Tuesday 29 December 2015

कुरान को आसमानी किताब क्यों कहा जाता है?

यह बात सही है कि कुरआन में कुछ अच्छी बातें लिखी हैं लेकिन यह तो हर धर्म की किताबों में लिखी होती हैं और कोई भी समझदार इंसान लिख सकता है, फिर हम कुरआन को अल्लाह की किताब क्यों माने, क्या सबूत है कि कुरान अल्लाह की तरफ से ही है ?

जवाब - मैं इस सवाल का जवाब कई पहलुओं से दूँगा, क्यों कि कुरान ने अलग पहलुओं से अल्लाह के कलाम (वाणी) होने के सबूत दिए हैं, अगर आप घहराई से बिना पक्षपात के विचार करेंगें तो मैं आप को यकीन दिलाता हूँ कि कोई भी ज़रा भी शक बाकि नहीं रहेगा.

(1) पहली बात, अगर आप अरब का मुहम्मद (ﷺ) के टाइम का इतिहास पढेंगे जो इतिहास की बड़ी किताबों में आप को आसानी से मिल जाएगा, तोआप पाएँगे कि मुहम्मद (ﷺ) बिलकुल बिलकुल पढना लिखना नहीं जानते थे और तो और वो अपना नाम भी लिखना नहीं जानते थे और ना ही उन्हें शाइरी वगैरह का कोई शौक था,लेकिन अरब के लोग शाइरी के बादशाह थे वो अपना पूरा इतिहास और अपनी कई पीढयों के नाम भी शाइरी में ही बयान कर दिया करते थे,आप जानते हैं कि किसी भी भाषा या शब्दों का सबसे अच्छा इस्तिमाल एक शायर (कवि) ही करता सकता है उस ज़माने में अरब में एकसे बढ़कर एक शायर मौजूद थे, हर साल वहां शाइरी की बहुत बड़ी प्रतियोगिता होती थी जिस में दूर दूर के लोग भाग लेते थे, जीतने वाले शायर का शेर काबा की दीवार पर लगाया जाता था और उस शायर को सब सजदा किया करते थे

अब ऐसे माहौल में मुहम्मद (ﷺ) अचानक एक कलाम पेश करते हैं और दावा करते हैं कि यह कलाम अल्लाह की तरफ से है और अगर तुम्हे इसमें शक है तो तुम भी ऐसा कलाम बना कर दिखाओ (सूरेह बक्राह-23,24).

आप तसव्वुर कीजये एक तरफ कोई एक अनपढ़ आदमी है जिसे सब जानते हैं कि यह हम में 40 साल रहा है इसने कहीं से तालीम हासिलनहीं की और दूसरी तरफ इक़बाल, ग़ालिब, मीर और हाली जैसे महान शायर मौजूद हैं जो अपनी शानदार शाइरी के लिए मशहूर हैं, वो अनपढ़ आदमी इन शायरों को चैलेंज कर कह रहा है कि तुम सब मिलकर भी मेरे मुकाबले का कलाम पेश नहीं कर सकते, ये बड़े बड़े शायरउस आदमी से दुश्मनी रखते हैं उसके खिलाफ़ जंग लड़ते हैं उसकी दुश्मनी में अपनी जाने और माल खर्च करते हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि वे सब मिलकर भी एक पेज भी ऐसा नहीं लिख सके जिसको वे कुरआन के मुकाबले में दुनियां के सामने पेश करके कह सकें कि देखो हमने मुहम्मद (ﷺ) को झूटा साबित कर दिया है.

इससे साफ़ ज़ाहिर है कि यह अज़ीम कलाम किसी अज़ीम हस्ती ही का हो सकता है कोई इंसान तो अपने लिखे हुए कलाम के बारे में ऐसा दावा नहीं कर सकता.

(2) जो लोग अरबी भाषा का थोड़ा भी ज्ञान रखते हैं वो यह हकीक़त अच्छी तरह जानते हैं कि कुरआन ने अरबी भाषा को नई ऊँचाइयाँ दी हैं यानि कुरआन में बहुत हाई स्टेंडर्ड की अरबी शैली का इस्तिमाल किया गया है इतने स्टेंडर्ड की अरबी की कोईकिताब इसके बाद कभी नहीं लिखी जा सकी, आज भी जो कोई कुरआन की शैली के 10% करीब की अरबी बोले या लिखे उसे दुनियां में हाई स्टेंडर्ड अरबी बोलने वाला माना जाता है, इतने हाई स्टेंडर्ड की अरबी कोई आम इंसान लिखे यह नामुमकिन है.इससे भी यह बात साफ़ ज़ाहिर होती है कि कुरआन कोई आम किताब नहीं है.

