रसूल करीम सल्ललहो अलेह व सल्लम के ज़माने
में जब युद्ध में अनेक मुसलमान मारे गये और
उनकी विधवा औरतों ,और उनकी लड़कियों के
आगे जीवन यापन का संकट खड़ा हो गया,
और क्योंकि युद्ध मे बड़ी संख्या मे मारे जाने
के कारण मुस्लिम पुरूषों की संख्या मुस्लिम
स्त्रियों के मुकाबले काफी कम हो गई थी ,
इसलिए तब उन बेसहारा विधवाओं और लड़कियों
को सहारा देने के लिए यह व्यवस्था दी गयी थी
कि एक मुस्लिम पुरुष एक से अधिक उतनी
स्त्रियों से विवाह कर ले जितनो का वो भरण
पोषण कर सके , ये विवाह भी तब हो सकता है
जब पुरुष की पहली पत्नी को इस विवाह से कोई
आपत्ति या तकलीफ न हो ॥
अत: स्पष्ट है कि इस्लाम में एक से अधिक
शादी की व्यवस्था मौज मस्ती के लिए नहीं,
बल्कि गरीब, विधवा, तलाकशुदा, अनाथ बेसहारा
औरतों को सहारा देने के लिए दी गई है .
जिन लोगों को ये लगता है कि अनेक स्त्रियों से
विवाह करने की अनुमति मुस्लिम पुरूषों की मौज
मस्ती के लिए है, वे ध्यान दें कि मौज मस्ती के
लिए पुरुष द्वारा एक से अधिक विवाह करने की
स्थिति तो तब बनेगी, जब पुरुष अन्य स्त्रियों
के सम्पर्क मे आए, उनके रूप सौन्दर्य पर
मोहित हो जाए,
लेकिन क्योंकि इस्लाम मे गैर स्त्री पुरूषों के
आपस मे अनावश्यक ढंग से घुलने मिलने, और
अकारण गैर स्त्री पुरुष की ओर नजर उठाकर
देखने की भी मनाही है इसलिए एक प्रैक्टिसिन्ग
मुस्लिम व्यभिचार या दूसरी शादी के बारे मे
सोच भी नहीं सकता, बल्कि उसके लिए तो
दुनिया की सबसे सुंदर औरत उसकी अपनी
पत्नी ही होगी
तो जिस समाज मे स्त्री पुरुष का घुलना मिलना
आम हो वहीं मौज मस्ती के लिए लोग पहली
पत्नी को नाराज कर के दूसरी शादी कर लेते हैं,
न कि इस्लामी व्यवस्था मे ।
भले ही भारत मे मुस्लिम पुरूषों के लिए एक से
अधिक स्त्रियों से विवाह की कानूनन अनुमति
हो, पर मैंने अपने जीवन मे आज तक किसी
प्रैक्टिसिन्ग मुस्लिम को एक से अधिक विवाह
किए हुए नहीं देखा ....
हां वे मुस्लिम जो इस्लाम
से दूर रहकर बेरोक टोक पराई स्त्रियों से घुलते
मिलते थे उन्हीं मे एक समय मे एक से अधिक
विवाह के मामले देखने मे आए, ठीक इसी कारण
से कि लोग पराई स्त्रियों मे घुलते मिलते थे
हिन्दू समाज के पुरूषों द्वारा भी एक समय मे
एक से अधिक शादियों के मामले मैंने देखे...
जबकि भारतीय हिंदू विधि मे पुरूष का एक समय
मे एक से अधिक विवाह करना कानूनन अपराध
की श्रेणी मे रखा गया है
खैर इस्लाम मे पुरुष द्वारा एक से विवाह की
व्यवस्था देने का कारण था कि तलाकशुदा और
विधवा स्त्रियों को जीवन यापन का सहारा
मिल जाए , फिर चाहे उनसे कुंवारे पुरुष शादी
कर लें या शादीशुदा पुरुष ....
और इस आदर्श
को मुस्लिम युवक अब भी निभाते हैं, क्योंकि अब
इतिहास की तरह मुस्लिम पुरूषों की संख्या की
कोई कमी नहीं है अत: आज के समय मे अपने
आसपास मैने बहुत से कुंवारे मुस्लिम पुरूषों को
तलाकशुदा और विधवा स्त्रियों से विवाह करते
और उस विवाह को निभाते देखा है ॥
No comments:
Post a Comment