Sunday 6 September 2015

अल्लाह के स्वरूप और सात आसमान पर आपत्ति का जवाब

आर्यो और हिन्दू भाइयो के सात आसमान और अल्लाह के स्वरूप पर आपत्ति का जवाब-

सात आसमान-
कुरआन में कई जगह जि़क्र आया है कि आसमान सात हैं। मसलन कुरआन हकीम की 67 वीं सूरह मुल्क की तीसरी आयत, ”जिसने (अल्लाह ने) एक के ऊपर एक सात आसमान बनाये। तुम रहमान की आफरनिश में कोई क़सर न देखोगे। 
इस तरह की आयतों के बारे में अक्सर लोगों को कौतूहल रहता है कि क्या वाक़ई सात आसमान हैं और अगर हैं तो उनकी हक़ीक़त क्या है? कुछ लोग इसको साइंस के खिलाफ भी कह देते हैं। लेकिन अगर इमाम अली(अ.) की एक हदीस पर गौर किया जाये तो सात आसमानों की हक़ीक़त न सिर्फ स्पष्ट होती है बलिक उसका समर्थन साइंस भी करती नज़र आती है।  
यह हदीस शेख सुददूक (अ.र.) की किताब अललश्शराअ में दर्ज है और ‘नादिर अलल और असबाब’ के टाइटिल के अन्तर्गत इस तरह है : एक मरतबा हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अलैहिस्सलाम मसिजदे कूफा में थे। मजमे से एक मर्द शामी उठा और अर्ज किया या अमीरलमोमिनीन में आपसे चन्द चीजों के मुतालिक कछ दरियाफ्त करना चाहता हूं। आपने फरमाया सवाल करना है तो समझने के लिये सवाल करो। महज़ परेशान करने के लिये सवाल न करना। उसके बाद सायल ने सवाल किये उनमें से दो सवाल इस तरह थे,
उसने सवाल किया कि ये दुनियावी आसमान किस चीज़ से बना?आपने फरमाया आंधी और बेनूर मौजों से। फिर उसने सातों आसमान के रंग और उनके नाम दरियाफ्त किये। तो आपने फरमाया 
पहले आसमान का नाम रफीअ है और उसका रंग पानी व धुएँ की मानिन्द है। और दूसरे आसमान का नाम क़ैदूम है उसका रंग तांबे की मानिन्द है। तीसरे आसमान का नाम मादून है उसका रंग पीतल की मानिन्द है। चौथे आसमान का नाम अरफलून है उसका रंग चाँदी की मानिन्द है। पाँचवें आसमान का नाम हय्यून है उसका रंग सोने की मानिन्द है। छठे आसमान का नाम उरूस है उसका रंग याक़ूत सब्ज़ की मानिन्द है। सातवें आसमान का नाम उज्माअ है उसका रंग सफेद मोती की मानिन्द है।
अब हम इन सवालों व जवाबों को मौजूदा साइंस की रोशनी में गौर करते हैं।