(3) कुरआन में अल्लाह तआला ने दावा किया है कि इस में कोई ज़रा भी बदलाव नहीं कर सकता क्यों कि हम इसकी हिफाज़त करते हैं(सूरेह हिज्र-9)

इस बात का भी इतिहास गवाह है कि कुरआन में आज तक कोई एक नुक्ते का भी बदलाव नहीं हुआ, वरना यूं तो बाइबल भी अल्लाह की किताब है लेकिन सब जानते हैं कि उसके कितने ही नए एडिशन कुछ ना कुछ बदलाव के साथ आते रहते हैं, लेकिनकुरआन 1450 सालों से ऐसा ही है.इससे भी पता चलता है कि कुरआन कोई आम किताब नहीं है.

(4) आप जानते हैं कि कुरान करीब 600 पेज की एक बड़ी और मोटी किताब है इसके बावजूद यह लाखो नहीं बल्कि करोड़ों लोगोंको ज़ुबानी याद है, और इसका कुछ ना कुछ हिस्सा तो हर मुस्लमान को याद होता है, यह रुतबा दुनियां की और किसी भी किताब को हासिल नहीं है, आप सोच कर देखें किसी छोटी सी किताब को भी वर्ड-टू-वर्ड ज़ुबानी याद करना कितना मुश्किल काम है और अगर वो कोई 600 पेज की मोटी किताब हो तब तो यह काम बेहद मुश्किल हो जाता है और इतना ही नहीं फिर अगर वो किताब किसी ऐसी भाषामें हो जो आप को समझ ही नहीं आती तो ??? 

लेकिन कुरान को अल्लाह ने कुछ ऐसा बनाया है जो वो चमत्कारी ढंग से बड़ों का तो क्या कहना 12,13, साल का बच्चा पूरा कुरआन ज़ुबानी याद किया हुआ आप को मुसलमानों की हर गली या मोहल्ले में आसानी से मिल जाएगा यह तो आम है लेकिन ऐसे बच्चों की भी बहुत बड़ी तादाद है जिनको पूरा कुरआन याद है और उनकी उमर सिर्फ 6,7, और 8 साल है, अगर आप गौर करें तो यह कोई मामूली बात नहीं कि 600 पेज की एक मोटी किताब जो ऐसी भाषा में लिखी है जो गैर अरब को समझ नहीं आती और उसको छोटे छोटेबच्चे पूरा ज़ुबानी याद कर लेते हैं.इससे भी पता चलता है कि कुरआन कोई आम किताब नहीं है.

(5) कुरआन का एक कमाल यह भी है कि हर किताब तो एक खास तबके के लिए लिखि जाती है यानि लिखने वाला पहले यह फैसला कर लेताहै की मैं किस तरह के लोगों के लिए यह किताब लिख रहा हूँ कोई आम आदमी की समझ के अनुसार होती है और कोई बड़े एजुकेटिड लोगों को ध्यान में रख कर लिखी जाती है तो कोई ख़ास ज़माने और देश को ध्यान में रख कर लिखी जाती है, लेकिन कुरआन जितना अनपढ़ के लिखे हिदायत है उतना ही बहुत पढे लिखे के लिए भी हिदायत है, 

जैसे इसे पढ़कर आम लोग के ईमान लाने की बेशुमार मिसालें हैं ऐसे ही बहुत पढ़े लिखे एजुकेटिड लोगों के इस को पढ़ कर ईमान लाने की भी मिसालों की कमी नहीं यानि चाहे कोई मर्द हो या औरत, भारत से हो अफ्रीका से, अमीर घर से हो या गरीब घर से, बूढ़ा हो या नौजवान, बहुत पढ़ा लिखा हो या कम पढ़ा लिखा हो यह किताब सब को समझ में भी आती है और सब की रहनुमाई (मार्गदर्शन) भी करती है, इसी लिए कुरआन में अल्लाह ने फ़रमाया है कि- हमने कुरआन को नसीहत के लिए आसान बना दिया है, तो क्या कोई है नसीहत चाहने करने वाला ?(सूरेह क़मर-32)

