Sunday 13 December 2015

क्या इस्लाम के अनुसार गैर मुस्लिम जहन्नम में और मुस्लिम जन्नत में जायेगा ..?


बहुत से मुस्लिमों और उन मुस्लिमों के कारण गैर मुस्लिमों के
बीच मे ये गलत विश्वास फैला हुआ है कि एक
मुस्लिम व्यक्ति सिर्फ मुस्लिम घराने मे पैदा होने भर से जन्नत का
अधिकारी हो जाता है जबकि एक गैर मुस्लिम व्यक्ति
चाहे कितना भी भला क्यों न हो वो दोजख मे
ही जाएगा ....॥
....सबसे पहले तो ये बात जान लें कि बिना अच्छे कर्मो के मुस्लिम
घर मे पैदा हुआ व्यक्ति भी दोज़ख से बच
नहीं सकेगा , पूरी कुरान पाक
की शिक्षा का सार यही है कि अल्लाह
का बंदा अल्लाह का आज्ञाकारी बने और अल्लाह के
आदेश मानकर हमेशा अच्छे और भलाई के काम करता रहे, पर यदि
वो व्यक्ति अल्लाह की आज्ञाओं का तिरस्कार कर के
अपने निजी स्वार्थो की पूर्ति के लिए,
अल्लाह द्वारा अवैध ठहराए गए कर्म करता रहे तो फिर ये
व्यक्ति भी नरक से बच नहीं सकता
अब रही बात हर गैरमुस्लिम के दोज़खी
होने की..... तो ध्यान रहे कि किसी
भी विश्वास को बनाने से पहले एक मुस्लिम को इस बात
का गहन अध्ययन कर लेना चाहिए कि इस विषय मे कुरआन क्या
कहता है ....
देखें कुरान अध्याय 2 एवं अध्याय 5 । यहाँ ऐसी कुछ
बातें बयान की गई हैं जोकि इस्लाम के पैगाम का सार है
जो समस्त पैगंबरों ने हर दौर के लोगो को दिया है !! कुरान ने ये मूल
सिद्धान्त दो जगह बयान किए है ।
सूरह बकरह अध्याय 2 , आयत नंबर 62 में अल्लाह ताला
फरमाते है : "निस्संदेह, जो लोग ईमान वाले हुए और जो लोग
यहूदी हुए और नासारा (ईसाई) और साबि , उनमे से जो
व्यक्ति ईमान लाया अल्लाह पर और आखिरत (परलोक) के दिन पर
और उसने भले कर्म किए तो उसके लिए उसके पालनहार के पास
(अच्छा) बदला है । और उनके लिए न कोई भय है और न वह
दुखी होंगे। "
बिलकुल यही सिद्धान्त सूरह माइदाह सूरह नंबर 5
एवं आयत नंबर 69 मे भी बयान हुआ है कि चाहे
कोई शख़्स मुसलमान हो या यहूदी हो या ईसाई हो या
साबी या फिर कोई दूसरे धर्म का । आखिरत मे फैसला
तीन बुनियाद पर होगा:
•> एकेश्वरवाद पर ईमान ।
•> परलोक (आखिरत के दिन) पर ईमान ।
•> और अच्छे कर्म करते रहना ।
ये सारी चीज़े हर मनुष्य के लिए लोक और
परलोक मे सफल होने के लिए ज़रूरी है। और इन
शर्तों को पूरा करने वाला हर शख्स, चाहे वो किसी
भी धर्म का हो अल्लाह उन्हें दण्डित
नहीं करेगा.... वैसे देखा जाए तो ये तीनों
उसूल इंसान की मूल प्रवत्ति मे मौजूद हैं और अक़ल
भी इन्ही बातों की तरफ इशारे
करती है , कि हमें सदा अच्छे, सबकी
भलाई के काम करने चाहिए, और ये, कि इस दुनिया के रचयिता का
आंख से ओझल एक अस्तित्व कहीं न
कहीं तो मौजूद है, और ये कि हमारे शरीर
की मौत के बावजूद हमारा अस्तित्व बाकी
बचा रह जाने की सम्भावना है, जिस अस्तित्व के साथ
हम एक और जीवन जियेन्गे ॥