अगर ज़मीन के आसमान की बात की जाये तो पूछने वाले का मतलब वायुमंडल से था जो ज़मीन के ऊपर हर तरफ मौजूद है। हम जानते हैं कि वायुमंडल में गैसें हैं और साथ में आयनोस्फेयर है जहां पर आयनों की शक्ल में गैसों की लहरें हैं। ये गैसें कभी एक जगह पर तेजी के साथ इकटठा होती हैं तो आँधियों की शक्ल में महसूस होती हैं और कभी बिखरती है तो मौसम पुरसुकून होता है। इसके बावजूद फिज़ा कभी इन गैसों से खाली नहीं होती। 
अगर आम आदमी को समझाने के लिये कहा जाये तो ज़मीन की फिज़ा में आंधियां हैं और लहरें या मौजें। चूंकि ये मौजें रोशनी की नहीं है बलिक मैटर की हैं लिहाज़ा हम इन्हें बेनूर मौजें कह सकते हैं। और यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम के जवाब में आ रही है।  
सवाली का अगला सवाल आसमान के रंग के मुताल्लिक था। जब हम ज़मीन पर रहते हुए आसमान की तरफ नज़र करते हैं तो यह नीले रंग का दिखाई देता है। जबकि शाम या सुबह के वक्त इसका रंग थोड़ा बदला हुआ लाल या काला मालूम होता है। 
लेकिन जो लोग स्पेसक्राफ्ट के ज़रिये ज़मीन से बाहर जा चुके हैं। उन्हें न तो ये आसमान नीला दिखार्इ दिया और न ही लाल। दरअसल ये रंग ज़मीन पर इसलिए दिखाई देते हैं क्योंकि ज़मीन का वायुमंडल सूरज की रोशनी में से खास रंग को हर तरफ बिखेर देता है। 
चूंकि ज़मीन के बाहर वायुमंडल नहीं है इसलिए वहां ये रंग नहीं दिखाई देते। तो फिर वहां कौन सा रंग दिखाई देगा? ज़ाहिर है कि वहां चारों तरफ ऐसा कालापन दिखाई देगा जिसमें पानी की तरह रंगहीनता (colorlessness) होगी। यही रंग बाहर जाने वाले फिजाई मुसाफिरों ने देखा और यही बात इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने जवाब में बता रहे हैं कि पहले आसमान का रंग पानी व धुएं की मानिन्द है। 
पानी का रंग नहीं होता और धुएं का रंग काला होता है। दोनों को मिक्स करने पर जो रंग बनता है वही फिजाई मुसाफिरों को ज़मीन से बाहर निकलने पर दिखाई देता है।
उसके आगे के आसमानों तक साइंस की पहुंच ही नहीं हुई है अत: कुछ कहना बेकार है। तमाम सितारे पहले आसमान में ही हैं।
जो बातें आज साइंसदानों को ज़मीन से बाहर निकलने पर मालूम हुई हैं वह इमाम अली अलैहिस्सलाम चौदह सौ साल पहले मस्जिद में बैठे हुए बता रहे थे। और इस्लाम के सच और इल्म की गवाही दे रहे थे। वह इल्म जो दुनिया के सामने चौदह सौ साल बाद आने वाला था।

