जब यूरोपियन देशो ने मुस्लिम इलाक़ो पे चढ़ाई शुरू की तो
उनका मुकाबला करने के लिये कुछ ऐसी शेर दिल
शख्सियात सामने आई जिन्होने न सिर्फ़ मुसलमानो की
कीयादत और उन्हे अपनी विरासत
की तरफ लौटने का पैगाम दिया बल्कि अंग्रेज़ो के सामने वो
चैलेंज पेश किया की खुद अँग्रेज़ उनकी
बहादुरी के सामने घुटने टेक दिये तो साथ मे उनके सामने
हुस्न-ए-अख़लाक़ का वो नमूना पेश किया की जो
अँग्रेज़ तारीख अब तक पेश करने मे नाकाम है जहाँ
हिंदोस्तान मे अंग्रेज़ो से लोहा लेने वालो मे टीपू सुल्तान
शहीद का नाम सबसे बुलंद मकाम पर है तो
वही शेखुल हिंद मौलाना महमूद-अल-हसन(रह.)
की ज़ात-ए-मुबारका भी है जिन्होने उस
समय मुल्क की कीयादत की
जब इस मुल्क मे कीयादत का आकाल पड़ गया था बल्कि
शेखुल हिंद मौलाना महमूद-अल-हसन(रह.) ने
मुज़ाहेदीन का वो लश्कर तय्यार कर दिया जिन्होने
अंग्रेज़ो का मुकाबला आखरी दम तक किया और अंग्रेज़ो
को मुल्क छोड़ने पे मजबूर किया ठीक इसी
तरह लीबिया मे अमीर उमर मुख़्तार
शहीद(रह.) ने इटली की
ज़ालिम होकूमत से मुकाबला और आज़ादी के लिये जद्द-
ओ-जहद की वो मिसाल कायम की आज
भी दुनिया मे ज़ालिमो के खिलाफ इन्क़िलाब मे उनके नाम-
ओ-तस्वीर की तख्तियो का इस्तेमाल करना
काबिल-ए-फख्र और काबिल-ए-रहनुमाई समझा जाता है
इन्ही शख्सियात मे से एक अज़ीम
मुजाहिद हैं अल्जीरिया के शैख़ अब्दुल क़ादिर अल
जेज़ायरी(रह.) और ये तस्वीर
उन्ही की है और मैं आज इनका
मुख़्तसार सा तारूफ़ पेश कर रहा हू ताकि हम अपने
माज़ी की कीयादत और
उनकी जुर्रत-ओ-बहादुरी को देख सके
और वैसा ही शौक पैदा करे इस उम्मत की
सरबुलंदी के लिये जद्द-ओ-जहद और
ज़ेहनी फ़िक्र का
शैख़ अब्दुल क़ादिर 1808 मे पैदा हुये और 21 की
उम्र मे हज करने मक्का गये और फिर जब वापस
अल्जीरिया आये तो वहाँ1830 मे फ्रांस ने
अल्जीरिया पे हमला कर वहाँ क़ब्ज़ा कर लिया था और
उस समय अल्जीरिया के ठीक
वही हालात थे जैसे हिंदोस्तान मे था यानी
की छोटी छोटी रियासते
थी जो आपस मे ही लड़ा
करती थी ठीक वैसे
ही अल्जीरिया मे मुसलमानो के
मुख्तलीफ कबीले थे जो एक दूसरे के
कट्टर दुश्मन थे और सिर्फ़ आपस मे ही लड़ा करते
थे और फ्रांस ने इसी का फ़ायदा उठा के हमला किया और
फ़ौरन बेगैर किसी परेशानी के
अल्जीरिया पे क़ब्ज़ा कर लिया था
शैख़ अब्दुल क़ादिर ने सभी कबीलो को
इकट्ठा किया और उनके आपसी एख्तिलाफात को ख़त्म
कर उन सभी को इस बात पे आमादा कर लिया
की वो सब मुत्तहीद हो कर फ्रांस के
खिलाफ लड़ेंगे और उन सब ने शैख़ अब्दुल क़ादिर को अपना
अमीर चुन लिया.....आप जानते है की उस
समय उनकी उम्र क्या थी...???....जिस
उम्र मे हमारे यहाँ के नौजवानो को इश्क-ओ-आशिकी
के भूत सवार होते है शादी और लड़कियो के
हसीन सपने आते है उस उम्र शैख़ अब्दुल क़ादिर ने
पूरे अल्जीरिया को फ्रांस के खिलाफ जद्द-ओ-जहद के
लिये एकजुट कर लिया था जब उन्हे फ्रांस के खिलाफ जिहाद के लिये
