Friday, 11 December 2015

निकाह,तलाक,हलाला पर गैर मुस्लिम की गलत सोच.@


निकाह,तलाक,हलाला :- (हिन्दू भाईयों के समझाने के लिए पोस्ट)
भारतीय संविधान ही नहीं
पूरी दुनिया के व्यवस्था की पड़ताल कर
लीजिए हर जगह यदि कुछ सुविधाएं दी
गई हैं तो उन सुविधाओं के गलत इस्तेमाल पर दंड का प्रावधान
भी किया गया है ।इसे चेक ऐंड बैलेंस कहते हैं कि
किसी नियम या अधिकार का कोई गलत फायदा ना उठा ले।
आज़ादी के पहले या बाद में मुसलमानों की
यह बहुत बड़ी नाकामयाबी
रही है कि वह इस देश में इस्लाम के
सही रूप को प्रस्तुत नहीं कर सके।
मौलवी मौलाना जितना चंदा वसूलने में अपना प्रयास दिखाते
हैं उसका एक 1% भी इस्लाम के सही
रूप को सामने लाने की कोशिश करते तो अन्य मजहब के
लोगों में इस्लाम के खिलाफ झूठा प्रचार कर पाना किसी के
लिए सभंव नहीं होता , सही रूप से
प्रस्तुत करने का अर्थ धर्मांतरण से नहीं बल्कि
इस्लाम में दी गई व्यवस्था को तर्क और व्यवहार
की कसौटी पर रख कर सभी
समाज के लोगों के सामने रखना कि यह व्यवस्था इस कारण से है
और आज के दौर में इसके यह फायदे हैं ।इसीलिये
इस्लाम धर्म और इसकी व्यवस्थाओं के बारे में
झूठी कहानी किस्से गढ़ कर संघ इस देश
के कुछ लोगों को इस्लाम के बारे में बरगलाने और हृदय में घृणा भरने
में सफल रहा ।
दरअसल इस लेख का कारण आज सुबह की पोस्ट पर
आए मित्र अभिषेक सारश्वत के एक कमेंट से है जिसमें उन्होंने
इस्लाम की एक व्यवस्था "हलाला" पर एक
टिप्पणी कुछ यूँ की " हलाला वो है जो
तलाक दी गई बीवी दूसरे
व्यक्ति से विवाह करके उसका बिस्तर गर्म करे और तब तक करे
जब तक कि उस नये पति का मन ना भर जाए और वह तलाक ना देदे
, और फिर उसके तलाक देने के बाद पहला पति उस महिला से
विवाह कर सकता है" ।ज़ाहिर सी बात है कि शब्द
बेहद गंदे हैं और यह देश में पनप चुकी एक
संस्कृति का उदाहरण मात्र ही है । तब सोचा कि
अपने हिन्दू मित्रों को इसकी व्याख्या करके हलाला का
अर्थ समझाऊँ , क्या पता संघी साहित्य पढ़ने के बाद
उनके मनमस्तिष्क में भी यही भ्रम हो ।
इस्लाम में विवाह की व्यवस्था भी
उसी "चेक ऐंड बैलेंस" के आधार पर है जहाँ निकाह
एक अनुबंध (एग्रीमेंट) होता है जिसमें लड़के और
लड़की की रजामंदी
ली जाती है , लड़की के बाप
को यह अधिकार है कि वह अपनी बेटी
के भविष्य की सुरक्षा के लिए कोई भी
"मेहर देन" निर्धारित कर सकता है , और इसकी
ज़रूरत भी इसी लिये है कि यदि निकाह
( एग्रीमेंट) टूटा तो मेहर उस लड़की के
भविष्य को सुरक्षित करेगा ।यह सब कुछ लिखित में होता है और
इसके दो गवाह और एक वकील होते हैं जो सामान्यतः
लड़की वालों की तरफ से रहते हैं जिससे
कि लड़की के साथ अन्याय ना हो , सब तय होने के
बाद सबसे पहले लड़की से निकाह पढ़ाने
की इजाज़त उन्ही वकील
और गवाहों के सामने ली जाती है और यदि
लड़की ने इजाजत देकर एग्रीमेंट पर
हस्ताक्षर कर दिया तब निकाह की प्रक्रिया आगे
बढ़ती है नहीं तो वहीं
समाप्त , सबकुछ सर्वप्रथम लड़की के निर्णय पर
ही आधारित होता है ।
लड़की की इजाज़त के बाद पूरे बारात और
महफिल में मेहर को एलान करके सभी शर्तों गवाहों
