छोटी मोटी बातों पर बीवी पर हाथ उठाने की
इजाज़त कुरान पाक कतई नहीं देता, बल्कि ऐसे
मौकों पर अपने आप पर काबू रखने का हुक्म ही
कुरान और हदीस ने शौहर को दिया है क्योंकि
जैव वैज्ञानिक आधार पर हर पुरुष की बनावट
स्त्री के मुकाबले अधिक शक्तिशाली व स्वभाव
आक्रामक रहता है, इस बात को ध्यान मे रखते
हुए कि अन्य पुरूषों की तरह मुस्लिम पुरुष भी
अपनी स्त्रियों पर अत्याचार और हिंसा न करने
लगें, अल्लाह ने बड़ी ज़िम्मेदारी मुस्लिम पुरूषों
को सौंपी कि वे अपनी पत्नी की नापसन्दीदा
बातों को अनदेखा कर दें, और अपनी पत्नी से
भला व्यवहार करते रहें
पवित्र कुरान मे अल्लाह का फरमान है कि ...
"अपनी पत्नी के साथ भले तरीक़े से रहो-सहो।
और यदि वो तुम्हें पसन्द न हों, तो सम्भव है
कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो लेकिन दूसरी
ओर अल्लाह ने उसमें बहुत कुछ भलाई रखी
होगी," (सुरा 4 आयत 19)
इसी तरह आप स. की ये हदीस शरीफ हजरत
अबू हुरैरा से रिवायत है, नबी (सल्ल0) ने
फरमाया,
"अपनी औरतों के साथ भला सुलूक
किया करो, इसलिये कि औरतें पसली से पैदा की
गई हैं और पसली टेढ़ी होती है, अगर तुम पसली
सीधी करना चाहोगे तो वह टूट जायेगी और अगर
उसी तरह छोड़ दोगे तो वो टेढ़ी ही रहेगी, तो तुम
औरत को जैसी वो है वैसी ही रखकर उससे काम
ले सकते हो, इसलिए औरत के साथ अच्छा
व्यवहार किया करो"
[ बुखारी शरीफ किताब 55, नम्बर 548: और
बुखारी, किताब 62: नम्बर 113 ]
अक्सर स्त्रियों पर इसी कारण से तो
अत्याचार हो जाते हैं कि मर्द खुद को औरत का
मालिक समझकर, अपनी पत्नी की अस्ल
शख्सियत और उसकी पसंद नापसन्द को
दबाकर उसको अपनी मर्ज़ी का गुलाम बनाकर
जीना चाहता है ....
लेकिन प्यारे नबी स. ने मुसलमानों को अपनी
बीवियों के साथ ये ज़ुल्म करने से रोक दिया है..
आप स. ने फरमाया कि तुम्हारी पत्नी तुम्हारी
गुलाम नहीं बल्कि तुम्हारी पार्टनर हैं ...
अल्लाह ने कुरान पाक मे फरमाया कि अपनी
पत्नियों को नुकसान पहुंचाने की बात मत सोचा
करो (2:231)
और आप सल्ल. ने पत्नियों के अधिकारों का
वर्णन करते हुए हुक्म दिया अपनी पत्नियों को
पिटाई न करो (सुनन अबू दाऊद, किताब-11,
हदीस-2137, 2138 और 2139 )
तो ज़ाहिर है बीवी पर मालिकाना जताने, बीवी
को दबाने या बात न मानने पर उस को पीटना
इस्लाम मे तो हरगिज़ नहीं
इस्लाम ने मुस्लिम पत्नियों को अन्यायपूर्ण
मारपीट से बचा लिया है, लेकिन समाज मे ऐसे
भी बहुत से केस ऐसे भी देखने मे आते हैं कि पति
तो सज्जन होता है, पर पत्नी ही अपनी अनुचित
महत्वाकांक्षाओं के चलते पति को परेशान करती
रहती है, ऐसे मे अपनी जैविक बनावट के चलते
शरीफ़ से शरीफ़ पति का हाथ भी स्त्री पर उठ
सकता है, अत: स्त्रियों को भी इतना समझदार
होना चाहिए कि यदि पति उनकी कुछ कमियों
को नजरअंदाज करता है, तो वे भी पति को
किसी मामूली बात के लिए अकारण उत्तेजित न
करें, चूंकि विवाह संस्था को एकतरफा प्रयास
नहीं बल्कि आपसी समझदारी ही सफल बनाती
है
पवित्र कुरान 4:34 मे भी पत्नी द्वारा ऐसा ही
एक बेहद गलत और अनुचित कदम उठाने की
दुर्लभ और एकमात्र परिस्थिति यानि पर-पुरूष
गमन मे उसे दण्ड देने की अनुमति पति को है ..
