहाँ सारे नियमों और नैतिक मान्यताओं को लॉकअप में बन्द नहीं कर दिया गया है ? क्या नियोग का मतलब स्वच्छंद यौन संबंधों ;ैमग थ्तमम) से नहीं है ? :-D क्या इससे निम्न और घटिया किसी समाज की कल्पना की जा सकती है? कथित विद्वान लेखक ने नियोग प्रथा की सत्यता, प्रमाणिकता और व्यावहारिकता की पुष्टि के लिए महाभारत कालीन सभ्यता के दो उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। लिखा है कि व्यास जी ने चित्रांगद और विचित्र वीर्य के मर जाने के बाद उनकी स्त्रियों से नियोग द्वारा संतान उत्पन्न की। अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और एक दासी से विदुर की उत्पत्ति नियोग प्रक्रिया द्वारा हुई। दूसरा उदाहरण पाण्डु राजा की स्त्री कुंती और माद्री का है। पाण्डु के असमर्थ होने के कारण दोनों स्त्रियों ने नियोग विधि से संतान उत्पन्न की। इतिहास भी इस बात का प्रमाण है। जहाँ तक उक्त ऐतिहासिक तथ्यों की बात है महाभारत कालीन सभ्यता में नियोग की तो क्या बात कुंवारी कन्या से संतान उत्पन्न करना भी मान्य और सम्मानीय था। वेद व्यास और भीष्म पितामह दोनों विद्वान महापुरुषों की उत्पत्ति इस बात का ठोस सबूत है। दूसरी बात महाभारत कालीन समाज में एक स्त्री पांच सगे भाईयों की धर्मपत्नी हो सकती थी। पांडव पत्नी द्रौपदी इस बात का ठोस सबूत है। तीसरी बात महाभारत कालीन समाज में तो बिना स्त्री संसर्ग के केवल पुरुष ही बच्चें पैदा करने में समर्थ होता था। महाभारत का मुख्य पात्र गुरु द्रोणाचार्य की उत्पत्ति उक्त बात का सबूत है। चैथी बात महाभारतकाल में तो चमत्कारिक तरीके से भी बच्चें पैदा होते थे। पांचाली द्रौपदी की उत्पत्ति इस बात का जीता-जागता सबूत है। अतः उक्त समाज में नियोग की क्या आवश्यकता थी ? यहाँ यह भी विचारणीय है कि व्यास जी ने किस नियमों के अंतर्गत नियोग किया ? दूसरी बात नियोग किया तो एक ही समय में तीन स्त्रियों से क्यों किया? तीसरी बात यह कि एक मुनि ने निम्न वर्ण की दासी के साथ क्यों समागम किया ? चैथी बात यह कि कुंती ने नियम के विपरीत नियोग विधि से चार पुत्रों को जन्म क्यों दिया ? विदित रहे कि कुंती ने कर्ण, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन चार पुत्रों को जन्म दिया और ये सभी पाण्डु कहलाए। पांचवी बात यह कि जब उस समाज में नियोग प्रथा निर्दोष और मान्य थी तो फिर कुंती ने लोक लाज के डर से कर्ण को नदी में क्यों बहा दिया ? छठी बात यह है कि वे पुरुष कौन थे जिन्होंने कुंती से नियोग द्वारा संतान उत्पन्न की ? स्वामी जी ने बहुविवाह का निषेध किया है जबकि उक्त सभ्यता में बहुविवाह होते थे। अब क्या जिस समाज से स्वामी जी ने नियोग के प्रमाण दिए हैं, उस समाज को एक उच्च और आदर्श वैदिक समाज माना जाए ? नियोग Part- 1 ( दयानन्द का नंगा पार्ट 13 में देख सकते हो ) ¶ ¶ ¶ ¶ ¶ ¶ ¶ islamnoorehaq.blogspot.in/2015/07/blog-post_38.html?m=1 :

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