Sunday, 19 July 2015
महेन्द्रपाल आर्य का अपने आपको मोलवी और कुरान पर नुक्ताचीनी करना गलत नही ..?
महेन्द्रपाल की ओर से यह भ्रम
फैलाया जा रहा है कि वह पूर्व में मौलवी महबूब
अली थे, केवल मौलवी ही नहीं अपितु हाफिज-
ए-
कुरआन भी थे। ज्ञात हो कि मौलवी वह होता है
जिसे कुरआन, हदीस, फिका, तफसीर, अकाइद,
इल्म-ए-कलाम, मन्तिक, फलसफा आदि का
पूर्ण
ज्ञान हो। यह सब ज्ञान अरबी भाषा के
माध्यम
से प्राप्त किया जाता है। अतः एक मौलवी
अरबी
भाषा का पूर्ण ज्ञानी होता है। यह कोर्स
करीब
पन्द्रह वर्षो का है।
दूसरी डिग्री महेन्द्रपाल (महबूब अली) के पास
उनके दावे के अनुसार हाफिज की भी थी।
हाफिज़
वह होता है जिसे पूरा कुरआन मुंह जुबानी कंठस्थ
हो, और वह जहाँ से चाहे खडे-खडे़ कुरआन पढ़
कर सुना सके।
मुझे असल इसी विषय पर बात करनी है
कुरआन की एक एक आयत को
समझने के लिये हजरत मुहम्मद सल्लललाहु
अलैहिवसल्लम की जीवनी को जानना आवश्यक
है। श्री महेन्द्रपाल जी अगर अपने दावे के
अनुसार
पहले मौलवी महबूब अली थे तो हम उन से यह
कैसे आशा कर सकते है कि वह मुहम्मद
सल्लललाहु
अलैहिवसल्लम की जीवनी या कुरआनी आयतों
के
शान-ए-नुजूल से परिचित नहीं होंगे। परन्तु जो
व्यक्ति हजरत मुहम्मद सल्लललाहु
अलैहिवसल्लम
की जीवनी व कुरआनी आयतों के शान-ए-नुजूल
से
परिचित होते हुये कुरआन की उक्त आयतों पर
प्रश्न खड़ा करें। हम उसे अपने दिमाग का
इलाज
कराने की सलाह देंगे। यह केवल हमारा निर्णय
नहीं। हम इसे पाठकों की अदालत में रखते हैं।
मक्के वाले जो मुहम्मद साहब
के घर का घेराव कर चुके थे जब उन्होंने देखा
कि
वे बच निकले हैं और उन के तमाम साथी मदीना
पहुँच कर आराम से रहने लगे हैं तो उन्हों ने वहाँ
भी मुसलमानों को तंग करने का प्रयास किया।
अतः पहले उन्होंने मदीने वालों को आपके विरुद्ध
उकसाना चाहा। इसमें कामयाब न हुए तो स्वयं
लाव-लश्कर लेकर मदीने पर चढ़ाई के लिए
निकल
पड़े। मक्के वालों की मदीने पर पहली चढ़ाई में
मक्के वालों की ओर से करीब सात सौ
व्यक्तियों
ने भाग लिया जबकि मदीने में मुसलमानों की कुल
संख्या उन से लगभग आधी थी। यहां से उन
आयतों का अवतरण आरम्भ हुआ जिनसे महेन्द्र
जी के दिल की धड़कनें बढ़ गयीं।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि मक्के वालों
ने मदीने पर तीन बड़े आक्रमण किये। पहला
हिजरत से दूसरे वर्ष, दूसरा हिजरत से तीसरे
वर्ष और तीसरा हिजरत के चौथे वर्ष, अतः
कुरआन की निम्न आयतें जिन पर महेन्द्र जी ने
ऐतराज किया है, वे भी स्थिति के अनुसार
समय-
समय पर नाज़िल होती रही हैं। यहाँ तक कि कुछ
आयतें हिजरत से आठ-दस वर्ष बाद फतह
मक्का
के समय भी नाज़िल हुईं।
अब कुरआन की वे आयतें देखें -
1. जिन लोगों को मुकाबले के लिये मजबूर किया
जा रहा है और उन पर जुल्म ढ़ाये जा रहे हैं अब
उन्हें भी मुकाबले की इजाजत दी जाती है क्योंकि
वह मजलूम हैं। यह इजाजत उन के लिये है जिन्हें
नाहक उनके घरों से निकाला गया। सिर्फ इस
लिये
कि वे कहते थे कि हमारा परवरदिगार अल्लाह है
(सूरह हज 49)
दूसरों के कन्धों पर बैठ कर खुद को बड़ा
दिखाने
वालों की कमी नहीं है ऐसे ही साहब हैं महेंदर
पाल
आर्य ,वह बताते हैं की जनाब किसी मस्जिद में
इमामत करते थे ,बेचारे ग़रीब इमाम की औक़ात
भी
क्या होती जिसका बस घरवाली पर नहीं चलता
वह इमाम पर गुस्सा उतार लेता है ,इन गरीबों को
खाना भी अलगअलग घरों से मिलता है वह भी
मिला मिला, न मिला ,महेंद्र ने सोचा क्यों न
कारोबार बदला जाए ,तो जनाब महेन्द्रपाल
आर्य
होगये ,खुद ही बताते है की पहले उनका नाम
महबूब अली था ,चलो पहुंची वहीँ पे ख़ाक जहाँ
का
खमीर था ,बेहतर हुआ कि जनाब ने जल्द ही
मस्जिद छोड़ दी वरना जैसी अक़्ल रखते थे न
जाने कितनो का इमान खराब करते ,वह जो
कक्षा
१ मे बच्चों को पढ़ाया जाता है न, क, से कबूतर
,जब बच्चा अगली कक्षाओं में जाता है तो उससे
उम्मीद की जाती है कि वह इस बात को खुद
समझ जाये कि ,क ,से कबूतर का क्या मतलब है
और वह यह ज़िद न करने लगजाये कि, क ,से
कबूतर ही होता है क से क़लम या क्लास या
कुछ
और नहीं बन सकता ,बस यही हाल है जनाब का
,कहते है कि अल्लाह ने कहा है कि , छ दिनों में
उसने सृष्टि को रचा है तो यह बताओ कि सूरज
नहीं था तो दिन का पता कैसे चला ,अरे वाह
पंडित जी ज्ञानी हो तो ऐसा हो,अरे मेरे भोले
पंडित अल्लाह ताला काल और आकाश से परे है
उसे इंसानी दिनों से क्या सरोकार ? यहां
तुम्हारे
जैसे भोले मानव को यह समझाया गया है कि
उसने
सृष्टि को छ पिरयड में बनाया है जब कि वह
चाहता तो एक शब्द कुन से सृष्टि को बना
सकता
था ,पंडित जी तुम्हारी यही अदाएं तो यह सोचने
पर मजबूर करती है कि कैसे कहदूं तुम मोलवी थे
तुम ने अल्लाह को अर्श पर बिठा कर यह प्रश्न
दाग दिया कि अल्लाह बड़ा है या अर्श ,अरे
महाशय कहा न कि वह काल व् आकाश से परे
है उसे बैठने उठने से कोई सरोकार नहीं है,उठना
बैठना ,सोना जागना यह सब इंसानी सिफ़ात हैं
ईश्वर तो इन सब से परे है, —
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Nicely written brother
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