और बहुत ज्यादा गहराई में जा कर बात समझने वालों के लिए तो यह समुन्द्र के जैसा है,आज तक अलग अलग आलिमों की तरफ से कुरआन की हजारों बड़ी बड़ी तफसीरें (Commentary) लिखी जा चुकी हैं लेकिन हमेशा लिखने वाले कहते हैं कि हमने तो कुछ भी नहीं लिखा अभी तो बहुत ज्यादा लिखना बाकि है.यानि एक तरफ तो कुरआन इतना सादा है कि एक आम रेढ़ी चलाने वाला भी इससे फाएदा हासिल करता है और दूसरी तरफ गहराई इतनी कि कोई बड़े से बड़ा आलिम भी यह दावा नहीं करता कि मैंने पूरा कुरआन समझ लिया है अब और ज्यादा कुरान में कुछ नहीं है बल्कि वोयह ही कहता है कि जितना समझा है उससे कहीं ज्यादा समझना बाकि है.इससे भी ज़ाहिर होता है कि यह कोई आम किताब नहीं है.

(6) एक अहम पहलू यह भी है कि जब हम किसी बड़े कवि या लेखक को पढ़ते हैं तो हमेशा हम देखते हैं कि वक़्त से साथ साथ उस लेखक के ज्ञान, भाषा शैली और विचारों में विकास हुआ है यह ना मुमकिन है कि एक लेखक लम्बे समय तक कुछ लिखता हो और उसके लेखन में विकास न हुआ हो, इसी विचारों के विकास की वजह से एक ही लेखक की शुरू ज़िन्दगी की लिखी हुई बातों और आखिर ज़िन्दगीकी लिखी हुई बातों में विरोधाभास मिलना एक आम बात है, आप चाहे इकबाल को पढ़लें या ग़ालिब को या विलियम शेक्सपियर को या किसी भी लेखक को जिसने सालों लिखा हो आप को उसके लेखन में विकास और विरोधाभास साफ नज़र आएगा, 

क्यों कि हर इंसान के विचारों में विकास होता रहता है.लेकिन कुरआन 23 साल के लम्बे अरसे में लिखे जाने के बावजूद उसमे आप को कोई विकास नज़र नहीं आ सकता, और ना ही उसमे विरोधाभास पाया जाता है जिस मापदंड के विचार, भाषा शैली, ज्ञान और दावे उसमे शुरू में हैं आखिर तक वैसे ही हैं, यह किसी इंसान के वश की बात नहीं यह अल्लाह ही है जिसके ज्ञान में विकास नहीं होता क्यों कि वो पहले से ही सब जनता है, इसी लिए कुरआन में लिखा है कि- अगर यह कुरआन अल्लाह के बजाए किसी और की ओर से होता तो वे इसके भीतर बहुत विरोधाभास पाते (सूरेह निसा-82) इससे साफ़ ज़ाहिर है कि कुरआन किसी इंसान का लिखा हुआ नहीं है.

(7) अब कुछ कुरआन की की हुई भविष्यवाणयों पर नज़र डालये जो अब इतिहास बन चुकी हैं- कुरआन के नाज़िल होते वक़्त दुनियाँ में दो बहुत बड़ी सलतनतें थी एक रूमी सलतनत जो ईसाइयों की थी उसका बादशाह हरकुल (हरक्युलिस) था दूसरी ईरानी सलतनत जो मजूसयों (आग को पूजने वालों) की थी और उसका बादशाह खुसरो था, ईरानियों ने रूमयों को बुरी तरह हरा दिया था और रूमयों के फिर से उठने के कोई आसार नहीं थे, मक्के के मुशरिक इस पर खुशियाँ मना रहे थे और मुसलमानों से कहते थे कि देखो ईरान के आगके पुजारी विजय पा रहे हैं और रोमन पैगम्बरों के मानने वाले ईसाई हार पर हार खाते चले जा रहे हैं, इसी तरह हम भी अरब के बुत परस्त तुम्हें और तुम्हारे धर्म को मिटा कर रख देंगे.

