Sunday, 2 August 2015

इस्लाम में बाप की जायदाद मेसे बेटी को बेटे की तुलना में बराबर हिस्सा क्यों नही ..?

सवाल :- मुस्लिम इस बात का तो बड़ा बखान करते हैं कि कुरान मे पैतृक सम्पत्ति मे बेटों के साथ साथ बेटी को भी हिस्सा देने का आदेश है, पर वो ये बात नहीं बताते कि कुरान मे पिता की जायदाद मे से बेटे को बेटी से दुगुनी जायदाद का वारिस बनाने की बात कही गई है ... 
क्या इससे सिद्ध नहीं होता कि इस्लाम मे औरत और मर्द को बराबरी का अधिकार नहीं है, और इस्लाम मे स्त्री को पुरुष से कमतर माना गया है ? 

जवाब :- भाई , पवित्र कुरान मे पिता की सम्पत्ति मे लड़की को लड़के से आधा हिस्सा देने का कारण ये है कि लड़की अपने पति से भी सम्पत्ति पाएगी .... 
साथ ही उसपर अपनी सम्पत्ति मे से अपने माता पिता का भरण पोषण करने की जिम्मेदारी नहीं होती, न ही इस सम्पत्ति से स्त्री पर अपने पति या बच्चों का भरण पोषण करने की जिम्मेदारी है, बल्कि सामान्यतया ये जायदाद व्यक्तिगत रूप से उस स्त्री के प्रयोग के लिए ही है जबकि बेटे को अपनी सम्पत्ति मे से अपने माता पिता, पत्नी बच्चों सभी का भरण पोषण करना है इसलिए उसका हिस्सा बहन से दुगुना होता है ...... 
और भाई आपने कुरान की बात की जिसमें बेटी के लिए पिता की जायदाद मे से अनिवार्यत: एक बड़ा हिस्सा निर्धारित होता है जिससे स्त्री सशक्त हो कर सम्मान का जीवन जी सकती है, क्या आप कुरान के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म की किताब मे बेटी पत्नी या मां को सम्पत्ति का अनिवार्य वारिस बनाए जाने की बात दिखा सकते हैं ??? 

यहाँ तक कि यदि एक स्त्री जिसके बाल बच्चे हैं उसके पति की मौत हो जाए तो बच्चों के हिस्से से अलग स्त्री का निजी हिस्सा पति की छोड़ी हुई सम्पत्ति का आठवा भाग अनिवार्यत: दिए जाने का प्रावधान है .... किसी और धर्म मे है ऐसी व्यवस्था भाई ??? 
हमने तो यही जाना कि पति की मौत के बाद सारी सम्पत्ति बेटों मे बांट दी जाती है स्त्री का कोई हिस्सा नहीं ... 

और यदि विधवा होनेवाली स्त्री निसन्तान हो तो फिर पति के भाई जब चाहे तब स्त्री को निकाल फेकते हैं, जबकि इस्लाम मे विधवा होनेवाली स्त्री निसन्तान हो तो बच्चे वाली से दोगुनी सम्पत्ति की वारिस उसे बनाने का प्रावधान है ॥ 
ज़ाहिर है पिता की सम्पत्ति मे बेटे को बेटी से ज्यादा देने का कारण न तो स्त्री के साथ भेदभाव का नजरिया रखना है, और न ही स्त्री को किसी से कमतर बताना, बल्कि ये एक बड़ी नीतिसंगत व्यवस्था है जिससे सामाजिक ताना बाना भी बना रहे और इसी के साथ साथ समाज मे स्त्रियों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति भी मजबूत हो जाए .... 

हमें नहीं लगता कि इस व्यवस्था मे कुछ भी आपत्तिजनक या अन्यायपूर्ण है ॥

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