Tuesday, 29 December 2015

कुरान को आसमानी किताब क्यों कहा जाता है?

यह बात सही है कि कुरआन में कुछ अच्छी बातें लिखी हैं लेकिन यह तो हर धर्म की किताबों में लिखी होती हैं और कोई भी समझदार इंसान लिख सकता है, फिर हम कुरआन को अल्लाह की किताब क्यों माने, क्या सबूत है कि कुरान अल्लाह की तरफ से ही है ?

जवाब - मैं इस सवाल का जवाब कई पहलुओं से दूँगा, क्यों कि कुरान ने अलग पहलुओं से अल्लाह के कलाम (वाणी) होने के सबूत दिए हैं, अगर आप घहराई से बिना पक्षपात के विचार करेंगें तो मैं आप को यकीन दिलाता हूँ कि कोई भी ज़रा भी शक बाकि नहीं रहेगा.

(1) पहली बात, अगर आप अरब का मुहम्मद (ﷺ) के टाइम का इतिहास पढेंगे जो इतिहास की बड़ी किताबों में आप को आसानी से मिल जाएगा, तोआप पाएँगे कि मुहम्मद (ﷺ) बिलकुल बिलकुल पढना लिखना नहीं जानते थे और तो और वो अपना नाम भी लिखना नहीं जानते थे और ना ही उन्हें शाइरी वगैरह का कोई शौक था,लेकिन अरब के लोग शाइरी के बादशाह थे वो अपना पूरा इतिहास और अपनी कई पीढयों के नाम भी शाइरी में ही बयान कर दिया करते थे,आप जानते हैं कि किसी भी भाषा या शब्दों का सबसे अच्छा इस्तिमाल एक शायर (कवि) ही करता सकता है उस ज़माने में अरब में एकसे बढ़कर एक शायर मौजूद थे, हर साल वहां शाइरी की बहुत बड़ी प्रतियोगिता होती थी जिस में दूर दूर के लोग भाग लेते थे, जीतने वाले शायर का शेर काबा की दीवार पर लगाया जाता था और उस शायर को सब सजदा किया करते थे

अब ऐसे माहौल में मुहम्मद (ﷺ) अचानक एक कलाम पेश करते हैं और दावा करते हैं कि यह कलाम अल्लाह की तरफ से है और अगर तुम्हे इसमें शक है तो तुम भी ऐसा कलाम बना कर दिखाओ (सूरेह बक्राह-23,24).

आप तसव्वुर कीजये एक तरफ कोई एक अनपढ़ आदमी है जिसे सब जानते हैं कि यह हम में 40 साल रहा है इसने कहीं से तालीम हासिलनहीं की और दूसरी तरफ इक़बाल, ग़ालिब, मीर और हाली जैसे महान शायर मौजूद हैं जो अपनी शानदार शाइरी के लिए मशहूर हैं, वो अनपढ़ आदमी इन शायरों को चैलेंज कर कह रहा है कि तुम सब मिलकर भी मेरे मुकाबले का कलाम पेश नहीं कर सकते, ये बड़े बड़े शायरउस आदमी से दुश्मनी रखते हैं उसके खिलाफ़ जंग लड़ते हैं उसकी दुश्मनी में अपनी जाने और माल खर्च करते हैं, लेकिन इतिहास गवाह है कि वे सब मिलकर भी एक पेज भी ऐसा नहीं लिख सके जिसको वे कुरआन के मुकाबले में दुनियां के सामने पेश करके कह सकें कि देखो हमने मुहम्मद (ﷺ) को झूटा साबित कर दिया है.

इससे साफ़ ज़ाहिर है कि यह अज़ीम कलाम किसी अज़ीम हस्ती ही का हो सकता है कोई इंसान तो अपने लिखे हुए कलाम के बारे में ऐसा दावा नहीं कर सकता.

(2) जो लोग अरबी भाषा का थोड़ा भी ज्ञान रखते हैं वो यह हकीक़त अच्छी तरह जानते हैं कि कुरआन ने अरबी भाषा को नई ऊँचाइयाँ दी हैं यानि कुरआन में बहुत हाई स्टेंडर्ड की अरबी शैली का इस्तिमाल किया गया है इतने स्टेंडर्ड की अरबी की कोईकिताब इसके बाद कभी नहीं लिखी जा सकी, आज भी जो कोई कुरआन की शैली के 10% करीब की अरबी बोले या लिखे उसे दुनियां में हाई स्टेंडर्ड अरबी बोलने वाला माना जाता है, इतने हाई स्टेंडर्ड की अरबी कोई आम इंसान लिखे यह नामुमकिन है.इससे भी यह बात साफ़ ज़ाहिर होती है कि कुरआन कोई आम किताब नहीं है.

(3) कुरआन में अल्लाह तआला ने दावा किया है कि इस में कोई ज़रा भी बदलाव नहीं कर सकता क्यों कि हम इसकी हिफाज़त करते हैं(सूरेह हिज्र-9)

इस बात का भी इतिहास गवाह है कि कुरआन में आज तक कोई एक नुक्ते का भी बदलाव नहीं हुआ, वरना यूं तो बाइबल भी अल्लाह की किताब है लेकिन सब जानते हैं कि उसके कितने ही नए एडिशन कुछ ना कुछ बदलाव के साथ आते रहते हैं, लेकिनकुरआन 1450 सालों से ऐसा ही है.इससे भी पता चलता है कि कुरआन कोई आम किताब नहीं है.

(4) आप जानते हैं कि कुरान करीब 600 पेज की एक बड़ी और मोटी किताब है इसके बावजूद यह लाखो नहीं बल्कि करोड़ों लोगोंको ज़ुबानी याद है, और इसका कुछ ना कुछ हिस्सा तो हर मुस्लमान को याद होता है, यह रुतबा दुनियां की और किसी भी किताब को हासिल नहीं है, आप सोच कर देखें किसी छोटी सी किताब को भी वर्ड-टू-वर्ड ज़ुबानी याद करना कितना मुश्किल काम है और अगर वो कोई 600 पेज की मोटी किताब हो तब तो यह काम बेहद मुश्किल हो जाता है और इतना ही नहीं फिर अगर वो किताब किसी ऐसी भाषामें हो जो आप को समझ ही नहीं आती तो ??? 

लेकिन कुरान को अल्लाह ने कुछ ऐसा बनाया है जो वो चमत्कारी ढंग से बड़ों का तो क्या कहना 12,13, साल का बच्चा पूरा कुरआन ज़ुबानी याद किया हुआ आप को मुसलमानों की हर गली या मोहल्ले में आसानी से मिल जाएगा यह तो आम है लेकिन ऐसे बच्चों की भी बहुत बड़ी तादाद है जिनको पूरा कुरआन याद है और उनकी उमर सिर्फ 6,7, और 8 साल है, अगर आप गौर करें तो यह कोई मामूली बात नहीं कि 600 पेज की एक मोटी किताब जो ऐसी भाषा में लिखी है जो गैर अरब को समझ नहीं आती और उसको छोटे छोटेबच्चे पूरा ज़ुबानी याद कर लेते हैं.इससे भी पता चलता है कि कुरआन कोई आम किताब नहीं है.

