हम जब भी इस्लाम मे युद्ध के
समय भी शत्रु स्त्रियों के सतीत्व और सुरक्षा
को मुस्लिमों द्वारा कतई हानि न पहुंचाने के
नियम के बारे मे बताते थे , तो एक भाई "उम्मे
किर्फा" का नाम लेते हुए पहुंच जाते और ये
आरोप लगाते थे कि उक्त उम्मे किर्फा नाम की
गैरमुस्लिम महिला की जघन्य हत्या मुस्लिमों ने
कर डाली थी,
और उसकी बेटी को मक्का के
काफिरो को एक गुलाम के रूप मे बेच दिया था ...
सच ये है कि उम्मे किर्फा की कहानी एण्टी
इस्लामिक साइट्स द्वारा गढ़ी गई है जिसके
लिए "सिरा" और "तारीखे तबरी" एवं मुस्लिम
शरीफ़ के तथाकथित प्रमाण दिए जाते हैं, लेकिन
सिरा और तबरी हदीस नहीं हैं, न ही इस नाते ये
इस्लामी ज्ञान का स्रोत हैं,
हालांकि इन किताबों (सिरा व तबरी) पर
मुस्लिमों की आस्था नहीं है, इन किताबों मे
इस्लामी आचार विचार के विरुद्ध कई बातें हैं
इन किताबों मे उम्म किर्फा की पूरी कहानी की
वास्तविकता भी संदेहास्पद है, .....
फिर भी, इन
अप्रमाणिक और संदेहास्पद किताबों से भी
मुस्लिम अपराधी नहीं ठहरते, इन किताबों मे भी
तथ्य यही हैं कि उम्म किर्फा स्वयं मुस्लिमों पर
आक्रमण करती थी और हिंसक, क्रूर और
बर्बर तरीकों से मुस्लिमों की हत्या करती थी
वो कई मुस्लिमों की हत्या की दोषी थी, और
जान के बदले जान का नियम जो इस्लाम मे
स्त्री पुरूषों के लिए समान है,
उस नियम के
तहत उसको मृत्युदण्ड दिया गया...
बहरहाल इस्लामी ज्ञान का स्रोत सही हदीस
और कुरान है, और उनमें आप कहीं उम्म किर्फा
का जिक्र तक नहीं दिखा सकते, तो इस कहानी
को हम इस्लाम विरोधियों का एक झूठा प्रपंच
से अधिक कुछ क्यों मानें,
हमारे सामने तो
मक्का के सरदार अबू सुफयान की पत्नी हिन्द
का प्रमाणिक उदाहरण है, जो युद्ध मे मुस्लिमों
को अत्यधिक हानि पहुंचाती थी, और युद्ध मे
नबी सल्ल. के प्रिय चचा हज़रत हमज़ा,रज़ि. का
कत्ल करवाने के बाद उनकी लाश को चीर कर
उनका कलेजा चबा गई थी, इसके बावजूद जब
मक्का विजय के अवसर हिन्द नबी सल्ल. के
समक्ष एक पराजित की तरह आई तो नबी
सल्ल. ने बस उस स्त्री को अपनी नजरों के
सामने से हटा दिया कोई दण्ड नहीं दिया ....
तो
हमने तो इस्लाम से यही सीखा कि क्रूर
स्त्रियों के प्रति भी जहाँ तक हो सके विनम्र
ही रहें ॥
रही बात सही मुस्लिम, किताब 19, नम्बर
4345 की तो वहाँ उम्म किर्फा का कहीं नाम
नहीं, और जैसा विरोधी लोगों की गन्दी ज़हनियत
ने अन्दाज़ा लगा लिया कि मुस्लिमों ने बनू
फज़ारा से अपहरण कर के एक युवती को मक्का
के काफिरो को एक गुलाम के रूप मे "बेच दिया"
तो वो भी झूठ है ....
बुखारी शरीफ मे प्रसिद्ध
हदीस वर्णित है कि अल्लाह उस व्यक्ति का
शत्रु हो जाएगा जो व्यक्ति किसी आज़ाद
शख्स को गुलाम बनाकर बेचकर उसका दाम
वसूल लेगा , इस हदीस का ज्ञान रखने के
कारण निष्ठावान मुस्लिमों ने स्त्रियों या पुरूषों
को अपने इतिहास से लेकर आज तक कभी नही
बेचा , लोगों को दास बनाकर बेचने की परम्परा
औरों की रही है ....
