Tuesday, 8 December 2015

सुरे तोबा 9/5 और काफिरो का मारने का उदेश्य ..? ये गलत ऐतराज बिलकुल गलत .@


अब जिस क़ुरान की सूरेह नम्बर 9 और आयत 5 का ऐतराज किया है उसको
पूरा बता देते हैं. यह सूरः तब नाज़िल हुई जब
मुसलमानों और मक्का के मुशरिकोंके बीच हुई संधी को
मक्का के मुशरिकों ने तोड दिया. तब अल्लाहने यह सूरः नाज़िल की और उन मुशरिको को, 

जिन्हों ने संधी तोड़ी थी, को 4 महीने का समय दिया.

अगर इन चार महीनों में यह सीधे रास्ते पर नहीं आते हैं तो इन से जंग करो और जंग के समय में, जंग में (डरो नहीं),जहाँ पाओ इन का क़त्ल करो – फिर उसके आगे
वालीआयत आप को नहीं दिखी,

क्यू? क्यूंकि शैतानों को सिर्फ ऐसी ही चीज़ें दिखती हैं, जिसको वोह गलत ढंग से पेश कर के लोगों में बैर पैदा कर सकें. -- 

आगे की आयत में अल्लाह कहता है, (9/6) में "जो लोग
तुम्हारे संरक्षण में आते हैं (शान्ति चाहते है) उनको
अपनी सुरक्षा में एक ऐसी सुरक्षित जगह पर ले जा कर
पहुँचा दो, जहां पर वोह अल्लाह का पैगाम (शान्ति
का पैगाम) सुन लें, अर्थात सुरक्षित हो, क्यूंकि यह वोह लोग हे जो ज्ञान नहीं रखते. – 

आप को आयत नंबर 4 और 7 भी नहीं दिखी होगी. 9/4 में अल्लाह कहता है "जिन मुशरिकों से तुम्हारी संधी है और उन्होने तुम्हारे विरुद्ध दूसरों का साथ दिया है, तो उनके साथ सन्धि, संधी के समय तक पूरी करो." 

क़ुरान-9/7 में अल्लाह कहता है -"जिन लोगों ने तुम्हारे साथ"खाना-ए-क़ाबा" के पास सन्धि की थी और अगर वोह इस को क़ायम रखना चाहे तो तुम भी सन्धि को क़ायम रखो. 

सूरः तौबा में 129 आयतें हैं, लेकिन आप जैसे शैतानी प्रवित्ति के लोगों को

सिर्फ आयत नंबर "5" दिखती हैं, क्यूंकि इस आयत को
बिना संदर्भ के उधृत कर के लोगों में गलत बात फैलाई
जा सकती हैं. इसी बुद्धि के कारण आप जैसे लोग अपने
धर्म को भी समझ नहीं पाये और अपने ही तरीक़े से
धर्म को प्रचारित करने लगे. @

Post by-shoaib pathan

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