खैर इन सब बातों के साथ ही ये भी अक़ल
का तक़ाज़ा है कि अगर किसी ऐसे शख्स के पास खुदा
के रसूल का पैगाम पहुंचता है और वो ये जान लेता है
की ये पैगाम बिलकुल सही है लेकिन
हठधर्मी की बुनियाद पर उसे मानने से
इंकार कर देता है तो ऐसे शख्स के लिए भी हमेशा
की जहन्नम की चेतावनी है
। ये ऐसा जुर्म है जिसका बयान कुरान पाक की बहूत
सी आयतों मे आया है, और जो भी ये जुर्म
करेगा चाहे वो साबि हो या यहूदी, या ईसाई या कोई और
पंथ वाला या चाहे वो मुस्लिम घराने मे पैदा हुआ कोई शख्स
ही क्यों न हो, उसे अपने इन कामो के लिए दण्ड
भोगना पड़ेगा.... यानि हर एक नबी की
उम्मत और आज के समय के मुस्लिमों को इन उपरोक्त
तीन मूल नियमों के साथ ही साथ अपने
नबी की शिक्षाओं का पालन करना
भी आवश्यक है, और ऐसा न किया जाने पर व्यक्ति
अपराधी ठहरेगा
अब रहा ऐसा शख्स जिसने किसी रसूल या
नबी का पैगाम सुना ही नहीं
या अगर सुना भी है तो उस तक गलत
जानकारी पहुंची है (जैसे कि आज के दौर
मे हम देख सकते है कि नबी सल्ल. और इस्लाम के
बारे मे बहुत ही गलत और भ्रामक बातें फैलाकर लोगों
को इस्लाम से दूर रखने की कोशिशें की
जाती हैं, और इन गलत जानकारियों के कारण
ही बहुत से गैर मुस्लिम लोग इस्लाम से नफरत करने
लगते हैं, और ये लोग हमेशा गलतफहमी मे
ही रहते हैं, सिवाय तब के, जब कोई जानकार मुस्लिम
उसे सच्चाई न बता दे, या अल्लाह पाक कोई और अन्य बहाना न
बना दे, उस व्यक्ति को सच्चाई बताने का ) तो ऐसे शख्स के लिए
ऊपर बयान किए हुए 3 सिद्धांत की बुनियाद पर फैसला
होगा।
एक बात और ध्यान मे रखिए कि अल्लाह पाक कभी
निर्दोष और ईश्वरीय संदेश से अनभिज्ञ लोगों को
दण्डित नहीं करते, और ये बात अल्लाह ताला कुरान
(सूरह 17 आयत 15) मे खोलकर फरमाते है कि, : "हम लोगो को
यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल न भेज दे "।
चुनांचे इस्लामी विद्वान इमाम ग़ज़ाली ने पांचवें
सदी में ये राय ज़ाहिर की थी कि
ग़ैर मुस्लिमों का एक गिरोह तो यक़ीनन रसूल अल्लाह
सल्ल अल्लाह अलैहि वसल्लम की नबुव्वत
की हक़्क़ानियत (सत्यवादिता) से पूरी
तरह वाक़िफ़ है और इस के इनकार के नतीजे में ख़ुदा
के अज़ाब का पात्र ठहरेगा, लेकिन वो ग़ैर मुस्लिम जिन्हों ने सिरे से
रसूल अल्लाह सल्ल अल्लाह अलैहि वसल्लम का नाम
ही नहीं सुना या नाम तो सुना है, लेकिन
आप की नबवी हैसियत और पैग़ंबराना
कमालात व औसाफ़ ( ईशदूत होने के कारण मिले चमत्कार एवं
विशेषताओं ) से परिचित नहीं हैं , उन के बारे में
यही उम्मीद है कि वो रहमत
इलाही (ईश्वर की दया) के दायरे में शामिल
हो कर नजात (मुक्ति) पा जाऐंगे।
.... इस विश्वास की बुनियाद सम्भवत: अल-अस्वद
बिन सरीअ़ की ये हदीस है
यहाँ उन लोगों का जिक्र है जिन तक किसी रसूल का
संदेश उनके जीवन मे नहीं पहुंच पाया था,
हदीस है कि अल्लाह के नबी