कुरआन ने ऐसे हालात में भविष्यवाणी की कि रूमी 10 साल के अन्दर फिरसे विजय पाएगें (सूरेह रूम), इसे सुनकर मक्का के मुशरिक मुसलमानों की मज़ाक उड़ाने लगे कि देखो मुस्लमान पागल हो गए हैं जो ऐसी बात कह रहे हैं जो मुमकिन ही नहीं है,लेकिन दुनियां ने देख लिया कि कुरआन की यह नामुमकिन भविष्यवाणी 9 साल के भीतर पूरी हुई, इतिहासकार भी हरक्युलिस की जीत को किसी चमत्कार से कम नहीं मानते.इससे भी पता चलता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.

(8) इतिहास से ही आप को पता चल सकता है कि एक वक़्त ऐसा भी था जब मुसलमानों की तादाद उँगलियों पर गिनने लायक थी और जो थे उनकी भी हालत गरीबी में ऐसी थी कि उनके पास अपनी हिफाज़त करने के लिए तलवारें भी ना के बराबर थी, जबकि उनके दुश्मन अनगिनत थे और बड़े बड़े सरदार थे जो मुसलमानों और इस्लाम को ज़मीन से मिटाने के लिए बेताब थे और देखने वाले समझ रहे थे कि अब मुसलमानों का बचना नामुमकिन है, ऐसे हालत में कुरआन ने दो भविष्यवाणी की एक मक्का शहर मुसलमान फ़तेह करेंगे और दूसरी लोग फ़ौज की फ़ौज इस्लाम क़ुबूल करेंगे (सूरेह नस्र).

जिस वक़्त यह दोनों भविष्यवाणी हुई उस वक़्त इनसे नामुमकिन बात और कोई नहीं थी लेकिन कुछ ही अरसे बाद दुनियां ने ये दोनों भविष्यवाणी भी पूरी होती हुई देखली थी.इससे भी अंदाज़ा होता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.

(9) मक्का में मुहम्मद (ﷺ) का एक पड़ोसी था वो कुरैश का सरदार था उसका नाम अबू लहब था वो और उस की बीवी अल्लाह के रसूल के बहुतबड़े दुश्मन थे वो हर तरह से उन्हें सताता था, उसकी मौत से करीब 10 साल पहले कुरआन ने भविष्यवाणी की थी कि वो कभी ईमाननहीं लाएगा और उसकी मौत अज़ाब से होगी (सूरेह लहब), वो इस्लाम दुश्मनी में कुछ भी कर सकता था अगर वो ईमान क़ुबूल करलेता जैसे उसकी बेटी और दोनों बेटों ने किया तो कुरआन की भविष्यवाणी गलत साबित हो जाती लेकिन वो ऐसा ना कर सका और उसकी मौत भीबहुत बुरी बीमारी से हुई जिससे उस का शरीर सड़ गया था उसके परिवार के लोगों ने भी उसके शरीर को हाथ नहीं लगाया.इससे भी पता चलता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.

(10) कुरआन के नाजिल होने से बहुत पहले अल्लाह के एक पैगम्बर मूसा (अलैहिस्सलाम) के ज़माने में मिस्र में फिरौन नामीएक राजा को जो ज़बरदस्ती खुद को खुदा कहलवाता था अल्लाह ने अज़ाब के तौर पर दरया में डुबा कर मार दिया था उसका ज़िक्र ओल्ड टेस्टीमेंट में भी है,कुरआन में उसके बारे में भविष्यवाणी हुई थी कि उसकी लाश को अल्लाह एक दिन ज़ाहिर करेगा ताकि बाद में आने वालों लोगों के लिए वो इबरत की निशानी बने (सूरेह यूनुस-92).

ध्यान रहे उसके अज़ाब से मरने के बारे में तो ओल्ड टेस्टीमेंट में ज़िक्र है लेकिन उसकी लाश पानी में गर्क नहीं होगी ऐसा कुरआन के अलावा किसी भी किताब में नहीं लिखा था,सन 1898 में चमत्कारी तौर पर उसके मरने के हजारों साल बाद उसकी लाश 'नील' नामी दरया के पास से मिली, जो ममी ना होनेके बावजूद भी हजारों साल तक गर्क नहीं हुई थी उसे आज भी मिस्र के म्युज्यम में देखा जा सकता है, उसकी लाश की पहचान और मिलने का विवरण 'डॉ. एलीड स्मिथ' की किताब ''royal mummies'' में देखा जा सकता है.