अल्लाह का स्वरूप-

अकसर गैर मुस्लिम मुसलमानों में इस्लाम के प्रति शंकाएँ उत्पन्न करने के लिए उनसे तरह तरह के प्रश्न करते रहते हैं। 
बहुत से मुसलमान अज्ञानता के कारण उनसे प्रभावित हो जाते हें। उनके इन प्रश्नों में से कुछ प्रश्न अल्लाह के व्यक्तित्व के बारे में होते हैं, जिसमे वे पवित्र कुरआन की कुछ आयात के अर्थों का अनर्थ करते हैं और साधारण मुसलमानों को परेशान करते हैं। 
वे मुसलमानों से पूछते हैं कि क्या कुरआन में बताया गया है कि अल्लाह के हाथ हैं?, अल्लाह किसी सिंहासन (अर्ष या कुर्सी) पर बैठे हैं? 
उस सिंहासन को आठ फरिश्ते उठाए हुए हैं? क्या अल्लाह शरीरधारी और साकार है? 
इन प्रश्नों के बाद वे आर्य प्रचारक वेदों से ईश्वर को निराकार सिद्ध करने लगते हैं और वेद के ईश्वर की बड़ाई करने लगते हैं। 
साधारण मुसलमान उनके प्रश्नों से शंकाओं में घिर जाता है। इस लेख में मैं यह कोशिश करूंगा कि इन प्रश्नों का सही उत्तर आपको मिल जाए। इन सब बातों को समझने के लिए एक सिद्धान्त ज़रूर याद रखना चाहिए। कि अल्लाह के गुणों के बारे में जिन शब्दों का प्रयोग हम अपने जीवन में करते हैं, 
वे शब्द उन गुणों की वास्तविकता को व्यक्त करने वाले नहीं होते हैं, क्योंकि जिन शब्दों का हम अल्लाह के गुणों को बताने के लिए प्रयोग करते हैं, उनही का प्रयोग हम अपने गुणों को बताने के लिए करते हैं, यद्यपि अल्लाह के गुण हमारे तरह के नहीं। उदाहरण के लिए जब हम अपने बारे में ‘ देखना‘ शब्द का प्रयोग करते हैं, 
तो हमारे दिमाग में यह अवधारणा होती है कि हम एक आँख रखते हैं, जिस में दृष्टि की क्षमता है, फिर बाहर से रोशनी की किरणें वस्तुओं से टकराकर हमारी आँखों में उनकी तस्वीरें बनाती हैं जो दृष्टि तंत्रिका (optic nerve) के माध्यम से हमारे दिमाग तक पहुँचती हैं। लेकिन यही शब्द ‘देखना‘ जब हम अल्लाह के लिए बोलते हैं, तो हमारा तात्पर्य यह नहीं होता कि अल्लाह को भी देखने के लिए आँखों की या रोशनी की या दृष्टि तंत्रिका की आवश्यकता है। 
इसी प्रकार ‘सुनना‘ शब्द का हम अल्लाह के लिए प्रयोग करते हैं कि वह हमारी स्तुतियों और प्रार्थनाओं को सुनता है। लेकिन जब एक आर्यसमजी या हिन्दू भी कहता है कि “ईश्वर सब कुछ देखता है और सब कुछ सुनता है’ तो कोई मूर्ख पंडित उस से नहीं पूछता कि क्या ईश्वर की आँखें और कान हैं? 
मैं भी आर्यों से पूछता हूँ कि जब ऋग्वेद परमेश्वर को विश्वचक्षाः 
अर्थात ‘समस्त जगत का दृष्टा परमेश्वर‘ कहता है (देखो मण्डल 10, सूक्त 81, मंत्र 2) 

 तो क्या तुम्हारे ईश्वर की वास्तव में आँखें (चक्षु) हैं? इसी के बाद का मंत्र इस प्रकार है विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात् | 
अर्थात – सब तरफ आखों वाला, सब तरफ मुख वाला, सब तरफ बाहु वाला, सब तरफ पैर वाला (परमेश्वर है) [ ऋग्वेद 10/81/3] 

अब अगर कोई इनसे पूछे कि क्या तुम्हारे परमेश्वर की आँखें, मुख, बाज़ू और पैर हैं, तो क्या उत्तर देंगे? अल्लाह के बारे में 
पवित्र कुरआन में आया है,
अर्थात – उसके सदृश कोई चीज़ नहीं। वही सबकुछ सुनता, देखता है [सूरह शूरा 42; आयत 11] 

आर्यों को इसी वास्तविकता के न समझने के कारण ठोकर लगी है। वे कहते हैं कि जिस प्रकार हम दुनिया में कोई वस्तु बिना साधन के नहीं बना सकते वैसे ही उनका ईश्वर भी बिना साधनों के कुछ नहीं बना सकता। यद्यपि दूसरी और यह भी मानते हैं कि उनका ईश्वर देखता है लेकिन हमारी तरह नहीं। सुनता है, लेकिन हमारी तरह नहीं। इन गुणों में हमारी तरह किसी साधन पर निर्भर नहीं है, फिर समझ में नहीं आता कि कोई वस्तु बनाने में साधनों पर निर्भर क्यों है? 