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : "चार (गैरमुस्लिम) लोग
क़ियामत के दिन बहस करेंगे, (यानि उनके पास एक वैध कारण होगा
खुद को निर्दोष साबित करने के लिए ) एक बहरा आदमी
जो कुछ नहीं सुनता, एक बेवक़ूफ आदमी,
और एक बूढ़ा आदमी और एक वह
आदमी जो दो पैगंबरों के बीच
की अवधि में मर गया हो। बहरा आदमी
कहेगा कि मेरे रब इस्लाम इस हाल में आया कि मैं कुछ सुनता
ही नहीं था। बेवक़ूफ आदमी
कहेगा कि इस्लाम इस हाल में आया कि बच्चे मुझे
मेंगनी से मारते थे, और बूढ़ा आदमी कहेगा
कि मेरे रब इस्लाम इस हाल में आया कि मैं कुछ समझता बूझता
ही नहीं था, और दो नबियों के
बीच की अवधि में मरने वाला
आदमी कहेगा कि मेरे रब मेरे पास तेरा कोई सन्देष्टा
नहीं आया। तो अल्लाह तआला उस समय इन लोगों
की एक परीक्षा लेगा, और जो व्यक्ति उस
समय भी अल्लाह के आगे हठधर्मी
दिखाकर अल्लाह की आज्ञा नहीं मानेगा
वो नरक मे जाएगा, और जो गैरमुस्लिम व्यक्ति उस समय अल्लाह
की आज्ञा मान लेगा वो जन्नत मे भेज दिया जाएगा ....
इसे इमाम अहमद और इब्ने हिब्बान ने रिवायत किया है, और
अल्बानी ने सहीहुल जामिअ़
हदीस संख्या : 881 के अंतर्गत
सहीह कहा है।
और देखिए... कुरान पाक मे ये स्पष्ट लिखा हुआ है कि कयामत
मे, यानि न्याय के दिन कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति
का "बोझ" नही उठाएगा, यानि कोई भी
व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के पाप का दण्ड
नहीं पाएगा, बल्कि सबको अपने अपने किए का दण्ड
भरना होगा .... तो आप समझ सकते हैं कि कुरान मे जहाँ जहाँ
नरक मे जाने वाले पापियों के समूहों का जिक्र है, तो वहाँ इन समूहों
का प्रत्येक व्यक्ति, वैयक्तिक रूप से इस बात का दोषी
है कि उस पर सत्य पूरी तरह प्रकट हुआ लेकिन
फिर भी हटधर्मी के चलते वो
अत्याचारी बना रहा, इन समूहों मे एक भी
व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जिसपर सत्य पूरी
तरह प्रकट न हो पाया हो, और केवल अनभिज्ञता के कारण
उसने ईश्वर का सत्य न स्वीकारा हो .... देखिए, कुरान
मे ये बात भली भांति स्पष्ट है, अल्लाह तआला का
फरमान है :
"जब कभी उस (नरक) में कोई गिरोह डाला जायेगा उस
से नरक के दरोगा पूछेंगे कि क्या तुम्हारे पास कोई डराने वाला
नहीं आया था? वे जवाब देंगे कि बेशक आया तो था,
लेकिन हम ने उसे झुठलाया और कहा कि अल्लाह ने कुछ
भी नाज़िल नहीं किया, तुम बहुत
बड़ी गुमराही में ही
हो।" (सूरतुल मुल्क : 8-9)
और देखिए :
"और काफिरों के झुण्ड के झुंड नरक की तरफ हाँके
जायेंगे, जब वे उसके क़रीब पहुँच जायेंगे, उसके दरवाज़े
उनके लिए खोल दिये जायेंगे और वहाँ के रक्षक उन से पूछेंगे कि
क्या तुम्हारे पास तुम में से रसूल नहीं आये थे? जो
तुम पर तुम्हारे रब की आयतें पढ़ते थे और तुम्हें