(5) कुरआन का एक कमाल यह भी है कि हर किताब तो एक खास तबके के लिए लिखि जाती है यानि लिखने वाला पहले यह फैसला कर लेताहै की मैं किस तरह के लोगों के लिए यह किताब लिख रहा हूँ कोई आम आदमी की समझ के अनुसार होती है और कोई बड़े एजुकेटिड लोगों को ध्यान में रख कर लिखी जाती है तो कोई ख़ास ज़माने और देश को ध्यान में रख कर लिखी जाती है, लेकिन कुरआन जितना अनपढ़ के लिखे हिदायत है उतना ही बहुत पढे लिखे के लिए भी हिदायत है, 

जैसे इसे पढ़कर आम लोग के ईमान लाने की बेशुमार मिसालें हैं ऐसे ही बहुत पढ़े लिखे एजुकेटिड लोगों के इस को पढ़ कर ईमान लाने की भी मिसालों की कमी नहीं यानि चाहे कोई मर्द हो या औरत, भारत से हो अफ्रीका से, अमीर घर से हो या गरीब घर से, बूढ़ा हो या नौजवान, बहुत पढ़ा लिखा हो या कम पढ़ा लिखा हो यह किताब सब को समझ में भी आती है और सब की रहनुमाई (मार्गदर्शन) भी करती है, इसी लिए कुरआन में अल्लाह ने फ़रमाया है कि- हमने कुरआन को नसीहत के लिए आसान बना दिया है, तो क्या कोई है नसीहत चाहने करने वाला ?(सूरेह क़मर-32)

और बहुत ज्यादा गहराई में जा कर बात समझने वालों के लिए तो यह समुन्द्र के जैसा है,आज तक अलग अलग आलिमों की तरफ से कुरआन की हजारों बड़ी बड़ी तफसीरें (Commentary) लिखी जा चुकी हैं लेकिन हमेशा लिखने वाले कहते हैं कि हमने तो कुछ भी नहीं लिखा अभी तो बहुत ज्यादा लिखना बाकि है.यानि एक तरफ तो कुरआन इतना सादा है कि एक आम रेढ़ी चलाने वाला भी इससे फाएदा हासिल करता है और दूसरी तरफ गहराई इतनी कि कोई बड़े से बड़ा आलिम भी यह दावा नहीं करता कि मैंने पूरा कुरआन समझ लिया है अब और ज्यादा कुरान में कुछ नहीं है बल्कि वोयह ही कहता है कि जितना समझा है उससे कहीं ज्यादा समझना बाकि है.इससे भी ज़ाहिर होता है कि यह कोई आम किताब नहीं है.

(6) एक अहम पहलू यह भी है कि जब हम किसी बड़े कवि या लेखक को पढ़ते हैं तो हमेशा हम देखते हैं कि वक़्त से साथ साथ उस लेखक के ज्ञान, भाषा शैली और विचारों में विकास हुआ है यह ना मुमकिन है कि एक लेखक लम्बे समय तक कुछ लिखता हो और उसके लेखन में विकास न हुआ हो, इसी विचारों के विकास की वजह से एक ही लेखक की शुरू ज़िन्दगी की लिखी हुई बातों और आखिर ज़िन्दगीकी लिखी हुई बातों में विरोधाभास मिलना एक आम बात है, आप चाहे इकबाल को पढ़लें या ग़ालिब को या विलियम शेक्सपियर को या किसी भी लेखक को जिसने सालों लिखा हो आप को उसके लेखन में विकास और विरोधाभास साफ नज़र आएगा, 

क्यों कि हर इंसान के विचारों में विकास होता रहता है.लेकिन कुरआन 23 साल के लम्बे अरसे में लिखे जाने के बावजूद उसमे आप को कोई विकास नज़र नहीं आ सकता, और ना ही उसमे विरोधाभास पाया जाता है जिस मापदंड के विचार, भाषा शैली, ज्ञान और दावे उसमे शुरू में हैं आखिर तक वैसे ही हैं, यह किसी इंसान के वश की बात नहीं यह अल्लाह ही है जिसके ज्ञान में विकास नहीं होता क्यों कि वो पहले से ही सब जनता है, इसी लिए कुरआन में लिखा है कि- अगर यह कुरआन अल्लाह के बजाए किसी और की ओर से होता तो वे इसके भीतर बहुत विरोधाभास पाते (सूरेह निसा-82) इससे साफ़ ज़ाहिर है कि कुरआन किसी इंसान का लिखा हुआ नहीं है.

(7) अब कुछ कुरआन की की हुई भविष्यवाणयों पर नज़र डालये जो अब इतिहास बन चुकी हैं- कुरआन के नाज़िल होते वक़्त दुनियाँ में दो बहुत बड़ी सलतनतें थी एक रूमी सलतनत जो ईसाइयों की थी उसका बादशाह हरकुल (हरक्युलिस) था दूसरी ईरानी सलतनत जो मजूसयों (आग को पूजने वालों) की थी और उसका बादशाह खुसरो था, ईरानियों ने रूमयों को बुरी तरह हरा दिया था और रूमयों के फिर से उठने के कोई आसार नहीं थे, मक्के के मुशरिक इस पर खुशियाँ मना रहे थे और मुसलमानों से कहते थे कि देखो ईरान के आगके पुजारी विजय पा रहे हैं और रोमन पैगम्बरों के मानने वाले ईसाई हार पर हार खाते चले जा रहे हैं, इसी तरह हम भी अरब के बुत परस्त तुम्हें और तुम्हारे धर्म को मिटा कर रख देंगे.

कुरआन ने ऐसे हालात में भविष्यवाणी की कि रूमी 10 साल के अन्दर फिरसे विजय पाएगें (सूरेह रूम), इसे सुनकर मक्का के मुशरिक मुसलमानों की मज़ाक उड़ाने लगे कि देखो मुस्लमान पागल हो गए हैं जो ऐसी बात कह रहे हैं जो मुमकिन ही नहीं है,लेकिन दुनियां ने देख लिया कि कुरआन की यह नामुमकिन भविष्यवाणी 9 साल के भीतर पूरी हुई, इतिहासकार भी हरक्युलिस की जीत को किसी चमत्कार से कम नहीं मानते.इससे भी पता चलता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.

(8) इतिहास से ही आप को पता चल सकता है कि एक वक़्त ऐसा भी था जब मुसलमानों की तादाद उँगलियों पर गिनने लायक थी और जो थे उनकी भी हालत गरीबी में ऐसी थी कि उनके पास अपनी हिफाज़त करने के लिए तलवारें भी ना के बराबर थी, जबकि उनके दुश्मन अनगिनत थे और बड़े बड़े सरदार थे जो मुसलमानों और इस्लाम को ज़मीन से मिटाने के लिए बेताब थे और देखने वाले समझ रहे थे कि अब मुसलमानों का बचना नामुमकिन है, ऐसे हालत में कुरआन ने दो भविष्यवाणी की एक मक्का शहर मुसलमान फ़तेह करेंगे और दूसरी लोग फ़ौज की फ़ौज इस्लाम क़ुबूल करेंगे (सूरेह नस्र).

जिस वक़्त यह दोनों भविष्यवाणी हुई उस वक़्त इनसे नामुमकिन बात और कोई नहीं थी लेकिन कुछ ही अरसे बाद दुनियां ने ये दोनों भविष्यवाणी भी पूरी होती हुई देखली थी.इससे भी अंदाज़ा होता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.