पवित्र कुरआन में आया है,
अर्थात – और यहूदी कहते है, “अल्लाह का हाथ बँध गया है।” उन्हीं के हाथ-बँधे है, और फिटकार है उनपर, उस बकवास के कारण जो वे करते है, बल्कि उसके दोनो हाथ तो खुले हुए है। वह जिस तरह चाहता है, ख़र्च करता है। [सूरह माइदह 5; आयत 64] 

अब यहाँ शब्द ‘यद‘ ﻳَﺪَ से कोई शारीरिक हाथ तात्पर्य नहीं है। बल्कि यह एक आलंकारिक विवरण है। यहूदियों ने गरीब मुसलमानों को ताना देकर अल्लाह पर एक अपमानजनक आक्षेप किया कि अल्लाह का हाथ बंधा है अर्थात अल्लाह कंजूस है। मुसलमानों को भौतिक सुख नहीं देता। 
इस पर उत्तर मिला कि अल्लाह के दोनों हाथ खुले हैं अर्थात अल्लाह तो उदार है। अल्लाह इन गरीब मुसलमानों को आध्यात्मिक और भौतिक सुख, दोनों देगा और तुम देखते रह जाओ गे। अब ज़रा हम ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध सूक्त, मण्डल 10, सूक्त 90, को देखलें जिसको पुरुष सूक्त कहा जाता है। 

इस सूक्त में आर्यों के ईश्वर को एक पुरुष की तरह बताया गया है और इस शरीरधारी ईश्वर के अंगों से अलग अलग वस्तुओं का पैदा होना बताया गया है। 
इसी सूक्त के मंत्र 12 और 13 को देखिए, 

बराह्मणो.अस्य मुखमासीद बाहू राजन्यः कर्तः | ऊरूतदस्य यद वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत || चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत | मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च पराणाद वायुरजायत || 
उस परमेश्वर के मुख से ब्राह्मण उत्पन्न हुए, उसके बाहु से क्षत्रिय, उरू से वैश्य और पैरों से शूद्र उत्पन्न हुए। उसके मन से चंद्रमा उत्पन्न हुआ, उसके चक्षु (आँखों) से सूर्य, मुख से इंद्रा और अग्नि तथा प्राण से वायु उत्पन्न हुए। [ऋग्वेद 10/90/12-13] 

