Wednesday, 22 July 2015

इस्लाम और फिरकापरस्ती

आपने अकसर बरेलवी यानी सुन्नत वल जमाअत और अहले हदीस व देवबंद एक दुसरे को अकीदे के लिहाज से गालीया देते है!  

वहाबी जहन्नमी वाजिबुल कत्ल तक कहते है,पर एसे फत्वे देने वाले मौलवी क्या ये जानते है ,उनके फत्वो का फायदा कौन उठाता है! इस्लाम के दुशमन जी हाँ - आज ईसलाम को फैलने से रोकने का दावा करने वाले कट्टर लोगो की दुनिया मे देखो तो हमारे फत्वो से वे इसलाम को इंसानी धर्म साबित करते है और बरबर धर्म का दरजा देते है! मै जब इनके बिच अपने एक दोस्त के साथ पहुँचा तो दंग रह गया ..

एक किताब देखकर ,जिसमे लिखा था इसलाम धर्म मानव क्रत है!कही फातिहा कही उसका विरोध कही एक नमाजी के नमाज का तरीका गलत तो कही सही दोनो नबी से मनकुल ,जैहाद धर्म युद्ध कही बस संघर्ष जैहाद के भी दो चहरे..ऐसी कई बाते भरी पडी थी..कमाल की बात तो यह थी हजारो की तादाद थी मासुम लोगो पर जिनपर उसका असर था!
आईये हम जानेने कि कोशिश करें कहाँ तक सही है ,हमारे इख्तलाफ...
...अगर हम देखे सबसे पहली बात दीन है कुरआन हदीस ..जो बात इससे टकराये वह गलत है !यहाँ सबको इत्तेफाक है!
...पर क्या हमारे सारे इख्तलाफ कुरान हदीस के मुताबिक है!
....नही..बल्की कुछ इख्तलाफ बे सोची जिद है..
जैसे नबी को इल्मे गैब है या नही ,ये सारे फिर्के मानते है अपने नबीयो मेसे अल्लाह जिसे चाहता है गैब, की खबर देता है!
अब ये भी सही हदीसे मौजुद है कई बाते नबी को पता नही थी
जैसे सही बुखारी जिल्द १ पारा१ ३वही का बयान और पारा ५ हदीस.  ११५६ हजरत अनस से रावी है कि जिस जमाने मे मौता की लडाई हो रही थी उस जमाने में नबी करीम सल्लाहुअलैही वसल्लम ने कि उस वक्त जैद रजी. ने झंडा लिया और शहीद कर दिये गये फिर जाफर रजी. ने झंडा लिया और शहीद कर दिये गये फिर अब्दुल्लाह रुवाहा ने लिया वह भी शहीद कर दिये गये ..

तब नबी एकरीम की आँखो मे आँसु आ गये फिर खालिद बिन वलीद ने बगैर सरदारी झंडा लिया तो फतह हुई...
क्या नबी गैब अपने अख्तियार से जानते तो क्यों न वे सब बच जाते..कुरान मे सुरह आराफ आयत १८८ कह दो की अगर मै गैब जानता (यहाँ मुराद अल्लाह के बताये बिना) मै अपना बहुत सा फायदा कर लेता मुझे नुकसान न पहुँचता मै तो बस डराने वला खुश खबरी उनको जो ईमान लाये...
.सारी जमातो का यही अकीदा फिर भी आपस मे लडते है..
क्या अल्लाह खुश होगा...
नही इसी कारण हम पर दंगो की गरीबी की लानत पडी हुई है..इच्छा ये सब क्यो होता जब सबका अकीदा यही है कि नबी को गैब की खबर अल्लाह देता है ..तो..वजह है आप जो सुते है ..मौलवी जो किसी जुमा मिलाद आदी मे तकरीर करते है ,आप लोग बिना सोचे समझे जोश मे आ जाते है!..
नतीजा कौम कमजोर खुदा नाराज..
तरावीह का इख्तलाफ..
सुन्नत क्या है..सुन्नत नमाज वह नफ्ल है जो नबी ने पढी ..अगर ये मानिंद वाजिब फर्ज होती तो फर्ज कहते..कमाल है लोगे के फर्ज छुट जाते है परवाह नही सुन्नतो पर लडमरने को तैयार है..रसुल्लाह की खिदमत मे एक आदमी ने शिकायत कि मै नफ्ल नही पढ सकता मुझे बताइये मुझ पर कितने फर्ज है रसुल ने फर्ज नमाज और रोजे हज जकात बता दी..
उसने कहा मै इससे न बढाऊँगा न घटाऊँगा..जब वह गया नबी ने कहा अगर यह अपनी बात पर कायम रहा तो जन्नती है! और आज हम नबी से ज्यादा दीन जानते है जो तरावीह पर लडते है! अहले हदीस के बुजुर्ग वसीउल्लाह साहब फरमाते है तराबी नफ्ल है जितना चाहो पढो मगर दो दो करके..