(9) मक्का में मुहम्मद (ﷺ) का एक पड़ोसी था वो कुरैश का सरदार था उसका नाम अबू लहब था वो और उस की बीवी अल्लाह के रसूल के बहुतबड़े दुश्मन थे वो हर तरह से उन्हें सताता था, उसकी मौत से करीब 10 साल पहले कुरआन ने भविष्यवाणी की थी कि वो कभी ईमाननहीं लाएगा और उसकी मौत अज़ाब से होगी (सूरेह लहब), वो इस्लाम दुश्मनी में कुछ भी कर सकता था अगर वो ईमान क़ुबूल करलेता जैसे उसकी बेटी और दोनों बेटों ने किया तो कुरआन की भविष्यवाणी गलत साबित हो जाती लेकिन वो ऐसा ना कर सका और उसकी मौत भीबहुत बुरी बीमारी से हुई जिससे उस का शरीर सड़ गया था उसके परिवार के लोगों ने भी उसके शरीर को हाथ नहीं लगाया.इससे भी पता चलता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.

(10) कुरआन के नाजिल होने से बहुत पहले अल्लाह के एक पैगम्बर मूसा (अलैहिस्सलाम) के ज़माने में मिस्र में फिरौन नामीएक राजा को जो ज़बरदस्ती खुद को खुदा कहलवाता था अल्लाह ने अज़ाब के तौर पर दरया में डुबा कर मार दिया था उसका ज़िक्र ओल्ड टेस्टीमेंट में भी है,कुरआन में उसके बारे में भविष्यवाणी हुई थी कि उसकी लाश को अल्लाह एक दिन ज़ाहिर करेगा ताकि बाद में आने वालों लोगों के लिए वो इबरत की निशानी बने (सूरेह यूनुस-92).

ध्यान रहे उसके अज़ाब से मरने के बारे में तो ओल्ड टेस्टीमेंट में ज़िक्र है लेकिन उसकी लाश पानी में गर्क नहीं होगी ऐसा कुरआन के अलावा किसी भी किताब में नहीं लिखा था,सन 1898 में चमत्कारी तौर पर उसके मरने के हजारों साल बाद उसकी लाश 'नील' नामी दरया के पास से मिली, जो ममी ना होनेके बावजूद भी हजारों साल तक गर्क नहीं हुई थी उसे आज भी मिस्र के म्युज्यम में देखा जा सकता है, उसकी लाश की पहचान और मिलने का विवरण 'डॉ. एलीड स्मिथ' की किताब ''royal mummies'' में देखा जा सकता है.

अगर किसी इंसान ने हकीकत से आंखें बंद करने की कसम ही ना खा रखी हो तो यह एक बहुत बड़ा सबूत है कि कुरआन अल्लाह की किताब है.इनके अलावा भी कुरआन और सही हदीसों में बहुत सी भविष्यवाणयां हैं जो पूरी हुई हैं लेकिन वो इल्मी तरह की हैं इसलिए मैं उन्हें स्किप कर रहा हूँ, लेकिन एक बात साबित शुदा है कि अल्लाह और उसके रसूल की की हुई एक भी भविष्यवानि आज तक गलत साबित नहीं हुई है.

(11) अगर आप किसी लेखक से कहें की एक छोटी सी कहानी लिखो और उसमे फला फला शब्द इतनी इतनी बार आना चाहिए और फला फला शब्द नहीं आना चाहिए और फला फला शब्द जितनी बार पहले वाक्य में इस्तिमाल होगा दुसरे में भी इतनी ही बार होना चाहिए जैसी 5,6 कंडीशन आप लगादें तो आप अंदाज़ा कर सकते हैं कि लेखक पहले तो इन शर्तों के साथ कुछ लिख ही नहीं पाएगा और अगर लिख भी दिया तो वो जितना टूटा फूटा होगा आप खुद समझ सकते हैं.

लेकिन कुरआन में अपनी बहतरीन शैली के साथ साथ गणित के पहलु से भी अनगिनत चमत्कार मौजूद हैं, मैं समझाने के लिए सिर्फ एक मिसाल देता हूँ, कुरआन मैं कहा गया है कि अल्लाह की नज़र में हज़रत ईसा (अ) की मिसाल हज़रत आदम (अ) के जैसी है (सूरेह आलेइमरान-59) यानि कि ईसा (अ) को बिना बाप के पैदा किया और आदम (अ) को बिना माँ बाप के पैदा किया,मायने के लिहाज़ से यह बात बिलकुल साफ़ है लेकिन अगर आप पूरे कुरआन में शब्द ''ईसा'' तलाश करें तो वो 25 बार पूरे कुरआन में आया है, और शब्द ''आदम'' भी पूरे कुरआन में 25 बार ही आया है, तो गिनती के लिहाज़ से भी यह दोनों एक जैसे ही हैं,अगर कुरआन में यह चीज़ें दो चार बार होती तो माना जाता कि यह इत्तिफाक से है, लेकिन यह गणित के चमत्कार तो कुरआन में अनगिनत हैं कुरआन में यह खोज अभी नई है और जारी है इसलिए इस टॉपिक पर अभी कुछ खास किताबें नहीं लिखी जा सकी, कुरआन में गणित के ऐसे चमत्कारों जो समझने के लिए आप हमारे ब्लॉग में कई पोस्ट हे और इस लिंक की विडियो देखें -http://www.youtube.com/watch?v=Y96KuhAQBMI

इस नई खोज से भी पता चलता है कि कुरआन इंसानी दिमाग की उपज नहीं है.

(12) कुरआन साइन्स की किताब नहीं है, उसका मकसद लोगों को साइन्स के बारे में बताना नहीं है लेकिन फिर भी ऐसी बहुत सीबातें कुरआन में हैं जिनकी पुष्टि आज साइन्स से होती है,मिसाल के तौर पर कुरआन में अल्लाह ने फ़रमाया - हमने हर जीवित चीज़ को पानी से पैदा किया है (सूरेह अंबिया-30)

आज से पहले तो शायद लोग इस बात को ऐसे नहीं समझते होंगे जैसे अब हम साइन्स की मदद से इस आयत को समझ सकते हैं,एक जगह अल्लाह ने कुरआन में अजीब सी कसम खाई - कसम है सितारों के मरने या टूटने के मौक़े की, और अगर तुम जान लो तो यह बहुत बड़ी कसम है (सूरेह वकिअह-75) आज से पहले लोग इस आयत को भी ऐसे नहीं समझ सकते थे जिस तरह आज हम जानते हैं कि सितारा मरने के बाद एक बेहद ताकतवर ब्लैक होल में बदल जाता है, तो वाकई यह बहुत बड़ी कसम है,इसी तरह और बहुत सी आयतें हैं जिनमे अंतरिक्ष, जल चक्र, पहाड़ों के बारे में और माँ के पेट में बच्चे के बन्ने के स्टैप वगैरा के बारे में बताया गया है, जो अब साइंस की मदद से हमें सही सही समझमे आती हैं, इस टॉपिक को ज्यादा जानने के लिए यह(Bible, Quran and Science, Author Dr. Maurice Bucaille) नामी किताब पढ़ें,किसी को धोड़ी देर के लिए कोई गलत फहमी हो जाए तो और बात है 

वरना आज तक साइन्स ने जितनी भी तक्की की है वो कभी कुरआन के खिलाफ़ साबित नहीं हो सकी और उल्टा साइन्स ने कुरआन को सच ही साबित किया है और बहुतसी आयातों को समझने में मददगार साबित हुआ है.इससे भी साबित होता है कि कुरआन अल्लाह का कलाम है.