और वकील की उपस्थिति में निकाह पढाया
जाता है जो अब लड़के के उपर है कि वह कबूल करे या ना करे ,
यदि इन्कार कर दिया तो मामला खत्म परन्तु निकाह कबूल कर लिया तो
फिर उस एग्रीमेंट और पर वह हस्ताक्षर करता है
और सभी गवाह वकील और निकाह पढ़ाने
वाले मौलाना हस्ताक्षर करके एक एक प्रति दोनो पक्षों को दे देते
हैं और इस तरह निकाह की एक प्रक्रिया
पूरी होती है ।
ध्यान रहे की लड़की को मिलने वाला मेहर
तुरंत बिना विलंब के मिलना चाहिए और उस मेहर पर उसके पति का
भी अधिकार नहीं है , वह उस
लड़की की अपनी भविष्यनिधि
है।
निकाह के बाद जीवन में यदि ऐसी
परिस्थितियाँ पैदा हो जाती हैं कि साथ जीवन
जीना मुश्किल है तो आपसी सहमति से
तलाक की प्रक्रिया अपनाई जाती है जो
तीन चरण में होती है , पहले तलाक के
बाद दोनों के घर वाले सुलह सपाटे का प्रयास करते हैं और जो कोई
भी समस्या हो उससे सुलझा कर वैवाहिक
जीवन सामान्य कर देते हैं , अक्सर मनमुटाव या कोई
कड़वाहट आगे के भविष्य की परेशानियों को देखकर दूर
हो ही जाती है और यदि
नहीं हुई और लगा कि अब जीवन साथ
संभव नहीं तो दूसरा तलाक दिया जाता है पर वह
भी दोनो की सहमति से ही ,
दूसरे तलाक के बाद गवाह वकील या समाज के अन्य
असरदार लोग बीच बचाव करते हैं और
जिसकी भी गलती हो मामले को
सामान्य बनाने की कोशिश करते हैं , अक्सर अंतिम
चेतावनी देखकर और बिछड़ने के डर से वैवाहिक जोड़े
गलतफहमी दूर कर लेते हैं या समझौता कर लेते हैं
और यदि सब सामान्य हो गया तो फिर से दोनो में निकाह
उसी प्रकिया के अनुसार होता है क्योंकि दो तलाक के
बाद निकाह कमज़ोर हो जाता है ।यदि सुलह समझौता
नहीं हुआ तो अंतिम और तीसरा तलाक
देकर संबंध समाप्त कर दिया जाता है ।इस तीन तलाक
की सीमा लगभग 2•5 महीने
होती है ।तलाक के बाद लड़की अपने माँ
बाप के यहाँ जाती है और इद्दत का तीन
महीना 10 दिन बिना किसी पर पुरुष के
सामने आए पूरा करती है, संघी साहित्य
इसे औरतों के ऊपर अत्याचार बताता है जबकि इसका आधार यह
है कि यदि वह लड़की या महिला गर्भ से है तो वह
शारीरिक रूप से स्पष्ट होकर समाज के सामने आ जाए
और ना उस महिला के चरित्र पर कोई उंगली उठाए ना
उसके नवजात शिशु के नाजायज़ होने पर । इद्दत की
अवधि पूरी होने के बाद वह लड़की अपना
जीवन अपने हिसाब से जीने के लिए
स्वतंत्र है ।
अब हलाला पर आते हैं , तलाक की प्रक्रिया
इतनी सुलझी हुई और समझौतों
की गुंजाइश समाप्त करते हुए है कि तलाक के बाद
पुनः विवाह की गुंजाइश नहीं
रहती क्युँकि बहुत कड़वाहट लेकर संबंध टूटते हैं।
एक दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते अलग होने
वाले तो पुनः विवाह का तो सोचना भी असंभव है।
एक और तरह का तलाक की संभावना
होती है , वह होती है
जल्दबाजी में या बिना सोचे समझे हवा हवाई
तरीके से दे देना या पति पत्नी
की छोटी मोटी लड़ाई में तलाक दे
देना , सामान्यतः ऐसी स्थिति में पति-पत्नी में
प्रेम और आपसी समझ तो होता है पर क्षणिक
आवेश में आकर पुरुष तलाक दे देते हैं , लोग ऐसा ना करें और इसे
ही रोकने के लिए "हलाला" की व्यवस्था
की गई है कि जब गलती का एहसास हो