....
ऐतिहासिक तथ्य ये है कि नबी सल्ल. के
समय मे काफिरो से जितने भी युद्ध मुस्लिमों के
साथ हुए वो सारे युद्ध मक्का के काफिरो ने शुरू
किए, फिर अपने मित्र कबीलो के साथ योजनाएं
बना बनाकर किए, बनू फज़ारा भी मक्का के
काफिरो के मित्र थे और इस हदीस के पार्श्व
मे बनु फजारा ने मक्का वालों के साथ मिलकर
युद्ध किए थे जिसके फलस्वरूप अनेक मुस्लिमों
को उन्होंने बंधक भी बना लिया था
ऐसे ही एक युद्ध मे फज़ारा वालों की जब
मुस्लिमों के समक्ष हार हो गई और युद्ध
क्षेत्र मे मौजूद स्त्री एवं पुरूषों को मुस्लिमों ने
बंदी बना लिया, और हज़रत सलामा रज़ि. को
एक युवती दी गई (नौकरानी के तौर पर न कि
रखैल के) ,
इसी हदीस मे हज़रत सलामा रज़ि.
कम से कम तीन बार ये कसम खाते है कि वो
युवती मुझे बहुत पसंद थी मगर मैंने उसके साथ
कोई जबरदस्ती नहीं की ...
उधर अपने मित्र कबीले की इस युवती को
आजाद कराने के लिए मक्का के काफिरो ने नबी
सल्ल. के साथ समझौता किया, और नबी सल्ल.
ने वो युवती जैसी पवित्र वो सलामा रज़ि. के
पास आई थी, वैसी ही पवित्र उसके मित्र
मक्का वालों को सौंप दी जिसके बदले मे मक्का
वालों ने अपने पास पहले हुए युद्ध मे बंधक
बनाए हुए मुस्लिमों को रिहा कर दिया ....
वो युवती मक्का के काफिरो को बेची गई , ऐसा
अनुमान गिरी हुई सोच के लोग ही लगा सकते हैं,
या उन लोगों को भ्रम हो सकता है जिन लोगों
के दिमाग मे पूर्वाग्रह डाल दिया गया हो,
लेकिन संतुलित बुद्धि से, और दास व्यापार न
करने की इस्लामी शिक्षा को ध्यान मे रखते हुए
मुस्लिम शरीफ़ की इस हदीस पर सोचा जाए तो
स्पष्ट है कि यदि अपने मित्र कबीले बनू फज़ारा
की लड़की को खरीद कर मक्का वाले उसे गुलाम
बना लेते व उसका यौन शोषण करने लगते तो बनू
फज़ारा से मक्का वालों की दुश्मनी हो जाती
और मक्का वालों की ये खास प्लानिंग थी कि वे
मुस्लिमों के विरुद्ध रहने वाले सभी गैर मुस्लिम
कबीलो से दोस्ती बनाकर रखते थे ताकि मिलकर
मुस्लिमों का खात्मा कर सकें,
जैसा कि अल्लाह
पाक ने कुरान मजीद मे फरमाया है कि "ये लोग
मुस्लिमों के विरुद्ध एक दूसरे के मित्र हैं,
और तुम देखोगे कि जिनके दिलों मे रोग
(मुस्लिमों के लिए दुर्भावना) है वे दौड़ दौड़ कर
एक दूसरे से मिले जाते हैं ... "
अत: मुस्लिमों के खिलाफ मजबूत बने रहने के
लिए मक्का वालों ने उस युवती को उसके
परिजनो को सौंपने के लिए ही मुस्लिमों से मांगा
था....
अत: ये भी सिद्ध है कि इस्लाम का कोई
भी नियम कायदा कभी ऐसा नहीं रहा जिससे
किसी स्त्री की मर्यादा या प्राणो को जरा भी
नुकसान पहुंचने की आशंका रही हो ॥
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