(13) कुरआन को आप यह ना समझें कि इसमें कोई अलग ही बातें बताई गई हैं, कुरआन अपने से पहली आसमानी किताबों का विरोधी नहीं बल्कि वो तो उनकी बार बार पुष्टि करता है, बस वो यह कहता है की धर्म के ठेकेदारों ने उन किताबों में अपनी अकल से छेड़ छाड़ करके उनमे काफी कुछ गलत चीज़े मिलादी है और लोगों से कहते हैं कि यह ईश्वर की तरफ से है, वो भी अल्लाह ही था जिसने पहले वे किताबें नाजिल की थी और यह भी अल्लाह ही है जिसने कुरआन नाजिल किया है.

इसके अलावा भी बहुत से पहलु हैं जिनसे कुरआन अल्लाह का कलाम साबित होता है लेकिन सबको एक पोस्ट में लिख देना मेरे लिए मुमकिन नहीं है, लेकिन एक ऐसे इंसान के लिए जो बिना पक्षपात के बातों को देखता और समझता है उसके लिए ये सबूत काफी हैं किकुरआन अल्लाह का कलाम है, और जिसने पक्षपात का चश्मा लगाया हुआ है उसके लिए हज़ार सुबूत भी कम हैं, वरना कुरआन में 6500 से ज्यादा आयतें हैं और ''आयत'' का मतलब ही ''निशानी'' होता है.

हमारी दावत (पुकार) इसके सिवा कुछ भी नहीं कि हम मुहब्बत और हमदर्दी के साथ ज़मीन पर रहने वाले इंसानों को उनके असल रब का यह पैगाम पहुंचा दें जो हमारे पास उनकी अमानत है, हम आप से इसके बदले में कुछ नहीं चाहते हमारा बदला तो रब के जुम्मे है,और कुरआन की दावत इसके सिवा कुछ नहीं कि वो इंसानों को उस दिन से खबरदार कर दे जो अब करीब आ लगा है, जिस दिन यह दुनियां ख़त्म हो जाएगी और इंसान और उनके रब के बीच का पर्दा उठ जाएगा और इंसान बंद आखों से भी वो सब कुछ देख लेगा जिसे आज वो खुली आखों से भी देखना नहीं चाहता, जिस दिन हर ज़ालिम को उसके हर ज़ुल्म की सज़ा मिल कर रहेगी और हर नेक को उसकी हर नेकी काबदला मिलेगा जिस दिन फैसले हमारी कमज़ोर अदालते नहीं बल्कि इंसानों का रब खुद करेगा.

कुरआन लोगों को बताना चाहता है कि तुम अच्छी बुरी ज़िन्दगी जी कर मिट्टी हो जाने के लिए पैदा नहीं किये गए हो बल्कि तुम्हारे अज़ीम रब ने एक अज़ीम स्कीम एक अज़ीम प्लान के तहत तुमको पैदा किया, अब जो चाहे अपने होने का मकसद इससे जान ले और जो ना चाहे ना जाने.अब जिसके जी में आए वो ही पाए रौशनी,हम ने तो दिल जलाके सरे आम रख दिया..

Monday, 21 December 2015

चाँद का टूटना एक वैज्ञानिक तथ्य..@

☆ चाँद के टूटने के विश्वास से सिद्ध होते है
वैज्ञानिक तथ्य …
बहुत समय से गैर मुस्लिम भाईयों को मुस्लिमों के
इस विश्वास का मजाक उडाते देख रहा हूँ कि
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने चांद के दो
टुकड़े कर दिए थे ..
ये लोग कहते हैं कि मुसलमान बार बार इस्लाम
धर्म को विज्ञान पर खरा उतरने वाला धर्म
बताते हैं, पर इस्लाम मे वर्णित चांद के तोड़ने और
नबी के द्वारा बिना किसी विमान के आकाश
की सैर जैसी इन अवैज्ञानिक बातों के जरिए
इस्लाम भी झूठ और अंधविश्वास ही फैलाता है …
पहली बात तो हम इन भाईयों से यही कहेंगे कि
इस्लाम को फैलाने के लिए अल्लाह और रसूल
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने चमत्कार दिखाने
का सहारा नही लिया बल्कि इस्लाम फैला
अपने उच्च नैतिक नियमों के कारण …. लेकिन आप
कुरान और हदीस पढ़ेन्गे तो पाएंगे कि नबी
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का चमत्कार न
दिखाना भी कुफ्फार की नजरों मे नबी
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के झूठे होने का
प्रमाण था और ये कुफ्फार लोगों को ये कह कहकर
भड़काया करते थे कि ये कैसा नबी है जो
साधारण आदमियों की तरह बाजारों मे घूमता
फिरता है, यदि ये वास्तव मे नबी होता तो
अल्लाह ने इसके साथ एक फरिश्ता रखा होता
और ये चमत्कार दिखाता होता इस कारण, कुछ
एक चमत्कार जो अल्लाह के हुक्म से नबी
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने दिखाए, वे एक तो
इसलिए ताकि कुफ्फार के आरोपों को झुठलाया
जा सके,
और दूसरा कारण ये कि वे गैर मुस्लिम जो चमत्कार
को ही ईश्वर की निशानी मानते थे और सम्मोहन
करने वाले जादूगरो के जादू के कारण ही उन्हें
ईश्वर का साथी मानने लगे थे, वे लोग भी अल्लाह
के द्वारा किए गए सच्चे चमत्कार को देखकर ये
जान लें कि मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)
को ईश्वर का सच्चा साथ प्राप्त है …
चांद के दो टुकड़े करने के लिए भी कुफ्फारे मक्का
ने प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को
बहुत उकसाया और ये वादे किए कि अगर मोहम्मद
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) सच्चे हैं और सचमुच
अल्लाह के रसूल हैं, तो वे चांद को तोड़कर दिखा
दें, फिर हम इनका नबी होना तस्लीम कर लेंगे और
मुसलमान हो जाएंगे …
अल्लाह और उसके नबी जानते थे कि कुफ्फार के ये
दावे और वादे सिर्फ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम) को झूठा साबित करने की नीयत से किए
गए हैं, इस्लाम कुबूल करने की नीयत से नहीं …
लेकिन यहाँ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)
की सच्चाई को दांव पर लगाया गया था सो
अल्लाह की मर्ज़ी से नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व
सल्लम) ने उंगलियों के इशारे से चांद के दो टुकड़े कर
के अपनी सच्चाई का सबूत भी कुफ्फार को
दिया, और कुफ्फार का ये झूठ भी दुनिया के
सामने ले आए कि चांद के टूटते ही वो मोहम्मद
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का नबी होना
तस्लीम कर के ईमान ले आएंगे ….
कुफ्फारे मक्का चांद के तोड़े जाने को जादू कहकर
इस सच से इनकार करने लगे, और न नबी (सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम) को उन्होंने नबी तस्लीम किया,
न मुसलमानों को यातनाएँ देनी बंद कीं…
बहरहाल … चांद के दो टुकड़े होने का ये वाकया
सच्चा था ये हम आज भी पूरे दावे से कहते हैं … नबी
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) द्वारा चन्द्रमा के
तोड़े जाने की इस घटना ने कई वैज्ञानिक तथ्यों
को भी स्पष्ट कर दिया जिनकी पुष्टि आज भी
अंतरिक्ष विज्ञानी करते हैं…
» 1 – चांद को देखकर दुनिया मे पहले की
आबादियां उसे एक ठण्डी रौशनी का पुन्ज
समझती थीं जैसे सूरज एक गर्म प्रकाश पुंज है, और
रौशनी को न छुआ जा सकता है न ही तोड़ा जा
सकता है , इस्लाम से पहले चांद को कोई भी
व्यक्ति ऐसी ठोस वस्तु नहीं मानता था जिसे
स्पर्श किया जा सकता हो …. ये खयाल बीसवीं
शताब्दी तक लोगों मे बना रहा जब तक नील
आर्मस्ट्रांग ने चांद पर उतर कर ये साबित न किया
कि चांद मिट्टी और चट्टानों से बना एक
विशाल उपग्रह है … लेकिन चांद के तोड़े जाने के
वाकये से इस्लाम ने 1400 साल पहले ही ये सिद्ध
कर दिया कि चांद एक ठोस आकाशीय संरचना है