अब देखिए, इन मंत्रों में तो स्पष्ट लिखा है इनके पुरुष रूपी ईश्वर के किस किस अंग से क्या उत्पन्न हुआ। कुछ आर्यसमजी इस मंत्र 12 के अर्थ का अनर्थ करते हैं ताकि इस मंत्र में पैदाइश के आधार पर जो भेद भाव बातया गया है उसपर पर्दा डालें। इन लोगों के अनुसार यहाँ यह बताया गया है कि एक समाज में ब्राह्मण का स्थान मुख के सदृश है, क्षत्रिय का स्थान बाहु के सदृश है, वैश्य का स्थान उरू के समान है तथा शूद्र का स्थान पैरों के समान है। 
लेकिन यदि हम इस व्याख्या को स्वीकार कर लें तो इन आर्यों के लिए एक और चुनौती खड़ी होगी। अगर इन आर्यों के यह अर्थ मान लें तो अगले मंत्र में मानना पड़ेगा कि चंद्रमा को संसार में मन के सदृश और सूर्य को चक्षु के सदृश बताया गया है। इंद्र एवं अग्नि को मुख के समान मानना पड़ेगा और वायु को प्राण के समान। इस संसार में क्या चंद्रमा एकमात्र चंद्रमा है जो इसको इस सारे संसार का मन स्वीकार कर लिया जाए? क्या सूर्य एकमात्र सूर्य है जो इसको संसार की आँख स्वीकार कर लिया जाए? 
तो पता चला कि आर्यों के शाब्दिक खेल से उनके वेद विज्ञान वीरुध सिद्ध हो जाएँ गे। वास्तव में इन मंत्रों के वही अर्थ हैं जो मैंने लिखे हैं और पुरुष रूपी ईश्वर के अलग लगा अंग बताए गए हैं, जिन से अलग अलग चीज़ें उत्पन्न बताई गई हैं। सारे कुरआन में कुछ ऐसे शब्दों का प्रोयोग हुआ हैं जिन को समझने में लोगों को ठोकर लगी है। वह शब्द हैं ‘कुर्सी‘ ﻛﺮﺳﻲ एवं ‘अर्ष ‘ ﻋﺮﺵ ‘कुर्सी‘ ﻛﺮﺳﻲ अरबी भाषा में वस्तु को कहते हैं जिस पर बैठा जाता है। 
लेकिन इस शब्द का अनेक बार अरबी भाषा में आलंकारिक उपयोग भी होता है जब इसका अर्थ कभी प्रभुता, सत्ता और ताकत होता है और कभी ज्ञान। इसी आलंकारिक अर्थ में इस का प्रयोग सुरह बकरह 2; आयत 255 में हुआ है जहां फरमाया गया है , ﻳَﻌْﻠَﻢُ ﻣَﺎ ﺑَﻴْﻦَ ﺃَﻳْﺪِﻳﻬِﻢْ ﻭَﻣَﺎ ﺧَﻠْﻔَﻬُﻢْ ۖ ﻭَﻟَﺎ ﻳُﺤِﻴﻄُﻮﻥَ ﺑِﺸَﻲْﺀٍ ﻣِﻦْ ﻋِﻠْﻤِﻪِ ﺇِﻟَّﺎ ﺑِﻤَﺎ ﺷَﺎﺀَ ۚ ﻭَﺳِﻊَ ﻛُﺮْﺳِﻴُّﻪُ ﺍﻟﺴَّﻤَﺎﻭَﺍﺕِ ﻭَﺍﻟْﺄَﺭْﺽَ अर्थात – वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो उसने चाहा। उसकी कुर्सी (ज्ञान) आकाशों और धरती को व्याप्त है [2/255] इस आयत की तफ़सीर (व्याख्या) स्वयं हदीस में हमें मिलती है जिस से सारी गुत्थी हल हो जाती है। 

हदीस के मुख्य ग्रंथ बुखारी, कितबे तफ़सीर इस आयत की व्याख्या करते हुए यही लिखा ﻛﺮﺳﻴﻪ ﻋﻠﻤﻪ अर्थात – अल्लाह की कुर्सी से तात्पर्य उसका ज्ञान है [सही बुखारी, कितबे तफ़सीर, तफ़सीर सूरह बकरह] इस व्याख्या के बाद और किसी व्याख्या की आवश्यकता नहीं है। पवित्र कुरआन के एक महत्वपूर्ण शब्दकोश, इमाम रागिब की ‘मुफ़्रदात अल्क़ुरआन’ में भी इस आयत की यही व्याख्या की गई है। ‘अर्ष ‘ ﻋﺮﺵ शब्द अरबी भाषा में वास्तव में छत वाली चीज़ को कहते हैं। इसलिए पवित्र कुरआन के महत्वपूर्ण शब्दकोश, ‘मुफ़्रदात अल्क़ुरआन’ में यही लिखा है ﺍﻟﻌﺮﺵ ﻓﻲ :ﻞﺻﻷﺍ ﺷﺊ ﻣﺴﻘﻒ ﻭ ﺟﻤﻌﻪ ﻋﺮﻭﺵ 
अर्थात – ‘अल-अर्ष’ अपने धातु में कहते हैं छत वाली चीज़ को और इसका जमा (बहुवचन) ‘ऊरूष’ है। पवित्र कुरआन में भी है, ﻭَﻫِﻲَ ﺧَﺎﻭِﻳَﺔٌ ﻋَﻠَﻰٰ ﻋُﺮُﻭﺷِﻬَﺎ व हिय खावियतुन अला उरूषिहा अर्थात- जो अपनी छतों के बल गिरी हुई थी। [सूरह बकरह 2; आयत 259] 