फिरकापरस्ती और इस्लाम -

अल्लाह का दीन यानि दीने इस्लाम एक   मुकम्मल दीन है. (सूरह 5:आयत 3,) 


 इस में कोई मिलावट नहीं और ना ही इस पर किसी फ़िरक़े या मसलक का कोई लेबल है.(सूरह 39:आयत 3)


यहाँ देखे फिरकापरस्ती के बारे में कुरआन क्या कहता है 


जिन लोगों ने अपने दीन के टुकड़े टुकड़े किये और गिरोह गिरोह हो गये, ऐ रसूल तुम किसी बात में इन में से नहीं. इन का माअमला सिर्फ अल्लाह के सुपुर्द है, फिर वो इन्हें बतायेगा जो वो करते रहे है.” (सूरः आल अन’आम 

आयत 159/160)

ज़ाहिर है फिरकापरस्ती की इस्लाम मे कोई जगह नहीं, और फिरकापरस्ती करने वालों पर अल्लाह का गज़ब लाज़िम है


 फ़िरक़ा परस्ती के बारे में एक 

 हदीस:

“हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमेर रिवायत करते है के हुज़ूर (स.आ.वसल्लम.) ने फरमाया के, ‘मेरी उम्मत पर भी वो हालात आयेंगे, जो बनी इसराईल पर आये थे. बनी इसराईल 72 फ़िरक़ों में बट गयी थी. मेरी उम्मत 73 फ़िरक़ों में बट जायेगी. लेकिन एक फ़िरक़े के सिवाए बाक़ी तमाम फ़िरक़े जहन्नम में जायेंगे.’ सहाबाए किराम (र.आ.) ने पुच्छा, ‘या रसूलुल्लाह (स.आ.वसल्लम), वो कौनसा एक फ़िरक़ा होगा?” हुज़ूर (स.आ.वसल्लम.) ने फरमाया के, ‘जो मेरी और मेरे साहबा (र.आ.) की सुन्नतों पर अमल पैरा होगा.’ (तिर्मिज़ी, किताबुल ईमान, बबूल इफ़्टेराक़, पेज 2/89 & इबने माजा)