» 2 – पूरी दुनिया के लोगों मे चांद को देवता
या दैवीय शक्ति आदि मानने का भी चलन था
इस्लाम से पूर्व … लेकिन चांद को तोड़कर नबी
(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने ये सिद्ध किया
कि चांद एक ठोस निर्जीव आकाशीय पिण्ड से
अधिक कुछ नहीं और उसमें कोई दैवीय शक्ति नहीं,
और न ही वो कोई देवता है…. दुनिया भर के अनेक
गैर मुस्लिम अब तक चांद मे दैवीय शक्तियों का
वास समझते थे, लेकिन अपने इतिहास से लेकर आज
तक मुस्लिमों ने ऐसा अंधविश्वास चांद के विषय
मे कभी नहीं रखा ॥
» 3 – चांद के तोड़ने के मुस्लिमो के इस दावे ने इस
सम्भावना को भी दुनिया के सामने रखा कि
यदि 1400 वर्ष पहले चांद को तोड़कर जोड़ा गया
था, तो इस बात के चिन्ह आज भी चांद की सतह
पर मिलने चाहिए,
आज हमारे पास NASA द्वारा लिये गये चांद की
सतह के कुछ चित्र हैं, जिनमें चांद की सतह पर एक
विशाल दरार दिखाई पड़ रही है …. जैसे किसी
टूटी हुई चीज़ दोबारा जोड़कर रखने पर बन जाती
है ….. हम जानते है कि विरोधी इस दरार के
चन्द्रमा की सतह पर होने के भी अलग अलग
कयास निकालेंगे पर चांद के टूटने की बात नहीं
मानेंगे… पर इस्लाम मे चांद के टूटने के विश्वास का
मजाक ये लोग तब उड़ा सकते थे जब चांद पर ऐसी
कोई दरार न मिली होती ….. इस दरार के पाये
जाने के बावजूद यदि लोग चांद के टूटने की
सम्भावना पर विचार न करें तो इसे उन लोगों के
पूर्वाग्रह का ही परिणाम कहा जाएगा…
बहरहाल जो लोग चांद के टूटने को इस्लाम का
अंधविश्वास साबित करना चाहते हैं, वे अपनी इस
बात कि चांद कभी नहीं टूटा था को सिद्ध करने
का कोई प्रमाण नहीं दे सकते …. लेकिन चांद टूटा
था इस बात का एक बड़ा प्रमाण मुस्लिमों के
पास अवश्य है !!

Tuesday, 15 December 2015

मुसलमान मांस क्यों खाते हे .?

सवाल :- जानवरों की हत्या एक क्रूर निर्दयतापूर्ण
कार्य है तो फिर मुसलमान मांस क्यों खाते हैं ?

जवाब:- शाकाहार ने अब संसार भर में एक आन्दोलन
का रूप ले लिया है। बहुत से लोग तो इसको जानवरों
के अधिकार से जोड़ते हैं। निस्संदेह लोगों की एक
बड़ी संख्या मांसाहारी है और अन्य लोग मांस खाने
को जानवरों के अधिकारों का हनन मानते हैं।
इस्लाम प्रत्येक जीव एवं प्राणी के प्रति स्नेह और
दया का निर्देश देता है। 
साथ ही इस्लाम इस बात पर भी ज़ोर देता है कि अल्लाह ने पृथ्वी, पेड़-पौधे और छोटे-बड़े हर प्रकार के जीव-जन्तुओं को इंसान के लाभ के लिए पैदा किया है। अब यह इंसान पर निर्भर करता है कि वह ईश्वर की दी हुई नेमत और अमानत के रूप में मौजूद प्रत्येक स्रोत को किस प्रकार उचित रूप से इस्तेमाल करता है।

आइए इस तथ्य के अन्य पहलुओं पर विचार करते हैं-

१। एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी हो सकता है एक
मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक
अच्छा मुसलमान हो सकता है। मांसाहारी होना
एक मुसलमान के लिए ज़रूरी नहीं है।

२। पवित्र कुरआन मुसलमानों को मांसाहार की
अनुमति देता है पवित्र कुरआन मुसलमानों को
मांसाहार की इजाज़त देता है। 

निम्र कुरआनी आयतें इस बात की सुबूत हैं- '

'ऐ ईमान वालो ! प्रत्येक कर्तव्य का निर्वाह करो। तुम्हारे लिए चौपाए जानवर जायज़ हैं केवल उनको छोड़कर जिनका उल्लेख किया गया है।'' (कुरआन, ५:१)

''रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया, जिसमें तुम्हारे लिए गर्मी का सामान (वस्त्र) भी है और हैं अन्य कितने ही लाभ। उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो।'' (कुरआन, १६:५)

''और मवेशियों में भी तुम्हारे लिए ज्ञानवर्धक
उदाहरण हैं। उनके शरीर के भीतर हम तुम्हारे पीने के
लिए दूध पैदा करते हैं, और इसके अतिरिक्त उनमें तुम्हारे
लिए अनेक लाभ हैं, और जिनका मांस तुम प्रयोग करते
हो।'' (कुरआन, २३:२१)

३। मांस पौष्टिक आहार है और प्रोटीन से भरपूर है
मांस उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। इसमें आठों
आवश्यक अमीनो एसिड पाए जाते हैं जो शरीर के
भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति आहार द्वारा
की जानी ज़रूरी है। मांस में लोह, विटामिन बी-१
और नियासिन भी पाए जाते हैं।

४. इंसान के दाँतों में दो प्रकार की क्षमता है यदि
आप घास-फूस खाने वाले जानवरों जैसे भेड़, बकरी
अथवा गाय के दाँत देखें तो आप उन सभी में समानता
पाएँगे। इन सभी जानवरों के चपटे दाँत होते हैं अर्थात
जो घास-फूस खाने के लिए उचित हैं। यदि आप
मांसाहारी जानवरों जैसे शेर, चीता अथवा बाघ
इत्यादि के दाँत देखें तो आप उनमें नुकीले दाँत भी
पाएँगे जो कि मांस को खाने में मदद करते हैं। यदि
मनुष्य के दाँतों का अध्ययन किया जाए तो आप
पाएँगे उनके दाँत नुकीले और चपटे दोनों प्रकार के हैं।
इस प्रकार वे वनस्पति और मांस खाने में सक्षम होते
हैं। यहाँ प्रश्न उठता है कि यदि सर्वशक्तिमान
परमेश्वर मनुष्य को केवल सब्जि़याँ ही खिलाना
चाहता तो उसे नुकीले दाँत क्यों देता? यह इस बात
का प्रमाण है कि उसने हमें मांस एवं सब्जि़याँ दोनों
को खाने की इजाज़त दी है। 