अल्जीरिया की अवाम द्वारा
अमीर चुना गया उस वक़्त उनकी उम्र
सिर्फ़ 25 साल थी
शैख़ अब्दुल क़ादिर ने सबसे पहले एक मस्जिद से फ्रांस के
खिलाफ जिहाद का एलान कर फ्रांस की ताक़त से टकरा
गये उस समय उनके पास कोई आर्थिक और न ही
सैन्य मदद हासिल थी बस वो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त
के भरोसे फ्रांस से टकरा गये और जल्द ही फ्रांस को
उन्होने शिकस्त देनी शुरू की और सिर्फ़
7 साल के अंदर अल्जीरिया के एक तिहाई से अधिक
हिस्से को फ्रांस से आज़ाद करा लिया और जो उन्होने इलाक़ा फ़तेह
किया वहाँ इस्लामिक शरीयत नाफीज़ कर
उसे दारूल इस्लाम घोषित कर दिया लेकिन फ्रांस ने अपनी
पूरी ताक़त वहाँ झोंक दी और बिल आख़िर
ये मर्दे मुजाहिद 1849 मे जा कर गिरफ्तार हुआ और फिर उन्हे
नज़रबंद कर दिया गया और फिर बाद मे इन्हे रिहा कर दिया गया और
बाद मे ये दमिश्क(आज के सिरिया की
राजधानी) चले गये और जब 1860 मे माउंट लेबनान
सिविल वॉर छिड़ी और ड्रूज़ और ईसाइयो के
बीच जंग छिड़ी तो इन्होने
अपनी जान पर खेल कर हज़ारो ईसाइयो की
जान बचाई और उन्हे पनाह दी ध्यान रहे
की ड्रूज़ एक इस्लाम से खारिज फिरका है ये शियो के
इस्मायली फिरके से निकले थे.......
जिस शख्स के मुल्क के उपर एक ईसाई देश फ्रांस ने हमला किया
और शख्स के खानदान व मुल्क को तबाह-ओ-बर्बाद कर दिया और
जिनके खिलाफ उन्होने अपनी पूरी
ज़िंदगी जद्द-ओ-जहद की लेकिन जब
उस धर्म के लोगो पे कही ज़ुल्म हुआ तो ये शख्स
चट्टान की तरह ढाल बन गया और उनकी
ज़िंदगी के लिये अपनो से दुश्मनी मोल
ली जिस धर्म के लोगो ने उस मर्दे मुजाहिद को अपना
मुल्क छोड़ने पे मजबूर कर दिया वही शख्स दूसरे
मुल्क मे जा कर उस धर्म के खिलाफ उठने वाली तलवारो
को अपने सिने पे ले कर उनकी हिफ़ाज़त करता
है....आज वही सिरिया है जहाँ पे शैख़ अब्दुल
क़ादिर ने ईसाइयो के लिये लड़े और उनकी हिफ़ाज़त
की और उस समय आज का ही फ्रांस है
जिसने उनके मुल्क पे हमला कर उन्हे मुल्क छोड़ने पे मजबूर कर
दिया था.......हमने तो तारीख वो मिसाल पेश
की है की मेरा दावा है की
दुनिया कभी भी ऐसी मिसाल पेश
नही कर सकती आज भी
सिरिया है और आज भी फ्रांस है और
वही फ्रांस सिरिया मे बम की बारिश कर
रहा है जहाँ के लोगो ने ईसाइयो के तहफ्फुज़ के लिये
अपनी खून की दरिया बहा दिये और
आज.......अफ़सोस कोई शैख़ अब्दुल क़ादिर(रह.) की
मिसाल पेश न कर सका.....आज जब अपने चंद शहरियो
की मौत पे सिरिया मे मासूम बच्चो के उपर बम
की बारिश कर दी जाती हो और
हमसे शांति की मिसाले माँगी
जाती हो तो ऐसे समय मे शैख़ अब्दुल क़ादिर
की मिसाल पूरे दुनिया के सिर्फ़ चेहरे ही
नही बल्कि ज़हन पे तमाचा है और
उनकी जैइस मिसाल न पेश करने का जुर्म
भी
Monday 14 December 2015
युरोपियन देशो के जुल्म पर मुसलमानों का असल जिहाद और कुरबानी .@
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