अंगूर की बेल के ऊपर चढ़ाने में भी इस शब्द का प्रयोग होता है। बांस आदि की जालियों पर चढ़ाई हुई बेल को ﻣﻌﺮﺵ ‘मुआर्रष‘ भी कहा जाता है। पवित्र कुरआन में है ﻣَﻌْﺮُﻭﺷَﺎﺕٍ ﻭَﻏَﻴْﺮَ ﻣَﻌْﺮُﻭﺷَﺎﺕٍ मारूषातिन व गैरु मारूषातिन अर्थात – कुछ जालियों पर चढ़ाए जाते है और कुछ नहीं चढ़ाए जाते [सूरह अनाम 6; आयत 141] इसी से बादशाह के तख्त (सिंहासन) को भी उसकी ऊंचाई के कारण ‘अर्ष ‘ कहा जाता है। क्योंकि छत भी ऊंची होती है। अल्लाह के लिए पवित्र कुरआन में ‘ अर्ष‘ शब्द का चार प्रकार प्रयोग हुआ है। उन सब स्थानों में इसका आलंकारिक रूप में वर्णन हुआ है। यह स्वयं कुरआन से सिद्ध है। उदाहरण के लिए देखिए  
निस्संदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है, जिसने आकाशों और धरती को छः दिनों (कालों) में पैदा किया, और सिंहासन पर विराजमान हुआ; व्यवस्था चला रहा है। [सूरह यूनुस 10; आयत 3] 

अर्थात धरती और आकाशों पर उसी की प्रभुता है और वही उनकी व्यवस्था चला रहा है। यहाँ से स्पष्ट हो गया कि ﺍﺳْﺘَﻮَﻯٰ ﻋَﻠَﻰ ﺍﻟْﻌَﺮْﺵِ के अर्थ अपनी रचना पर प्रभुता और उसकी व्यवस्था है। इसीलिए ‘मुफ़्रदात अल्क़ुरआन’ में यही लिखा ﻭﻛﻨﻲ ﺑﻪ ﻋﻦ ﺍﻟﻌﺰ ﻭ ﺍﻟﺴﻠﻄﺎﻥ ﻭ ﺍﻟﻤﻤﻠﻜﺔ बतौर मुहावरा ‘ अर्ष‘ (सिंहासन) का शब्द सम्मान, प्रभुता और राज्य के अर्थों में बोला जाता है। 

तो अल्लाह के शरीरधारी होने का प्रश्न ही नहीं है, क्योंकि यह एक आलंकारिक विवरण है। परन्तू वेद का ईश्वर अवश्य सीमित और शरीरधारी है। तभी तो एक साल तक खड़ा रहने के बाद वह कुर्सी पर बैठ गया। वैदिक परमेश्वर एक साल तक खड़ा रहा, फिर कुर्सी पर बैठ गया शायद वैदिक धर्मियों को वेदों में परमेश्वर की कुर्सी का ज्ञान ही नहीं है, इसी लिए आए दिन इस्लाम के विरुद्ध शोर मचाए रहते हैं। 

चलिए मैं ही उनको उनके परमेश्वर की कुर्सी दिखा देता हूँ। अथर्ववेद काण्ड 15, सूक्त 3 मंत्र 1 से 3 पढ़ते हैं, सं संवत्सरमूर्ध्वो अतिष्ठत् तं देवा अब्रुवन व्रात्य किं नु तिष्ठसीति ॥ सो अब्रवीदासन्दीं मे सं भरन्त्विति ॥ यस्मै व्रात्यायासन्दीं समभरन् ॥ वह व्रात्य (परमेश्वर) वर्ष भर तक ऊंचा खड़ा रहा। उस से देवताओं ने पूछा, हे व्रात्य (परमेश्वर), तू क्यों खड़ा है? उस ने कहा, मेरे लिए मिलकर एक कुर्सी (सिंहासन) ले आओ। उस व्रात्य (परमेश्वर) के लिए, उनहों ने मिलकर कुर्सी (सिंहासन) लाई। 