५. इंसान मांस अथवा सब्जि़याँ दोनों पचा सकता है शाकाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल सब्जि़याँ ही पचा सकते हैं और मांसाहारी जानवरों का पाचनतंत्र केवल
मांस पचाने में सक्षम है, परंतु इंसान का पाचनतंत्र
सब्जि़याँ और मांस दोनों पचा सकता है। यदि
सर्वशक्तिमान ईश्वर हमें केवल सब्जि़याँ ही
खिलाना चाहता है तो वह हमें ऐसा पाचनतंत्र क्यों
देता जो मांस एवं सब्ज़ी दोनों को पचा सके। 
6. हिन्दू धार्मिक ग्रंथ मांसाहार की अनुमति देते हैं
बहुत से हिन्दू शुद्ध शाकाहारी हैं। उनका विचार है
कि मांस-सेवन धर्म विरूद्ध है। परंतु सत्य यह है कि
हिन्दू धर्म ग्रंथ इंसान को मांस खान की इजाज़त देते
हैं। ग्रंथों में उन साधुओं और संतों का वर्णन है जो
मांस खाते थे। 
(क) हिन्दू कानून पुस्तक मनुस्मृति के
अध्याय 5 सूत्र 30 में वर्णन है कि - ''वे जो उनका
मांस खाते हैं जो खाने योग्य हैं, कोई अपराध नहीं
करते है, यद्यपि वे ऐसा प्रतिदिन करते हों क्योंकि
स्वयं ईश्वर ने कुछ को खाने और कुछ को खाए जाने के
लिए पैदा किया है।'' 
(ख) मनुस्मृति में आगे अध्याय 5
सूत्र 31 में आता है - ''मांस खाना बलिदान के लिए
उचित है, इसे दैवी प्रथा के अनुसार देवताओं का
नियम कहा जाता है।'' 
(ग) आगे अध्याय 5 सूत्र 39
और 40 में कहा गया है कि - ''स्वयं ईश्वर ने बलि के
जानवरों को बलि के लिए पैदा किया, अत: बलि के
उद्देश्य से की गई हत्या, हत्या नहीं।'' महाभारत
अनुशासन पर्व अध्याय 88 में धर्मराज युधिष्ठिर और
पितामह भीष्म के मध्य वार्तालाप का उल्लेख
किया गया है कि कौनसे भोजन पूर्वजों को शांति
पहुँचाने हेतु उनके श्राद्ध के समय दान करने चाहिए।

प्रसंग इस प्रकार है- ''युधिष्ठिर ने कहा, ''हे
महाबली ! मुझे बताइए कि कौन-सी वस्तु जिसको
यदि मृत पूर्वजों को भेंट की जाए तो उनको शांति
मिलेगी ? 
कौन-सा हव्य सदैव रहेगा ? और वह क्या है
जिसको यदि पेश किया जाए तो अनंत हो जाए ?
ÓÓ भीष्म ने कहा, ''बात सुनो, ऐ युधिष्ठिर कि वे
कौन-सी हवि हैं जो श्राद्ध रीति के मध्य भेंट करना
उचित हैं। और वे कौन से फल हैं जो प्रत्येक से जुड़ें है?
और श्राद्ध के समय शीशम बीज, चावल, बाजरा,
माश, पानी, जड़ और फल भेंट किया जाए तो
पूर्वजों को एक माह तक शांति रहती है। 
यदि मछली भेंट की जाएँ तो यह उन्हें दो माह तक राहत देती है।
भेड़ का मांस तीन माह तक उन्हें शांति देता है।
$खरगोश का मांस चार माह तक, बकरी का मांस
पाँच माह और सूअर का मांस छह माह तक, पक्षियों
का मांस सात माह तक, 'प्रिष्टा नाम के हिरन के
मांस से वे आठ माह तक और ''रूरू हिरन के मांस से वे
नौ माह तक शांति में रहते हैं। त्रड्ड1ड्ड4ड्डं के मांस
से दस माह तक, भैंस के मांस से ग्यारह माह और गौ
मांस से पूरे एक वर्ष तक। पायस यदि घी में मिलाकर
दान किया जाए तो यह पूर्वजों के लिए गौ मांस
की तरह होता है। 

बधरीनासा (एक बड़ा बैल) के मांस से बारह वर्ष तक और गैंडे का मांस यदि चंद्रमा के अनुसार उनको मृत्यु वर्ष पर भेंट किया जाए तो यह उन्हें सदैव सुख-शांति में रखता है। क्लास्का नाम की जड़ी-बूटी, कंचना पुष्प की पत्तियाँ और लाल बकरी का मांस भेंट किया जाए तो वह भी अनंत सुखदायी होता है। 
अत: यह स्वाभाविक है कि यदि तुम अपने
पूर्वजों को अनंत सुख-शांति देना चाहते हो तों तुम्हें
लाल बकरी का मांस भेंट करना चाहिए।

7. हिन्दू मत अन्य धर्मों से प्रभावित यद्यपि हिन्दू ग्रंथ अपने मानने वालों को मांसाहार की अनुमति देते हैं, फिर
भी बहुत से हिन्दुओं ने शाकाहारी व्यवस्था अपना
ली, क्योकि वे जैन जैसे धर्मों से प्रभावित हो गए थे।


8. पेड़-पौधों में भी जीवन कुछ धर्मों ने शुद्ध
शाकाहार को अपना लिया क्योंकि वे पूर्ण रूप से
जीव-हत्या के विरूद्ध हैं। अतीत में लोगों का
विचार था कि पौधों में जीवन नहीं होता। आज यह
विश्वव्यापी सत्य है कि पौधों में भी जीवन होता
है। अत: जीव-हत्या के संबंध में उनका तर्क शुद्ध
शाकाहारी होकर भी पूरा नहीं होता। 

9. पौधों को भी पीड़ा होती है वे आगे तर्क देते हैं कि पौधे पीड़ा महसूस नहीं करते, अत: पौधों को मारना
जानवरों को मारने की अपेक्षा कम अपराध है। आज
विज्ञान कहता है कि पौधे भी पीड़ा अनुभव करते हैं
परंतु उनकी चीख मनुष्य के द्वारा नहीं सुनी जा
सकती है। इसका कारण यह है कि मनुष्य में आवाज
सुनने की अक्षमता जो श्रुत सीमा में नहीं आते
अर्थात 20 हर्टज से 20,000 हर्टज तक इस सीमा के
नीचे या ऊपर पडऩे वाली किसी भी वस्तु की
आवाज मनुष्य नहीं सुन सकता है। 

एक कुत्ते में 40,000 हर्टज तक सुनने की क्षमता है। इसी प्रकार $खामोश कुत्ते की ध्वनि की लहर संख्या 20,000 से अधिक और 40,000 हर्टज से कम होती है। इन ध्वनियों को केवल कुत्ते ही सुन सकते हैं, मनुष्य नहीं। एक कुत्ता अपने मालिक की सीटी पहचानता है और उसके पास पहुँच जाता है। अमेरिका के एक किसान ने एक मशीन का आविष्कार किया जो पौधे की चीख को ïऊँची आवाज़ में परिवर्तित करती है जिसे मनुष्य सुन सकता है। जब कभी पौधे पानी के लिए चिल्लाते तो उस किसान को इसका तुरंत ज्ञान हो जाता। वर्तमान के अध्ययन इस तथ्य को उजागर करते हैं कि पौधे भी पीड़ा, दुख और सुख का अनुभव करते हैं और वे चिल्लाते भी हैं। 

