खुदा के नाम से मुहम्मद साहब
ने अपना मतलब सिद्ध करने के लिए यह क़ुरआन
किसी कपटी-छली और महामूर्ख से बनवाया
होगा। थोड़ी देर के लिए अगर यह बात मान भी
ली जाए कि यह कुरआन किसी जंगली, अल्पज्ञ
और महामूर्ख व्यक्ति (खुदा माफ करें) द्वारा
बनाई हुई पुस्तक है तो यहाँ एक बड़ा सवाल यह
पैदा होता है कि क्या कोई अल्पज्ञ और जंगली
व्यक्ति इतनी शुद्ध भाषा में कोई पुस्तक
लिखसकता है ?
तथ्यों की बात बाद में करेंगे।
इस पुस्तक में व्याकरण आदि की लेशमात्र भी
गलती क्यों नहीं है ? आज तक इसपुस्तक में
किसी भाषा संशोधन अथवा सुधार की
आवश्यकता क्यों नहीं पड़ी?
1400 वर्षों की
लम्बी अवधि में भी किसी अरबी भाषा के
विद्वान औरविशेषज्ञ ने इस पुस्तक में कोई
गलती क्यों नहींपकड़ी? इस पुस्तक का आज
तक कोई प्रूफ संशोधन क्यों नहीं हुआ? कुरआन
की भाषा शैली विशुद्ध, अनूठी और अद्भुत है।
क्या कोई निरक्षर व्यक्ति इतनी विशुद्ध,
प्रवाहपूर्ण और अनूठी भाषा शैली का प्रयोग
कर सकता है ? दूसरा सवाल यह है कि मुहम्मद
साहब (सल्ल0) अपना ऐसा कौन-सा मतलब
सिद्ध करना चाहते थे जिसके लिए आपको
जंगली, अल्पज्ञ और छली-कपटी व्यक्तियों
कासहयोग लेना पड़ा ?
तीसरा सवाल यह है कि
क्या कोई छली-कपटी और स्वार्थी व्यक्ति
इतने उच्च नैतिक मूल्यों का प्रतिपादन और
स्थापन कर सकता है जितने उच्च और उत्तम
मूल्य कुरआन में प्रतिपादित किए गए हैं?
उदाहरणार्थ कुछ अंशों को देखिए -
1. ‘‘बेहयाई
के करीब तक न जाओ चाहे वह जाहिर हो या
पोशीदा।’’ (कुरआन 6-152)
2. ‘‘निर्धनता के
भय से अपनी औलाद का क़त्ल न
करो।’’(कुरआन 6-152)
3. ‘‘जब बात कहो,
इंसाफ की कहो चाहे मामला अपने नातेदार ही का
क्यों न हो।’’ (कुरआन 6-153)
4. ‘‘किसी
मांगने वाले को मत झिड़को।’’ (कुरआन
93-10)
5. ‘‘बुराई का बदला भलाई से
दो।’’ (कुरआन 41-34)
6. ‘‘भलाई में एक दूसरे
से बढ़ जाने का प्रयास करो।’’ (कुरआन
3-48)
7. ‘‘माँ-बाप को उफ तक न कहो और न
उन्हें झिड़को।’’ (कुरआन 17-23)
8. ‘‘जुआ,
‘शराब, देवस्थान व पांसे गंदे शैतानी कामहै इनसे
अलग रहो।’’ (कुरआन5-90)
चोथा सवाल यह है
कि क्याकोई विद्याहीन और जंगली व्यक्ति
रहस्य पूर्ण ब्रह्मांडीय सिद्धांतों का
प्रतिपादन कर सकता है ?
कुरआन में वर्णित
अनेक भूगोलीय और खगोलीय तथ्य आज
विज्ञान की कसौटी पर सत्य साबित होते जा
रहे हैं जिन्हें उस वक्त कोईनहीं जानता था।
अब
क्या उक्त आरोप कि कुरआन किसी अल्पज्ञ
और कपटी-छली द्वारा बनाया गया है,
तर्कहीन और मूर्खतापूर्ण नहीं है ?
‘सत्यार्थ
प्रकाश’ जो एक वेद विद्वान और संस्कृत के
प्रकांड पंडित का लिखा हुआ बताया जाता है,
इसके अब तक 38 संस्करण प्रकाशित हो चुके
हैं।
कई बार वेद-विद्वानों और विशेषज्ञों की
एक टीमद्वारा इसके प्रूफ शौधन का प्रयास
किया गया, मगर आज तक इसकी भाषा और
व्याकरण ही शुद्ध न हो सकी। क्या यह इस
बात का प्रमाण नहीं है कि इस ग्रंथ के
संपादको और अनुयायियों ने कभी इसे नगंभीरता
से लिया है और न ही कोई खास महत्व ही दिया
है।
‘सत्यार्थ प्रकाश’ का 38वां संस्करण जो
सन् 2006 मेंप्रकाशित हुआ और जिसका
संपादन पंडित भगवद्दत् (रिसर्च स्कॉलर) ने
किया।
इस संस्करण को साढ़े तीन माह तक
विद्वानों की एक टीम द्वारा प्रूफ शोधन के
बाद प्रकाशित कराया गया। लिखा गया है कि
इस बार सर्वशुद्ध ‘सत्यार्थ प्रकाश’ देने का
प्रयास किया जा रहा है, मगर नतीजा ‘ढाक के
तीन पात’ व्याकरण की अशुद्धियाँ आज तक भी
‘शुद्ध नहीं हो पाई।
भाषा व्याकरण तो क्या,
उसमें वर्णित कुरआन की आयतों के नम्बर व
तरतीब तक गलत है।‘सत्यार्थ प्रकाश’ के
रचयिता द्वारा 14वें समुल्लास में जितनी गंदी
और घटिया भाषा का प्रयोग किया गया है,
समीक्षा में तर्क और तथ्य भी उतने ही घटिया
बचकाने और मूर्खता पूर्ण हैं।
न कहीं
गंभीरविचार है, न कोई युक्ति है और न तर्क।
लगता है लेखक यह जानता ही न था कितर्क
क्या होता है ? तथाकथित विद्वान द्वारा
कुरआन के तथ्यों के साथ जो खिलवाड़ किया
गया है और बेधड़क होकर जिस तरह कीचड़
उछाली गई है,
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