इस्लाम पर ये आरोप लगाते देखा है कि
इस्लाम मुस्लिमों को युद्ध मे जीती गई स्त्रियों
के "बलात्कार" करने की खुली छूट देता है ....
हालांकि ये सत्य नही है, बलात्कार वो होता है
जब कोई व्यक्ति विवाह से इतर किसी स्त्री
की इच्छा के विरुद्ध उससे जबरन यौन सम्बन्ध
बनाता है ....
इस्लाम के नियमों का ऐसी किसी
स्थिति को अनुमति देने से दूर दूर तक का
वास्ता नही है...!!
वास्तव मे कुरान मजीद मे सूरह निसा (सूरह
नम्बर-4) की आयत 22,23 और 24 मे उन
स्त्रियों का ज़िक्र है जिनसे एक मुस्लिम पुरुष
का विवाह करना हराम यानि सख्ती से निषेध है,
एवं इनके अतिरिक्त बाकी स्त्रियों से विवाह
करना वैध है ॥
4:24 मे लिखा है कि तमाम विवाहित स्त्रियों से
विवाह करना हराम है, सिवाय विवाहित गुलाम
स्त्रियों के, यानि विवाहित दासी से विवाह
करना जायज़ है इस्लाम मे .....
परंतु ऐसा क्यों ??
जबकि इस्लाम मे तमाम
विवाहिता स्त्रियाँ शादी के लिए हराम हैं, तो
विवाहित दासियां हलाल क्यो ?? ऊपरी तौर पर
देखने से ये बात अन्याय भरी लगती है, और ये
बात गले से नही उतरती कि जब एक विवाहिता
स्त्री का दोबारा तभी विवाह हो सकता है
जबकि उसका पहला पति उसको तलाक दे चुका
हो, अथवा मर चुका हो, तो फिर गुलाम स्त्री के
मामले मे अलग कानून किसलिए ??
.... लेकिन जब हम मामले का थोड़ी गहराई से
अध्ययन करते हैं तो मामला साफ हो जाता है कि
ये केस बाकी केसेज़ से अलग नहीं बस हमारी
समझ का फेर है
जो लड़कियां गुलाम हुआ करती थीं, इस्लाम के
विधान आने से पूर्व के लोग उनसे जिस्मानी
ताल्लुक तो बनाते थे पर उनसे विवाह नही करते
थे, विवाहिता दासी सिर्फ वो स्त्रियाँ होती थीं
जिन्हें युद्ध मे उनकी सेना की पराजय के बाद
गुलाम बना कर अरब के गैर मुस्लिम उन स्त्रियों
की इच्छा अनिच्छा की चिंता के बगैर उनसे हर
प्रकार का काम लेने के साथ ही साथ उनके
शारीरिक शोषण भी किया करते थे ....
इन्हीं
लोगों से जब मुस्लिमों के युद्ध हुए और उन
युद्धों मे मुस्लिमों की जीत हुई तो युद्ध मे
शामिल हुई विवाहित यहूदी और मुश्रिक
(बहुदेववादी) स्त्रियाँ मुस्लिमों की गिरफ्त मे
आ गईं
यानि इन्हीं मुश्रिक और यहूदी स्त्रियों के साथ
मुस्लिमों का विवाह करना वैध बताया गया है
जबकि वो स्त्रियाँ मुस्लिम पुरूषों से विवाह
करने के लिए स्वयं इच्छुक हों, जैसा कि आप
जानते हैं कि मुस्लिम विवाह मे वर और वधू,
दोनों की स्वतंत्र अनुमति ली जानी आवश्यक है
,
लेकिन विवाहिता गुलाम स्त्री से विवाह करने के
लिए एक शर्त और भी है .....
सर्वशक्तिमान अल्लाह पवित्र कुरान मे आदेश
देता है कि एक मुस्लिम पुरुष किसी मुश्रिक
स्त्री से विवाह नही कर सकता, जब तक कि वो
स्त्री ईमान न ले आए, एक मुश्रिक स्त्री से
विवाह करने से बेहतर है कि एक ईमान वाली,
अर्थात् मुस्लिम दासी से विवाह कर लिया जाए
॥
[अल-कुरआन, 2:221]
और यही हुक्म पवित्र कुरान 4:25 में भी दिया
गया है कि ईमान वाली, यानि मुस्लिम दासियों
से ही विवाह किया जाए, अर्थात् 4:24 मे
विवाहिता दासी के एक मुस्लिम से पुनर्विवाह के
लिए हलाल (वैध) होने की अनुमति तभी के लिए
है जब वो अपनी खुशी से मुसलमान हो गई हो
और उन औरतों के मुसलमान होने के बाद उनके
मुश्रिक और यहूदी पतियों उनका से विवाह खुद
ही टूट जाएगा . . . .
यानि विवाहिता दासी का
केस ऐसा ही है जैसे किसी तलाकशुदा अथवा
विधवा स्त्री से विवाह किया जाता है !!
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