एवं इस मामले के अतिरिक्त किसी मामले मे
स्त्री पर हाथ उठाने को इस्लाम से कतई नही
जोड़ा जा सकता
याद रखिए पर पुरुष गमन/व्यभिचार वही
परिस्थिति है जिसके केवल संदेह मे पत्नी को
जिन्दा जला देना, पत्नी की हत्या कर डालना,
पत्नी का परित्याग कर डालना कई धर्मों के
अनुसार आदर्श व्यवहार था ...
मुस्लिम पुरूष
ऐसा होता अनुभव करे, तो उसे क्या आदेश दिया
गया है वो यहाँ देखिए :
"पति पत्नियों के रक्षक और भरण-पोषण
करने वाले है, क्योंकि अल्लाह ने उनमें से कुछ
को कुछ के मुक़ाबले में आगे रखा है, और इसलिए
भी कि पतियों ने (पत्नियों के भरण-पोषण पर)
अपने माल ख़र्च किए है, तो नेक पत्ऩियाँ तो
आज्ञापालन करनेवाली होती है और गुप्त बातों
की रक्षा करती है, क्योंकि अल्लाह ने उनकी
रक्षा की है। और जो पत्नियों ऐसी हो जिनके
सीमा पार करने का तुम्हें भय हो, उन्हें समझाओ
और बिस्तरों में उन्हें अकेली छोड़ दो और (अति
आवश्यक हो तो) उन्हें दण्ड दो। फिर यदि वे
तुम्हारी बात मानने लगे, तो उनके विरुद्ध कोई
रास्ता न ढूढ़ो। अल्लाह सबसे उच्च, सबसे बड़ा
है ॥"
(4:34)
इस आयत मे पत्नियों से गुप्त बातों (सतीत्व)
की रक्षा करने की अपेक्षा का ज़िक्र फिर
किसी स्त्री द्वारा सीमा पार करने की आशंका
पर सुधारात्मक कदम उठाने की बात से ये
स्पष्ट है, कि पति द्वारा पत्नी को हलका दण्ड
देने की अनुमति सिर्फ और सिर्फ बेहद गम्भीर
परिस्थिति मे तब है जब पत्नी किसी अन्य
व्यक्ति के साथ व्यभिचारोन्मत्त हो रही हो ...
और उसे बातचीत से, और फिर नाराजगी
दिखाकर बात समझाने के उपाय विफल हो चुके
हों ...
तब इसलिए कि परिवार टूटने से, व स्त्री
शरीयत द्वारा नियत वैवाहिक व्यभिचार के
मृत्युदण्ड से बच जाए, पति को अनुमति है कि
वो अपनी पत्नी को हलका दण्ड दे सकता है ...
और ये दण्ड देते समय उसे ध्यान रखना है कि
पत्नी को चोट न लगे बल्कि पत्नी केवल
शर्मिन्दा हो
और क्योंकि अल्लाह का फरमान है कि पति और
पत्नी एक दूसरे का लिबास हैं, यानी एक लिबास
की ही तरह उन पर एक दूसरे की शर्म छिपाने
और इज़्ज़त रखने की ज़िम्मेदारी है , इसलिए ये
दण्ड इस बात की आखिरी कोशिश के रूप मे
दिया जाए, कि शायद इसके बाद पत्नी मामले
की गम्भीरता को समझे, और व्यभिचार से खुद
को रोक ले, और इस बात और दण्ड की
जानकारी पति पत्नी के अतिरिक्त किसी और
को न हो, किसी तीसरे को इस अपमानित करने
वाली बात का पता न चले और पत्नी का सम्मान
समाज मे बना रह जाए ॥
वैसे मारने के लिए जो शब्द "इदरिबुहूना" इस
आयत मे आया है , इस शब्द का रूट "द,र,ब" है
और इसका एक और अर्थ होता है, "छोड़ना"....
