Sunday, 2 August 2015
इस्लाम में ""तलाक ए बिद्द्त ""का असल मकसद क्या...?
एक बैठक मे तीन बार तलाक के शब्द
उच्चारित कर के अपनी स्त्रियों को तलाक दे
देने का तरीका नबी स. से पूर्व अरब मे
प्रचलित था, लोग जब तब अपनी पत्नी को
छोटी मोटी बातों पर महज़ मज़ा चखाने के लिए
तलाक देकर छोड़ देते ... और फिर जब कभी
दिल मे आता तो फिर उसी स्त्री से विवाह कर
लेते, यानी औरत की जिन्दगी हमेशा डांवाडोल ही
रहती । उसे कुछ पता न रहता कि कब किस बात
पर उसका पति उसे तलाक दे देगा, और फिर
कभी अपनाएगा भी या नहीं ...
इस्लाम ने सबसे पहले तो इस एक बैठक मे
तलाक देने की कुप्रथा को खत्म किया, और
तलाक की प्रक्रिया को तीन महीने लम्बा
बनाया जिस समय मे किसी भी वक्त तलाक का
फैसला वापस लिया जा सकता है ... और तलाक
के फैसले पर कई बार पुनर्विचार कर के उसको
टालने की सम्भावना बढ़ाई जा सकती है,
अफसोस कि आज के समय अधिकतर भारतीय
व पाकिस्तानी मुस्लिम इस विषय मे जागरूक
नहीं हैं ...
दूसरा विधान इस्लाम ने तलाक की प्रक्रिया को
जटिल बनाने के लिए और स्त्री को आर्थिक
सम्बल देने के लिए मेहर की रकम तय करने का
बनाया,
और तीसरा विधान हलाला का रखा गया जिससे
एक बार तलाक के बाद दोबारा विवाह लगभग
नामुमकिन सा हो जाए जिस अंदेशे को जानकर
तलाक की सुविधा का गलत इस्तेमाल पुरुष
स्त्रियों को सताने के लिए न कर सके
एक बैठक (एक समय मे) में तीन बार तलाक
बोलकर तलाक देने का ये तरीका यानी 'तलाक
उल बिदअत' सभी इस्लामी विद्वानों के अनुसार
पापकर्म है ... और अल्लाह व रसूल स. का
हुक्म यही है कि तलाक कुछ क्षणों मे घटित
होनेवाली दुर्घटना न बन सके बल्कि तलाक तब
ही पूर्ण हो सके जब वास्तव मे पति और पत्नी
साथ जीवन बिताना बिल्कुल न चाहते हों ...
पवित्र कुरान मे आदेश है कि तलाक तीन महीनों
की अवधि मे जा के पूर्ण हो, इससे पहले किसी
भी पल तलाक का विचार त्यागा जा सकता है,
और पति पत्नी पहले की तरह सामान्य रूप से
साथ रह सकते हैं, यदि तीन महीने पूरे होने से
पहले वो तलाक का विचार छोड़ दें
सही बुखारी शरीफ़ मे Book of Divorce,
यानी किताब 63 में अलग अलग चेन्स से नम्बर
178,179, और 184 पर एक हदीस बयान की
गई है कि हजरत इब्ने उमर रज़ि. ने अपनी पत्नी
को एक बैठक मे तलाक दे दिया (और उनकी
पत्नी अपने मायके चली गईं )
जब हजरत इब्ने उमर के पिता यानी हजरत उमर
बिन खत्ताब रज़ि. ने इस विषय मे नबी स. से
पूछा तो आप स. ने फरमाया कि अपने बेटे से
कहो कि वो अपनी पत्नी को वापस घर बुलाए
और तीन तुहर की अवधि तक पास रखे व इतनी
मुद्दत मे यदि चाहे तो तलाक का विचार त्याग
कर अपनी पत्नी को साथ रख ले, और यदि
तलाक ही देना चाहे तो इन तीन महीनों की
अवधि मे बिना अपनी पत्नी से सम्बन्ध बनाए
उसे भले तरीके से विदा कर दे,
तो ये रहा हदीस और कुरान का आदेश ....
लेकिन हमारे मुआशरे के मज़हबी रहनुमा खुलकर
इस विषय मे मुस्लिमों को जाने क्यों शिक्षित
नहीं कर रहे ?? और एक बैठक मे तलाक का
तरीका इस्लाम मे प्रतिबंधित होने के बाद फिर
कब कैसे और क्यों मुस्लिमों मे प्रचलित हो
गया...??
हजरत उमर जब खलीफा थे तब मिस्र पहुंचने
वाले कुछ मुस्लिमों ने वहाँ की स्त्रियों के
सम्मुख विवाह के प्रस्ताव रखे, वे स्त्रियाँ
मुस्लिमों से विवाह करने को इस शर्त पर तैयार
हुईं कि पहले ये पुरुष अपनी पूर्व पत्नियों को
प्रचलित अरबी तरीके "तीन तलाक" बोलकर
तलाक दे दें, तभी वे उनसे विवाह करेंगी,उन
पुरूषों ने तीन बार तलाक का उच्चारण अपनी
पूर्व पत्नियों के लिए कर के मिस्र की उन
स्त्रियों को विश्वास दिला दिया कि उन्होंने
अपनी पूर्व पत्नियों को तलाक दे दिया है, और
मिस्र की स्त्रियों ने उनसे विवाह कर लिया
...॥
इन स्त्रियों को नहीं मालूम था कि इस्लाम मे
एक बैठक मे तलाक की इस विधी पर प्रतिबंध
लगाया जा चुका है .... पर जब उन स्त्रियों को
पता चला कि उनके पतियों के उनकी पूर्व
पत्नियों से तलाक नहीं हुआ तो वे अपने साथ हुए
इस धोखे की शिकायत लेकर खलीफा हजरत
उमर रज़ि. के पास गईंपूरा मामला जानकर
हजरत उमर ने उन धोखेबाज पुरुषों पर बहुत
क्रोध किया और एक बैठक मे दी गई तलाक को
भी पूर्ण तलाक मानने का विधान फिर से
इसलिए लागू कर दिया ताकि दोबारा से कोई
पुरुष ऐसा धोखा किसी स्त्री के साथ न कर
पाए...॥
स्पष्ट है एक बैठक मे तलाक को विधि सम्मत
एक विशेष परिस्थिति मे माना गया ताकि पुरुष
किसी प्रकार का धोखा किसी के साथ न कर
पाएं... लेकिन एक बैठक मे तलाक का ये तरीका
हमेशा और हर काल के लिए नहीं था ... ये बात
कम से कम अब हर मुस्लिम को अच्छी तरह
समझ लेना चाहिए ...॥
आज हमारे मुआशरे मे तलाक का मजाक इसीलिए
बना हुआ है क्योंकि किसी वक्त के झगड़े मे,
गुस्से मे यदि पति के मुंह से तलाक के अल्फाज़
तीन बार निकल आएं तो उसका तलाक हो गया
मान लिया जाता है , इसके बाद या तो न चाहते
हुए मियां और बीवी को अपनी फजीहत से बचने
को, जिन्दगी भर के लिए अलग हो जाना पड़ता
है, ... या हलाला के नाम पर उन्हें अनजाने मे वो
काम करना पड़ता है जिसे इस्लाम मे कब का
हराम ठहराया जा चुका है ॥ हमारे रहनुमा कब
मामला साफ करेंगे ????
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