अगर किसी इंसान ने हकीकत से आंखें बंद करने की कसम ही ना खा रखी हो तो यह एक बहुत बड़ा सबूत है कि कुरआन अल्लाह की किताब है.इनके अलावा भी कुरआन और सही हदीसों में बहुत सी भविष्यवाणयां हैं जो पूरी हुई हैं लेकिन वो इल्मी तरह की हैं इसलिए मैं उन्हें स्किप कर रहा हूँ, लेकिन एक बात साबित शुदा है कि अल्लाह और उसके रसूल की की हुई एक भी भविष्यवानि आज तक गलत साबित नहीं हुई है.

(11) अगर आप किसी लेखक से कहें की एक छोटी सी कहानी लिखो और उसमे फला फला शब्द इतनी इतनी बार आना चाहिए और फला फला शब्द नहीं आना चाहिए और फला फला शब्द जितनी बार पहले वाक्य में इस्तिमाल होगा दुसरे में भी इतनी ही बार होना चाहिए जैसी 5,6 कंडीशन आप लगादें तो आप अंदाज़ा कर सकते हैं कि लेखक पहले तो इन शर्तों के साथ कुछ लिख ही नहीं पाएगा और अगर लिख भी दिया तो वो जितना टूटा फूटा होगा आप खुद समझ सकते हैं.

लेकिन कुरआन में अपनी बहतरीन शैली के साथ साथ गणित के पहलु से भी अनगिनत चमत्कार मौजूद हैं, मैं समझाने के लिए सिर्फ एक मिसाल देता हूँ, कुरआन मैं कहा गया है कि अल्लाह की नज़र में हज़रत ईसा (अ) की मिसाल हज़रत आदम (अ) के जैसी है (सूरेह आलेइमरान-59) यानि कि ईसा (अ) को बिना बाप के पैदा किया और आदम (अ) को बिना माँ बाप के पैदा किया,मायने के लिहाज़ से यह बात बिलकुल साफ़ है लेकिन अगर आप पूरे कुरआन में शब्द ''ईसा'' तलाश करें तो वो 25 बार पूरे कुरआन में आया है, और शब्द ''आदम'' भी पूरे कुरआन में 25 बार ही आया है, तो गिनती के लिहाज़ से भी यह दोनों एक जैसे ही हैं,अगर कुरआन में यह चीज़ें दो चार बार होती तो माना जाता कि यह इत्तिफाक से है, लेकिन यह गणित के चमत्कार तो कुरआन में अनगिनत हैं कुरआन में यह खोज अभी नई है और जारी है इसलिए इस टॉपिक पर अभी कुछ खास किताबें नहीं लिखी जा सकी, कुरआन में गणित के ऐसे चमत्कारों जो समझने के लिए आप हमारे ब्लॉग में कई पोस्ट हे और इस लिंक की विडियो देखें -http://www.youtube.com/watch?v=Y96KuhAQBMI

इस नई खोज से भी पता चलता है कि कुरआन इंसानी दिमाग की उपज नहीं है.

(12) कुरआन साइन्स की किताब नहीं है, उसका मकसद लोगों को साइन्स के बारे में बताना नहीं है लेकिन फिर भी ऐसी बहुत सीबातें कुरआन में हैं जिनकी पुष्टि आज साइन्स से होती है,मिसाल के तौर पर कुरआन में अल्लाह ने फ़रमाया - हमने हर जीवित चीज़ को पानी से पैदा किया है (सूरेह अंबिया-30)