इस दिन के भेंट से सावधान करते थे, ये जवाब देंगे कि हाँ, क्यों
नहीं, लेकिन अज़ाब का हुक्म काफिरों पर साबित हो
गया।" (सूरतुज़्ज़ुमर : 71)
अत: हर वह व्यक्ति जिसे उचित ढंग से इस्लाम की
दावत
पहुँच चुकी है उस पर हुज्जत क़ायम हो
चुकी है, यानि उसके पास कोई बहाना नही
रहा कि वो सच को जान, व दिल से मान नही चुका था,
फिर भी वो अल्लाह और रसूल से शत्रुता करे, ऐसे
ही अपराधी को कयामत के दिन दण्ड का
अधिकारी ठहराया जायगा, और जो इस हाल में मरा है कि
उसे दावत नहीं पहुँची या अनुचित रूप से
पहुँची है तो उसका मामला अल्लाह के हवाले है,
वह अपनी सृष्टि को सर्वश्रेष्ठ जानता है और
अल्लाह किसी के साथ अन्याय या किसी पर
बिलकुल भी अत्याचार नहीं करता है, जैसा
कि अल्लाह का फरमान है सूरह 41 आयात 46 मे , "तुम्हारा
रब अपने बंदो पर तनिक भी ज़ुल्म नहीं
करता। "
तो ऐसे मे उम्मीद की जा
सकती है की अल्लाह ताला उसे उसके
सच से अनजान होने की बुनियाद पर माफ कर देंगे।
और अल्लाह बेहतर जानते है !

नबी सल्ल. के वालिदैन जन्नती होंगे या
नहीं, अक्सर ये सवाल इस गलतफहमी
मे पूछा जाता है कि इस्लाम के मुताबिक हर गैर मुस्लिम दोज़ख मे
जाएगा .... हालांकि ऐसा नहीं है और नबी
की विलादत से पहले के लोगों पर ये हुज्जत कायम
नहीं होती है इसलिए उनके अच्छे कर्मो
के आधार पर उनके जन्नत ही जाने की
ज्यादा उम्मीद होती है, सो पैगंबर सल्ल.
के वालिदैन के बारे मे भी है ....!!
लोग सवाल करते हैं कि नबी सल्ल. से पहले तो तमाम
अरब बुरी तरह बहुदेववाद के शिकार थे और
उन्हीं अरबों के बीच पैगंबर सल्ल. के
माता पिता भी रहते थे ..... यानि सवाल पूछने वालों के
ख्याल से नबी सल्ल. के वालिदैन भी
बहुदेववादी होंगे ....
लेकिन सच्चाई ये है कि उस दौर मे बहुदेववाद मे विश्वास करने वालों
के साथ ही एक अल्लाह को सबसे ज्यादा
प्रभुत्वशाली मानने, और इस नाते केवल अल्लाह
की पूजा करने वाले लोग भी मौजूद थे गौर
कीजिए, नबी सल्ल. के जन्म से कुछ दिन
पहले का एक मशहूर वाकया है अबाबीलों द्वारा काबा
की रक्षा का, उसको पढ़कर ये ज्ञात होता है कि
नबी सल्ल. के दादा हजरत मुत्तलिब
एकेश्वरवादी थे, इनकी अल्लाह मे भक्ति
इस बात से भी परिलक्षित होती है कि
इन्होंने अपने पुत्र (यानि नबी सल्ल. के पिता) का नाम
"अब्दुल्लाह" रखा था जिसका अर्थ है "एक सर्वशक्तिमान ईश्वर
का भक्त" ....
फिर नबूवत के ऐलान से पहले भी नबी
सल्ल. का रूझान एकेश्वरवादिता की ओर होना
भी ये संकेत देता है कि आप सल्ल. की
आनुवंशिकता एकेश्वर पर विश्वास की थी
... इन बातो से तो यही निष्कर्ष निकलता है कि
नबी सल्ल. के पिता, माता और दादा
एकेश्वरवादी भी थे ...
सो हमें आप सल्ल. के वालिदैन के जन्नत मे भेजे जाने
की ही ज्यादा आशा और
उम्मीद है ...

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