तो समझो कि तुमने क्या खोया है , और जीवन भर घुट
घुट कर रहो क्युँकि हलाला वह रोक पैदा करता है कि
गलती का एहसास होने पर फिर कोई उसी
पत्नी से विवाह ना कर सके , मैने आज तक अपने
जीवन तो छोड़िए अपने समाज अपने माता पिता नाना
नानी के मुँह से भी "हलाला"
की प्रक्रिया पूरी करके किसी
का उसी से पुनः विवाह हुआ है ऐसा
नहीं सुना ना देखा , यहाँ तक कि बी आर
चौपड़ा की इसी विषय पर बनी
बेहतरीन फिल्म "निकाह" भी तलाकशुदा
सलमा आगा के दूसरे विवाह ( राज बब्बर से) बाद पहले पति
(दीपक पराशर) से निकाह को इंकार कर
देती है ।हलाला मुख्य रूप से महिलाओं के उपर
निर्भर एक प्रक्रिया है जिसमे वह तलाक के बाद
अपनी मर्जी से खुशी
खुशी किसी अन्य से विवाह कर
लेती है और फिर दूसरे विवाह में भी
ऐसी परिस्थितियाँ पैदा होती हैं कि यहाँ
भी निकाह टूट जाता है तब ही वह
इद्दत की अवधि के बाद पूर्व पति के साथ पुनः निकाह
कर सकती है वह भी
उसकी अपनी खुशी और
मर्जी से।हलाला इसलिए नहीं कि कोई
पुर्व पति से विवाह करने के उद्देश्य के लिए किसी
अन्य से विवाह करके तलाक ले और यदि कोई ऐसा सोच कर करता
है तो वह गलत है और हलाला का दुस्प्रयोग है परन्तु सच तो
यह है कि इस दुस्प्रयोग और गलती का
भी कोई उदाहरण नहीं ।यह सब स्त्रियों
के निर्णय के उपर होता है और कोई जबरदस्ती
नहीं कर सकता और कम से कम हर समाज
की महिला तो ऐसी ही
होती है कि वह बार बार पुरुष ना बदले , पुरुष तो खैर
कुछ भी कर सकते हैं ।तो हलाला अनिवार्य होने के
कारण पूर्व पति के लिए अपनी वह पत्नी
पाना लगभग असंभव हो जाता है ।हलाला औरतों का सुरक्षा का
कवच है कि पति तलाक देने के पहले हजार बार सोचे और
जल्दबाजी में या छोटे मोटे गुस्से में अपना बसा बसाया घर
ना उजाड़े और यदि उसने गलती की तो
हलाला के कारण उसे फिर से ना पाने की सजा भुगते और
घुट घुट कर मरे , फिर समझ लीजिए कि हलाला एक
स्वभाविक प्रक्रिया है जो इस नियत से नहीं
की जाती कि फिर से पहले पति
पत्नी एक हों बल्कि महिला का दूसरा विवाह अन्य
कारणों से विफल हुआ तभी वह पहले पति से
विवाह कर सकती है, मतलब कि वह महिला अपने
पहले पूर्व पति के लिए अब हलाल है।महिला के
इसी तीन बार निकाह को हलाला कहते
हैं।
ध्यान रखें कि जैसे पति तलाक दे सकता है वैसे ही
पत्नी भी वैवाहिक जीवन
तोड़ने के लिए अपने पति से "खुला" ले सकती है और
वह उसके अधिकार में है ।आशा करता हूँ कि अब सब स्पष्ट हो
गया होगा ।
Agar mard apni bivi ko 3 talaq ek waqt mein
day day to talaq ho jati hai ya nahi?
ALLAH TAALA FARMAATAY HAIN
Talaaq 2 martaba hai ….(Al-baqra #229)
yani waqfay waqfay ke saath hai ye nehi k
akathhi 2 Talaaqain’ Ahed e Risaalat Hazra Abu
Bakar r.a k dor e khlaafat ke ibtdai 2 saal mein
3 talaaqain ek Talaaq hi shumar hoti thien …
(Muslim 1472)
Hazrat Abu Rakaana r.a ne apni Bivi ko ek hi
majlis mein 3 Talaaqain day dien thien phir iss
pr naadim o pshemaan huay Rsool s.a.w.w ne
Abu Rakaana r.a se frmaya: Wo teenon (3)
Talaaqain ek he hain ….
(Ahmed #265/1 Blooghal mraam #1009) Hadees
hasan hai .
