और जो गलती से पैदा हो जाती हैं , वो
नारकीय जीवन जीने को बाध्य होती हैं,
सोच कर देखा जाए तो इसी एक दहेज की
कुप्रथा के कारण ही हमारे समाज की बेटियों को
हर क्षेत्र मे दबाया जाता है, विडंबना देखिए कि
वधू पक्ष ही वर को भरपूर दहेज भी दे,
अपनी
बेटी को अघोषित रूप से 24 घण्टे की सेविका
बनाकर वर पक्ष को दे दे, फिर भी रौब और
अकड़ वर पक्ष दिखाए, और कन्या पक्ष उसके
आगे झुका रहे..
शादी से पहले मां बाप के कंधो का बोझ होने की
हीनता लड़कियों के मन बैठा दी जाती है ...
और
शादी के बाद कम दहेज लाने को लेकर ससुराल
मे मिलने वाली मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना
को परिवार की मान मर्यादा बनाए रखने के लिए
लड़की पर ही हर ओर से दबाव डाला जाता है
...
ये स्थिति केवल गांव कस्बों की कम पढ़ी
लिखी लड़कियों की ही नहीं बल्कि बड़े शहरो की
उच्च शिक्षित और माडर्न लड़कियों की भी
परिवार और समाज के दबाव मे यही नियति
होती है
लेकिन बात यदि थोड़ी शारीरिक मानसिक
प्रताड़ना के बाद खत्म हो जाती तब भी गनीमत
थी पर ऐसा होता नहीं अक्सर दहेज हत्या, बहू
को जलाकर मार डालने के मामले ग्रामीण भारत
मे सामने आते रहते है जबकि शहरी समाज दहेज
प्रताड़ना के अनेक केस अदालतों मे लम्बित रहते
हैं .....
ये दहेज का दानव तब तक हमारी बेटियों
को खाता रहेगा, जब तक हम इस समाज से दहेज
के लालच का समूल नाश न कर डालें ....
वैसे तो इस्लाम मे दहेज प्रथा नहीं है पर
भारतीय मुस्लिमों की बेहद बुरी आदत है कि वो
इस्लाम की अच्छाईयों को अपनाकर दूसरों के
लिए प्रेरणास्रोत बनने की बजाय खुद ही दूसरों
की बुराईयों को अपना कर खुद बुरे बन जाते हैं
...
अभी तक तो मुस्लिमों मे दहेज के स्वैच्छिक
लेनदेन के अतिरिक्त दहेज की मांग के मामले नहीं
पाए गए हैं, पर इस्लाम से दूर भागने के मुस्लिमों
के लक्षण ऐसे ही रहे, और मजहब के रहनुमा
अब भी सोए रहे तो वो वक्त दूर नहीं जब दहेज
के लिए मुस्लिम लड़कियों को भी जलाया जाने
लगेगा, और मुसलमान भी अपनी बेटियों को मां
के गर्भ मे ही मारकर वापस उसी कुफ्र पर
पहुंच जाएंगे जहाँ से उठाकर नबी स.उन्हें
इन्सानियत की मेराज पर लाए थे
बुखारी शरीफ के अध्याय 62 (विवाह) की
हदीस 29 मे विस्तार से वर्णन है कि हजरत
उरवा रज़ि. ने अम्मी आएशा रज़ि से सूरह निसा
की आयत "अगर तुम्हें डर हो कि तुम उनके साथ
न्याय नहीं कर सकोगे तो फिर उनसे विवाह मत
करो..." के नाज़िल होने का कारण पूछा, तो
अम्मी आएशा रज़ि. ने बताया कि ये आयत
अनाथ लड़कियों का संरक्षण करने वाले उन
पुरूषों के लिए नाजिल हुई जो उन अनाथ
लड़कियों से प्रेम के कारण नहीं बल्कि उन की
सुन्दरता का रस लेने और उनकी धन सम्पत्ति
हड़पने की फिराक मे उनसे विवाह करना चाहते थे
,
स्पष्ट था कि वे उन लड़कियों की जायदाद
हड़पने और लड़कियों की सुन्दरता से मन भर
जाने के बाद उन लड़कियों को उनका अधिकार
भी न देते और उन लड़कियों से बुरा व्यवहार भी
करने लग जाते ...
सो अल्लाह ने इस कपटपूर्ण
भावना से किसी भी स्त्री से विवाह करने से
पुरुष को रोका है, और उस स्त्री की बजाय
किसी अन्य स्त्री से विवाह की आज्ञा दी है ।
यानि लड़कियो से दहेज मिलने के लालच , या
फिर उनकी सुन्दरता के लोभ मे विवाह करने की
अनुमति मुस्लिम को बिल्कुल नहीं है
इसी तरह एक हदीस शरीफ़ है कि
नबी करीम स.
ने फरमाया कि जो कोई व्यक्ति किसी औरत से
केवल उसकी ताकत और उच्चस्तर पाने के लिए
विवाह करता है तो अल्लाह उस व्यक्ति के केवल
अपमान मे ही बढ़ोत्तरी करता है ।
जो व्यक्ति
केवल किसी स्त्री की जायदाद मिलने के लालच
मे उससे विवाह करता है, तो अल्लाह उसे केवल
निर्धनता मे परिणित करता है, और जो व्यक्ति
किसी केवल स्त्री की सुन्दरता के कारण विवाह
करता है तो अल्लाह केवल उसमें कुरूपता की ही
बढ़ोत्तरी करता है
लेकिन जो व्यक्ति अपनी आंखों को सुरक्षित
रखने के लिए ( अपनी यौन शुचिता को बनाए
रखने के लिए ) विवाह करता है, और अपनी
पत्नी के साथ दयालुता और भलाई का व्यवहार
करता है
तो अल्लाह आशीर्वाद देकर उस वधू को वर के
लिए शुभकारी बना देता है, और उस वर को वधू
के लिए शुभकारी बना देता है ॥
"यहाँ भी स्पष्ट है कि दहेज या अन्य किसी लोभ
मे किसी स्त्री से विवाह करने को इस्लाम मे
एक अप्रिय और निषेध कर्म ठहराया गया है,
और केवल भलाई और सदाचार पर कायम रहने
के लिए विवाह किए जाने को प्रोत्साहित किया
गया है, जिससे दहेज अपराध जैसी, भ्रूण हत्या
जैसी कोई चीज समाज मे पनप ही न पाए
....
तो इस्लाम तो हर क्षेत्र मे बहुत उत्तम
शिक्षाएं देता है, आवश्यकता बस इन शिक्षाओं
पर अमल करने और इन शिक्षाओं का प्रसार
करने की है, और ये दोनों जिम्मेदारियां हमारी हैं
॥
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