10. दो इंद्रियों से वंचित प्राणी की हत्या कम अपराध नहीं एक बार एक शाकाहारी ने अपने पक्ष में तर्क दिया कि पौधों में दो अथवा तीन इंद्रियाँ होती हैं जबकि जानवरों में पांच होती हैं। अत: पौधों की हत्या जानवरों की हत्या के मुकाबले में छोटा अपराध है। कल्पना करें कि अगर किसी का भाई पैदाइशी गूंगा और बहरा है और
दूसरे मनुष्य के मुकाबले उसके दो इंद्रियाँ कम हैं। वह
जवान होता है और कोई उसकी हत्या कर देता है तो
क्या आप न्यायाधीश से कहेंगे कि वह दोषी को कम
दंड दे क्योंकि उसके भाई की दो इंद्रियाँ कम हैं।
वास्तव में उसको यह कहना चाहिए कि उस अपराधी
ने एक निर्दोष की हत्या की है और न्यायाधीश को
उसे कड़ी से कड़ी सज़ा देनी चाहिए। 

पवित्र कुरआन में कहा गया है- ''ऐ लोगो ! खाओ जो पृथ्वी पर है,परंतु पवित्र और जायज़।'' (कुरआन, 2:168)

काबा के मुताबिक चले दुनिया भर की घडियां

हैरत मत कीजिए,सच्चाई यही है कि दुनिया में
वक्त का निर्धारण काबा को केन्द्रित करके
किया जाना चाहिए क्योंकि काबा दुनिया
के बीचों बीच है। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर यह
साबित कर चुका है। सेन्टर का दावा है कि
ग्रीनविचमीन टाइम में खामियां हैं ।दुनिया में
वक्त का निर्धारण ग्रीनविच रेखा के बजाय काबा
को केन्दित रखकर किया जाना चाहिए क्योंकि
काबा शरीफ दुनिया के एकदम बीच में है। विभिन्न
शोध इस बात को साबित कर चुके हैं। वैज्ञानिक रूप
से यह साबित हो चुका है कि ग्रीनविच मीन टाइम
में खामी है जबकि काबा के मुताबिक वक्त का
निर्धारण एकदम सटीक बैठता है। ग्रीनवीच मानक
समय को लेकर दुनिया में एक नई बहस शुरू हो गई है और
और कोशिश की जा रही है कि ग्रीनविचमीन
टाइम पर फिर से विचार किया जाए।
ग्रीनविचमीन टाइम को चुनौति देकर काबा समय-
निर्धारण का सही केन्द्र होने का दावा किया है
इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर ने। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर
ने वैज्ञानिक तरीके से इसे सिध्द कर दिया है और यह
सच्चाई दुनिया के सामने लाने की मुहिम में जुटा है।
इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर के डॉ. अब्द अल बासेत सैयद
इस संबंध में कहते हैं कि जब अंग्रेजों के शासन में
सूर्यास्त नहीं हुआ करता था, तब ग्रीनविच टाइम
को मानक समय बनाकर पूरी दुनिया पर थोप दिया
गया। डॉ. अब्द अल बासेत सैयद के मुताबिक
ग्रीनविच टाइम में समस्या यह है कि ग्रीनविच रेखा
पर धरती की चुम्बकीय क्षमता ८.५डिग्री है जबकि
मक्का में चुम्बकी य
क्षमता शून्य है। डॉ.सैयद के अनुसार जीरो डिग्री
चुम्बकीय क्षमता वाले स्थान को आधार मानकर
टाइम का निर्धारण ही वैज्ञानिक रूप से सही है।
जीरो डिग्री चुम्बकीय क्षमता दोनों ध्रुवों के बीच
में यानी दुनिया के केन्द्र में होगी। अगर काबा में
कंपास रखा जाता है तो कंपास की सुई नहीं
हिलेगी क्योंकि वहां से उत्तरी और दक्षिणी
गोलाध्र्द बराबर दूरी पर है। डॉ.अब्द अल बासेत कहते
हैं कि चांद पर जाने वाले नील आर्मस्टांग भी मान
चुके हैं कि काबा दुनिया के बीचोंबीच है। जब
अंतरिक्ष से पथ्वी के फोटो लिए गए थे तो मालूम
हुआ कि काबा से खास किस्म की अनन्त किरणें
निकल रही हैं। डॉ. अब्द अलबासेत सैयद ने एक टीवी
चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में इन सब बातों का
खुलासा किया। उन्होने बताया कि ग्रीनविचमीन
टाइम के मुताबिक उत्तरी और दक्षिणी गोलाध्र्द के
बीच साढे आठ मिनट का फर्क पड जाता है,जो इस
टाइम-निर्धारण की खामी को उजागर करता है।
टाइम निर्धारण की इस गडबड से हवाई यातायात में
व्यवधान पैदा हो जाता है। यही वजह है कि हवाई
यातायात के दौरान इन साढे आठ मिनटों को
एडजेस्ट करके हवाई यातायात का संचालन किया
जाता है। अगर काबा को केन्द्रित रखकर समय तय
हो तो साढे आठ मिनट वाली यह परेशानी भी दूर
हो जाएगी। डॉ. सैयद के मुताबिक मक्का में प्रथ्वी
की चुम्बकीय क्षमता जीरो डिग्री होने से वहां
जाने वाले लोगों को सेहत के हिसाब से भी काफी
फायदा होता है क्योंकि उन्हें वहां एक खास तरह
की उर्जा हासिल होती है। जब कोई मक्का में
होता है तो उस व्यक्ति के रक्त की आक्सीजन ग्रहण
करने की क्षमता दुनिया के अन्य स्थानों से कहीं
अधिक होती है। मक्का में आपको अधिक मेहनत करने
की जरूरत नहीं पडती। यही वजह है कि अच्छी तरह
नहीं चल पाने वाला बुजुर्ग व्यक्ति भी हज के दौरान
जबर्दस्त भीड होने के बावजूद काबा का तवाफ
उत्साहित होकर कर लेता है। वहां लोग उर्जा से भरे
रहते हैं क्योंकि वे उस खास मुकाम पर होते हैं जहां
पथ्वी का चुम्बकीय बल जीरो है। वे आगे बताते हैं-
मानव सरंचना के बारे में इल्म रखने वाला व्यक्ति
जानता है कि शरीर के सभी प्रवाह दाईं ओर है। जब
कोई व्यक्ति काबा का तवाफ करता है,जो घडी
की विपरीत दिशा में यानी दायीं तरफ से बाईं
तरफ होता है, तो वह उर्जा से भरपूर हो जाता है।
तवाफ से शरीर के दाईं ओर के प्रवाह को अधिक गति
मिलती है और उर्जा हासिल होती है। इन सब बातों
से जाहिर होता है कि अल्लाह ने अपने घर को
कितना बुलंद मुकाम अता किया है।

m.youtube.com/watch?v=mPZw_IfLCks

क्यों हराम है सुअर का गोश्त..?