Ek Riwayat mein hai k Nabi kareem S.A.W.W ne
Abu Rakaana r.a se keha k tum Umme Rakaana
se Rujoo kar Lo unnhon ne arz kiya mein ne
issay 3 Talaaqain day di hain to Aaap S.a.w.w ne
farmaya Mujhe maloom hai tum iss se Rjoo kr
Lo ……
{Sahih Abu Daowd #1922,,,Ibne Maaja
#2051,,,Darul Qutteni # 34-35/4,,,Tirmzi
#1177,,,ibne Hbbaan #97/10}
Agar 3 Talaaqain waqai ho jateen to Abu
Rakaana r.a ko Aaap s.a.w.w ruju ka hukam na
daitay Balke Umme Rakaana ko kisi aur shakhs
se Nikah ka mashwara daitay …
Nabi Kareem S.A.W.W ko khabar di gaee ke ek
shakhas ne apni Bivi ko akathhi 3 Tlaaqain day
dalien hain aap S.A.W.W ghazbnaak ho kr
kharay ho gae aur farmaya ;
Kya ALLAH TAALA KI kitaab se khaela ja raha
hai jab ke mein tumharay darmyaan mojood
hoon Hatta ke ek aadmi khara hua aur uss ne
arz kia ,
Aey ALLAH k Rsool ! kya mein issay Qatal na kar
daaloon ? (Ghaytalhfaan 261,,,Nissai #3430)
Hadees sahih hai.
inn tamaam Dalayl se maloom hua k agar koi
shakhs apni bivi ko akathhi 3 Talaaqain day
daita hai to wo dar Haqeeqat ek he shumaar ho
gi ,,,,,,,,,, Hazrat Ibne Abbaas , Hazrat Zubair bin
Awaam , Hazrat ABDUR REHMAN bin Auf ,
HAZRAT ALI , HAZRAT IBNE MASOOD RAZI
ALLAH TAALA ANHUMA waghaira ka be yehi
Fatwa hai ….
(Gayt allhqqaan 329/1,,,Fttah al baari 456/10)
Ibne Tymya rh issi k qayl hain ….(Alfttawa #
16-17/3)
Shaikh Ibne Baaz: Teen Talaaqain akathhi ek he
shumar ho gi ….(fattwa al islamia#49/3)
Shaik Ibn e Baaz ne ek doosray fatway mein
kaha ek kalmay se 3 tlaaqain ek he shumar ho
gi ….(Fattawa ibne baaz mtrjjam #177/1)
Saudi Majjlis ka fatwa :- Agar mard apni bivi ko
ek he Lafz k saath 3 Talaaqain day day to Ulema
ke sahi tar aqwaal ke mutabiq sirf ek hi Talaaq
waqae ho gi …..
(Fattwa al janna tu dayma tulbehoos alalmya wal
ftaah #163/20)
۞ HALALA
Halala Aise Nikah Ko Kahte Hai Jis Me Koi Admi
3 Talaq Wali Aurat Se Sirf Talaq Ki Niyat Se
Nikah Wa Mubashart Karta hai Taaki Wah Aurat
Pahle Shauhar Ke Liye Halal Ho Jaye. Ise
Mansha Se Nikah Ko Halala Kahte Hai .. yaani
kare kOi bhare kOi. Ek Interview me ek khatoon
ne kaha tha Talaq jab mard deta hai to Halala
bhi Mard ka hi hOna chahiye..ye nahi ke Galti
koi aur kare aur saza kisi aur ko mile.
RasoolAllah s.a.w Ne Halala Karne Wale Aur Jis
Ke Liye Halala Kiya Jaye Dono Par Lanat Farmai.
Sunan Tirmizi 894, Nasai, Darmi Baiheqi ,
Ahmad.
۩ Hazrat Umar r.a Farmate Hai Ahade Risalat Me
Log Halale Ko Badkari Kaha Karte The .
Hakim 2/199 Tabrani Ausat Kama Fil Majma
4/264.
ImamHaismi rh Ne Is Rijal Ko Sahi Rijal Kaha
Hai .
۩ Hazrat Ibne Umar r.a Se Halale Ke Bare Pucha
To Unhone Kaha Dono Badkaar Hai .
Ibne Abi Sheeba 4/294.
Shaikh Sabahee Hallaq Ne Ise Sahi Kaha Attaleeq
Alrauztunndiya 2/38 .
۩ Hazrat Umar r.a Ne Farmaya Mere Pas Halala
Karne Wala Jiske Liye Halala Kia Jaye Dono
Laye Gaye To Me Dono Ko Rajam Kar Dunga .
Ibne Abi Sheeba 4/294, Abudurrazzak 6/218.

1 comment:

  1. masha allah aapne bahot achchha likha
    allah aapko jjayekhair de

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