आज से पहले तो शायद लोग इस बात को ऐसे नहीं समझते होंगे जैसे अब हम साइन्स की मदद से इस आयत को समझ सकते हैं,एक जगह अल्लाह ने कुरआन में अजीब सी कसम खाई - कसम है सितारों के मरने या टूटने के मौक़े की, और अगर तुम जान लो तो यह बहुत बड़ी कसम है (सूरेह वकिअह-75) आज से पहले लोग इस आयत को भी ऐसे नहीं समझ सकते थे जिस तरह आज हम जानते हैं कि सितारा मरने के बाद एक बेहद ताकतवर ब्लैक होल में बदल जाता है, तो वाकई यह बहुत बड़ी कसम है,इसी तरह और बहुत सी आयतें हैं जिनमे अंतरिक्ष, जल चक्र, पहाड़ों के बारे में और माँ के पेट में बच्चे के बन्ने के स्टैप वगैरा के बारे में बताया गया है, जो अब साइंस की मदद से हमें सही सही समझमे आती हैं, इस टॉपिक को ज्यादा जानने के लिए यह(Bible, Quran and Science, Author Dr. Maurice Bucaille) नामी किताब पढ़ें,किसी को धोड़ी देर के लिए कोई गलत फहमी हो जाए तो और बात है 

वरना आज तक साइन्स ने जितनी भी तक्की की है वो कभी कुरआन के खिलाफ़ साबित नहीं हो सकी और उल्टा साइन्स ने कुरआन को सच ही साबित किया है और बहुतसी आयातों को समझने में मददगार साबित हुआ है.इससे भी साबित होता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.

(13) कुरआन को आप यह ना समझें कि इसमें कोई अलग ही बातें बताई गई हैं, कुरआन अपने से पहली आसमानी किताबों का विरोधी नहीं बल्कि वो तो उनकी बार बार पुष्टि करता है, बस वो यह कहता है की धर्म के ठेकेदारों ने उन किताबों में अपनी अकल से छेड़ छाड़ करके उनमे काफी कुछ गलत चीज़े मिलादी है और लोगों से कहते हैं कि यह ईश्वर की तरफ से है, वो भी अल्लाह ही था जिसने पहले वे किताबें नाजिल की थी और यह भी अल्लाह ही है जिसने कुरआन नाजिल किया है.

इसके अलावा भी बहुत से पहलु हैं जिनसे कुरआन अल्लाह का कलाम साबित होता है लेकिन सबको एक पोस्ट में लिख देना मेरे लिए मुमकिन नहीं है, लेकिन एक ऐसे इंसान के लिए जो बिना पक्षपात के बातों को देखता और समझता है उसके लिए ये सबूत काफी हैं किकुरआन अल्लाह का कलाम है, और जिसने पक्षपात का चश्मा लगाया हुआ है उसके लिए हज़ार सुबूत भी कम हैं, वरना कुरआन में 6500 से ज्यादा आयतें हैं और ''आयत'' का मतलब ही ''निशानी'' होता है.

हमारी दावत (पुकार) इसके सिवा कुछ भी नहीं कि हम मुहब्बत और हमदर्दी के साथ ज़मीन पर रहने वाले इंसानों को उनके असल रब का यह पैगाम पहुंचा दें जो हमारे पास उनकी अमानत है, हम आप से इसके बदले में कुछ नहीं चाहते हमारा बदला तो रब के जुम्मे है,और कुरआन की दावत इसके सिवा कुछ नहीं कि वो इंसानों को उस दिन से खबरदार कर दे जो अब करीब आ लगा है, जिस दिन यह दुनियां ख़त्म हो जाएगी और इंसान और उनके रब के बीच का पर्दा उठ जाएगा और इंसान बंद आखों से भी वो सब कुछ देख लेगा जिसे आज वो खुली आखों से भी देखना नहीं चाहता, जिस दिन हर ज़ालिम को उसके हर ज़ुल्म की सज़ा मिल कर रहेगी और हर नेक को उसकी हर नेकी काबदला मिलेगा जिस दिन फैसले हमारी कमज़ोर अदालते नहीं बल्कि इंसानों का रब खुद करेगा.

कुरआन लोगों को बताना चाहता है कि तुम अच्छी बुरी ज़िन्दगी जी कर मिट्टी हो जाने के लिए पैदा नहीं किये गए हो बल्कि तुम्हारे अज़ीम रब ने एक अज़ीम स्कीम एक अज़ीम प्लान के तहत तुमको पैदा किया, अब जो चाहे अपने होने का मकसद इससे जान ले और जो ना चाहे ना जाने.अब जिसके जी में आए वो ही पाए रौशनी,हम ने तो दिल जलाके सरे आम रख दिया..

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