जानिए इस्लाम में इसका मांस खाना क्यों हराम है
और सुअर का मांस खाने से कितनी बीमारियां
होती हैं।
सूअर के मांस का कुरआन में निषेध कुरआन में कम से कम
चार जगहों पर सूअर के मांस के प्रयोग को हराम और
निषेध ठहराया गया है। देखें पवित्र कुरआन 2:173,
5:3, 6:145 और 16:115 पवित्र कुरआन की निम्र
आयत इस बात को स्पष्ट करने के लिए काफी है कि
सूअर का मांस क्यों हराम किया गया है: ''तुम्हारे
लिए (खाना) हराम (निषेध) किया गया मुर्दार,
खून, सूअर का मांस और वह जानवर जिस पर अल्लाह
के अलावा किसी और का नाम लिया गया हो।ÓÓ
(कुरआन, 5:3) 2. बाइबल में सूअर के मांस का निषेध
ईसाइयों को यह बात उनके धार्मिक ग्रंथ के हवाले से
समझाई जा सकती है कि सूअर का मांस हराम है।
बाइबल में सूअर के मांस के निषेध का उल्लेख लैव्य
व्यवस्था(Book of Leviticus) में हुआ है : ''सूअर जो
चिरे अर्थात फटे खुर का होता है, परन्तु पागुर नहीं
करता, इसलिए वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है।ÓÓ '' इनके
मांस में से कुछ न खाना और उनकी लोथ को छूना
भी नहीं, ये तुम्हारे लिए अशुद्ध हैं।ÓÓ (लैव्य व्यवस्था,
11/7-8) इसी प्रकार बाइबल के व्यवस्था विवरण
(Book of Deuteronomy) में भी सूअर के मांस के
निषेध का उल्लेख है : ''फिर सूअर जो चिरे खुर का
होता है, परंतु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे
लिए अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खाना और न
इनकी लोथ छूना।ÓÓ (व्यवस्था विवरण, 14/8) 3।
सूअर का मांस बहुत से रोगों का कारण है ईसाइयों के
अलावा जो अन्य गैर-मुस्लिम या नास्तिक लोग हैं
वे सूअर के मांस के हराम होने के संबंध में बुद्धि, तर्क
और विज्ञान के हवालों ही से संतुष्ट हो सकते हैं।
सूअर के मंास से कम से कम सत्तर विभिन्न रोग जन्म
लेते हैं। किसी व्यक्ति के शरीर में विभिन्न प्रकार के
कीड़े (Helminthes) हो सकते हैं, जैसे गोलाकार कीड़े,
नुकीले कीड़े, फीता कृमि आदि। सबसे ज्य़ादा
घातक कीड़ा Taenia Solium है जिसे आम लोग
Tapworm (फीताकार कीड़े) कहते हैं। यह कीड़ा बहुत
लंबा होता है और आँतों में रहता है। इसके अंडे खून
में जाकर शरीर के लगभग सभी अंगों में पहँुच जाते हैं।
अगर यह कीड़ा दिमाग में चला जाता है तो इंसान
की स्मरणशक्ति समाप्त हो जाती है। अगर वह दिल
में चला जाता है तो हृदय गति रुक जाने का कारण
बनता है। अगर यह कीड़ा आँखों में पहँुच जाता है तो
इंसान की देखने की क्षमता समाप्त कर देता है।
अगर वह जिगर में चला जाता है तो उसे भारी क्षति
पहँुचाता है। इस प्रकार यह कीड़ा शरीर के अंगों को
क्षति पहुँचाने की क्षमता रखता है। एक दूसरा घातक
कीड़ा Trichura Tichurasis है। सूअर के मांस के बारे
में एक भ्रम यह है कि अगर उसे अच्छी तरह पका लिया
जाए तो उसके भीतर पनप रहे उपरोक्त कीड़ों के अंडे
नष्ट हो जाते हैंं। अमेरिका में किए गए एक
चिकित्सीय शोध में यह बात सामने आई है कि
चौबीस व्यक्तियों में से जो लोग Trichura
Tichurasis के शिकार थे, उनमें से बाइस लोगों ने सूअर
के मांस को अच्छी तरह पकाया था। इससे मालूम हुआ
कि सामान्य तापमान में सूअर का मांस पकाने से ये
घातक अंडे नष्ट नहीं हो पाते। 4। सूअर के मांस में
मोटापा पैदा करने वाले तत्व पाए जाते हैं सूअर के
मांस में पुट्ठों को मज़बूत करने वाले तत्व बहुत कम पाए
जाते हैं, इसके विपरीत उसमें मोटापा पैदा करने वाले
तत्व अधिक मौजूद होते हैं। मोटापा पैदा करने वाले
ये तत्व $खून की नाडिय़ों में दािखल हो जाते हैं और
हाई ब्लड् प्रेशर (उच्च रक्तचाप) और हार्ट अटैक (दिल
के दौरे) का कारण बनते हैं। इसमें कोई आश्चर्य की
बात नहीं है कि पचास प्रतिशत से अधिक अमेरिकी
लोग हाइपरटेंशन (अत्यन्त मानसिक तनाव) के
शिकार हैं। इसका कारण यह है कि ये लोग सूअर का
मांस प्रयोग करते हैं। 5. सूअर दुनिया का सबसे गंदा
और घिनौना जानवर है सूअर ज़मीन पर पाया जाने
वाला सबसे गंदा और घिनौना जानवर है। वह इंसान
और जानवरों के बदन से निकलने वाली गंदगी को
सेवन करके जीता और पलता-बढ़ता है। इस जानवर को
खुदा ने धरती पर गंदगियों को साफ करने के उद्देश्य से
पैदा किया है। गाँव और देहातों में जहाँ लोगोंं के
लिए आधुनिक शौचालय नहीं हैं और लोग इस
कारणवश खुले वातावरण (खेत, जंगल आदि) में शौच
आदि करते हैं, अधिकतर यह जानवर सूअर ही इन
गंदगियों को सा$फ करता है। कुछ लोग यह तर्क
प्रस्तुत करते हैं कि कुछ देशों जैसे आस्ट्रेलिया में सूअर
का पालन-पोषण अत्यंत सा$फ-सुथरे ढ़ंग से और
स्वास्थ्य सुरक्षा का ध्यान रखते हुए अनुकूल माहौल
में किया जाता है। यह बात ठीक है कि स्वास्थ्य
सुरक्षा को दृष्टि में रखते हुए अनुकूल और स्वच्छ
वातावरण में सूअरों को एक साथ उनके बाड़े में रखा
जाता है। आप चाहे उन्हें स्वच्छ रखने की कितनी भी
कोशिश करें लेकिन वास्तविकता यह है कि
प्राकृतिक रूप से उनके अंदर गंदगी पसंदी मौजूद रहती
है। इसीलिए वे अपने शरीर और अन्य सूअरों के शरीर से
निकली गंदगी का सेवन करने से नहीं चुकते। 6. सूअर
सबसे बेशर्म (निर्लज्ज) जानवर है इस धरती पर सूअर
सबसे बेशर्म जानवर है। केवल यही एक ऐसा जानवर है
जो अपने साथियों को बुलाता है कि वे आएँ और
उसकी मादा के साथ यौन इच्छा पूरी करें। अमेरिका
में प्राय: लोग सूअर का मांस खाते हैं परिणामस्वरूप
कई बार ऐसा होता है कि ये लोग डांस पार्टी के
बाद आपस में अपनी बीवियों की अदला-बदली करते
हैं अर्थात् एक व्यक्ति दूसरे से कहता है कि मेरी पत्नी
के साथ तुम रात गुज़ारो और तुम्हारी पत्नी के साथ
में रात गुज़ारूँगा (और फिर वे व्यावहारिक रूप से ऐसा
करते हैं) अगर आप सूअर का मांस खाएँगे तो सूअर की-
सी आदतें आपके अंदर पैदा होंगी। हम भारतवासी
अमेरिकियों को बहुत विकसित और साफ-सुथरा
समझते हैं। वे जो कुछ करते हैं हम भारतवासी भी कुछ
वर्षों के बाद उसे करने लगते हैं। Island पत्रिका में
प्रकाशित एक लेख के अनुसार पत्नियों की अदला-
बदली की यह प्रथा मुम्बई के उच्च और सम्पन्न वर्गों
के लोगों में आम हो चुकी है।