अत: कुछ विद्वानों का मत ये भी है कि इस
आयत मे पत्नी पर हाथ उठाने की बात नही
बल्कि सुधारात्मक उपाय के तौर पर पत्नी को
अपने से अलग कर देना है .... खैर, हम
इदरिबुहूना का अर्थ शारीरिक दण्ड भी लें तब
भी मुझे कोई समस्या नजर नहीं आती, चूंकि
मामला व्यभिचार की ओर बढ़ने का है, जिसकी
सख्ती से रोकथाम न की जाए और विवाहित
स्त्री या पुरुष कोई भी व्यभिचार कर बैठे तो वो
शरीयत के अनुसार मौत की सजा के अधिकारी
हो जाएंगे,
अत: अपने प्रिय की जान बचाने को
थोड़ा सख्त कदम उठाना भी गलत नहीं माना जा
सकता
सोशल मीडिया पर अक्सर कुछ ऐसे फोटो देखता
हूँ कि खुली सड़क पर एक तथाकथित मुस्लिम
पुरुष अपनी पत्नी को पीट रहा है, इस फोटो को
इस्लामी कानून की परिणति बता कर इस्लाम को
अपमानित किया जाता है,
जबकि वो फोटो
इस्लामी शिक्षा का खुला उल्लंघन है, क्योंकि
वो आदमी अपनी पत्नी की इज़्ज़त नहीं रख रहा
बल्कि सरे बाजार अपनी पत्नी का अपमान कर
रहा है
इसी तरह कुछ बुरी तरह लहूलुहान स्त्रियों के
फोटो डालकर ये दावा किया जाता है कि इन
स्त्रियों को इनके पतियों ने शरीयत के अनुसार
पीटकर अधमरा कर डाला है, ....
...
ये भी इस्लाम पर निराधार आरोप है क्योंकि
कुरान सिर्फ एक बेहद गम्भीर और
अपमानजनक परिस्थिति मे ही पत्नी को दण्ड
और वो भी गम्भीर दण्ड नहीं बल्कि ऐसा दण्ड
देने की अनुमति देता है, जैसे एक मां अपने
जिद्दी बच्चे को आग से खेलने से रोकने के लिए
मारती है, ये ध्यान मे रखते हुए कि बच्चे को
चोट न लगे, बस वो मलाल मे आकर खतरे वाले
काम से खुद को रोक ले ...
उसी तरह प्रेमी पति
से भी अपेक्षा है कि वो अपनी स्त्री को तबाह
होने से बचाने को थोड़ी सख्ती दिखाएगा, जैसे
मां की मार हिंसा नहीं कहलाती, वैसे ही 4:34
की अनुमति भी हिंसा नहीं है
याद रखिए ये किसी तरह की जबर्दस्ती नहीं,
बल्कि केवल एक पाप, व्यभिचार यानी पत्नी
पति के साथ रहना चाहते हुए किसी और पुरुष से
भी अनुचित सम्बन्ध बनाना चाहे,
इस स्थिति
को खत्म करने का एक विकल्प है, पर यदि ऐसा
हो कि स्त्री की अपने वर्तमान पति के साथ
निभ न रही हो और वो किसी दूसरे पुरुष से
विवाह करना चाहती हो, तो वो पत्नी न्यायिक
आधार पर मेहर लौटाकर खुला लेने को पूरी तरह
स्वतंत्र है, और यदि ये स्थिति आए तो एक
समर्पित मुस्लिम से ऐसे मामले, या और किसी
भी मामले मे ये अपेक्षा नहीं है कि वो अपनी
पत्नी को जरा भी पीड़ा दे,
...
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