वैसे नबी पाक (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) की ये हदीस शरीफ़ फिरकापरस्ती की मुखालफत मे पेश आई थी, मगर आज के नादान मुसलमान इस हदीस को फिरकापरस्ती के सपोर्ट मे पेश करते हुए कहते हैं कि नबी (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) ने खुद एक फिरके को जन्नत मे जाने वाला बताकर फिरकापरस्ती को जायज़ कर दिया है,और जन्नत मे जाने के लिए फिरको मे रहना ही होगा क्योंकि हो सकता है जन्नत मे जानेवाला वो खुशनसीब फिरका हमारा ही हो लेकिन ये उन फिरका परस्तो का गलत खयाल है, और नबी (सल्ललाहो अलैहि वसल्लम) का फरमान है कि अगर दोज़ख से बचना है तो वो करो जो मैं और मेरे साहाबा करते हैं .और नबी और सहाबा ए किराम ने तो कभी खुद को मुस्लिम के अलावा कुछ न कहा, तो फिर भला वो लोग जो मुस्लिमों के अन्दर भी अपना एक अलग फिरका मानते हैं, क्या वो कभी जन्नत मे जा सकेंगे ? हकीकत सिर्फ इतनी है कि हमें सिर्फ मुसलमान बनकर जीना है, फिरका परस्त बनकर तो हम सिर्फ गुनाह मोल लेंगे


फिर सवाल होगा के लोगों को किस तरह पेहचाने? इस के बारे में है अल्लाह का फरमान


“ए लोगों, हम ने तुम्हे एक मर्द और एक औरत से पैदा किया, और तुम्हें क़ौमें और क़बीले बनाया, ताके तुम एक दूसरे को पेहचानो. बेशक, अल्लाह के यहाँ सब से ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है, जो तुम में सब से ज्यादा डरने वाला है. अल्लाह इल्म वाला और खबर रखने वाला है (सूरः आल हुजूरात, आयत 13).


इस लिये खुदारा, सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के खालिस और मुकम्मल दीने इस्लाम पर ही क़ायम रहो और अल्लाह की रस्सी कुरआन  को थाम लो


और तुम सब के सब अल्लाह की रस्सी (कुरआन) को मज़बूती से थाम लो और बिखर ना जाओ (सूरः आले इमरान, आयत 103)


.यानी अल्लाह पाक ने हमें फिरकापरस्ती करके दीन को तोड़ने का नही बलकि मिलजुल कर रहने का हुक्म दिया है , इन बातों को ध्यान मे रख कर हदीस को समझने की आदत डालो


आज फ़िरक़ा परस्ती और मसलक बंदी ने मुसलमानों को पूरी दुनिया में ज़लील।ओ ख्वार कर दिया है, क्यों की मुसलमानों ने अल्लाह की  मुक़द्दस किताब कुरआन  को छोड़ दिया है


 और रसूल कहेंगे, ऐ मेरे रब्ब, मेरी क़ौम ने  कुरआन को छोड़ रखा था (सूरः आल फ़ुरक़न, आयत 30)


नबी पाक आप स.आ.वसल्लम ने फरमाया


 एक वक़्त ऐसा होगा जब मुसलमान ज़लील-ओ-ख्वार हो रहे होंगे. सहाबा ए कीराम (र,आ.) ने पुच्छा।या रसूलुल्लाह (स.आ.वसल्लम.), क्या उस वक़्त मुसलमान तादाद (सांख्या) में कम होंगे? 

आप (स.आ.वसल्लम.) ने फरमाया नहीं, तादाद तो उनकी बहुत ही ज़्यादा होगी, मगर वो लोग भटक गये होंगे, यानी अल्लाह की रस्सी   कुरआन को छोड़ दिये होंगे

(सहीः अल-बुखारी  6.546,)

 रवि हज़रत अत्मन बिन अफफान.) 


क्या अल्लाह के फरमान और हुज़ूर (स.आ.वसल्लम.) के इरशाद के बाद भी हम अपने आप को फ़िरक़ा परस्ती और मसलक बंदी के जाल में फंसा कर रखेंगे और अल्लाह की किताब कुरआन को नहीं थामेंगे


क्या हुज़ूर (स.आ.वसल्लम) से लेकर सहाबा ए कीराम तबआ तबेईन का कोई फ़िरक़ा या मसलक था???


जगो मेरे भाईयो इस इख्तिलाफ ने कट्टर वादियो को ताकत दी और उनसे हमे गौदरा,मुजफ्फर पुर दंगो जैसे दंगे दिये..


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