और वह उसी कुर्सी पर बैठ गया। आगे आपको आर्य ही बताएँगे की वह कुर्सी क्या थी और कैसी थी। एक साल तक ईश्वर बिना कुर्सी के खड़ा रहा। ऐसा क्यों? लगता है वैदिक ईश्वर भूल ही गया था कि उसे बैठना है। इसी लिए देवताओं ने उसे याद दिलाया। आर्य भी जवाब दें। थोड़ा सा काम इन आर्यों को भी करने दो। इसके बाद जिस आयत पर शंका होती है वह इस प्रकार है, ﻭَﻳَﺤْﻤِﻞُ ﻋَﺮْﺵَ ﺭَﺑِّﻚَ ﻓَﻮْﻗَﻬُﻢْ ﻳَﻮْﻣَﺌِﺬٍ ﺛَﻤَﺎﻧِﻴَﺔٌ और उस दिन तुम्हारे रब के सिंहासन को आठ अपने ऊपर उठाए हुए होंगे [सूरह अलहाकह 69; आयत 17] 

यह मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि बतौर मुहावरा ‘अर्ष ‘ (सिंहासन) का शब्द सम्मान, प्रभुता और राज्य के अर्थों में बोला जाता है। और हमें यह भी ज्ञान है कि ‘उठाना ‘, ‘धारण करना‘ के शब्द का भी बतौर मुहावरा प्रयोग होता है। उदाहरण स्वरूप जब हम कहते हैं ‘उसने अपने पिता के कारोबार का बोझ उठाया है’, क्या हमारा तात्पर्य यह होता है कि उसने कारोबार को अपने सर पर या अपने शारीरिक हाथों पर उठाया हुआ है? 

ऐसा तात्पर्य तो कोई मूर्ख ही लेगा। ऊपर की इस आयत का अर्थ भी सीधा सा है कि अल्लाह के राज्य और प्रबुता को फरिश्ते उठाए हुए होंगे, अर्थात अल्लाह की भव्यता इन फरिश्तों के माध्यम से प्रकट होती है और उस दिन 8 के माध्यम से होगी क्योंकि उनकी रचना का उद्देश्य यही है। इस आयत में भी अल्लाह को शरीरधारी या मुजस्सिम नहीं बताया गया है जैसा की आर्यों के कुछ मूर्ख प्रचारक कहते हैं। 

लेकिन इसके विपरीत बृहदारण्यक उपनिषद में 8 वसुओं के बारे में कहा गया है जिनको बनाने की ईश्वर को आवश्यकता पढ़ी। देखो इसी उपनिषद का अध्याय 3, ब्राह्मण 9, मंत्र 3 और अध्याय 1, ब्राह्मण 4, मंत्र, मंत्र 12। अंत में आर्यों और अन्य हिंदुओं से, जो आए दिन अल्लाह के व्यक्तित्व के बारे में बकवास करते रहते हैं, उनके ही ऋषि याज्ञवलक्य की सलाह सुनाना चाहूँगा जो उनहों ने गार्गी को दी थी, जब गार्गी ने ईश्वर के बारे में अधिक प्रश्न कर दिए थे। याज्ञवलक्य ने कहा, हे गार्गी। इस से आगे मत पूछ। इस प्रकार पूछने से तेरा मस्तक गिर जाए गा। 

आक्षेप मुख से नहीं जानने योग्य देवता के बारे में अधिक प्रश्न कर रही है। हे गार्गी, इस प्रकार शस्त्र की मर्यादा का अतिक्रमण करके बहुत प्रश्न मत करो। उसके बाद वचक्नु ऋषि की पुत्री गार्गी चुप हो गई। [बृहदारण्यक उपनिषद 3/6/1

1 comment:

  1. Chutiye jo tum Sholka Bata rahe ho woh manusmriti ka hai bsdk wake



    ReplyDelete