इसलिए ये बातें इस्लाम का अपमान करने के तौर
पर मुस्लिमों के सामने लाते हैं ....!
अस्ल मे अम्मा आइशा रज़ि. तमाम मुस्लिम
स्त्रियों की गुरु थीं और जीवन के सभी पहलुओं
पर स्त्रियों को शिक्षा देने के साथ ही साथ
उन्हे सेक्सुअल हेल्थ और पर्सनल हाइजीन की
शिक्षा भी मां आइशा ने दी है, जैसे हर मां यथा
सम्भव अपनी बेटी को देती है जितना कि थोड़ा
बहुत वो मां खुद जानती है ...
जो लोग इस विषय
पर इस्लाम का मजाक उड़ाते हैं स्वयं उनकी मां
भी अपने बच्चों को इसी प्रकार की शिक्षा देती
है ।
अब क्योंकि मां आइशा रज़ि. को नबी सल्ल. के
जरिए हर क्षेत्र मे शुद्ध ईश्वरीय ज्ञान मिला
था इसलिए वो दुनिया की किसी भी मां से
ज्यादा गुन की एकदम ठीक व लाभदायक बातें
अपने बच्चों को सिखा सकती थीं, जो उन्होंने
सिखाई हैं ....
मां आइशा रज़ि. ने बताया कि यदि किसी गरीब
स्त्री के पास एक ही अंतर्वस्त्र हो, तो हर
बार मासिक धर्म के बाद वह उसे भली प्रकार
धोकर साफ कर लिया करे और गन्दा कपड़ा ही
न पहने रहा करे, क्योंकि ऐसे गन्दे कपड़े से उसे
संक्रमण होने का डर है ... इस रिवायत मे खून
के धब्बों को थूक से साफ करने की शिक्षा दी
गई है , जो कि खून का जिद्दी धब्बा हटाने का
बेस्ट आइडिया है ...
थूक के एंजाइम खून के
धब्बे के प्रोटीन को तोड़ देते हैं, जिससे धब्बा
आराम से छूट जाता है , फिर कपड़ा धोने के बाद
दाग का नामोनिशान भी नही दिखता....
अब बताईए भला, कोई इस्लाम की सफाई
सुथराई की शिक्षा का भी मजाक उड़ाए तो हम
उसे क्या समझें ??
और जैसा कि कुरान 2:222 मे है कि मासिक
धर्म के समय स्त्री के निकट न जाओ, इसका
अर्थ है कि उनसे शारीरिक संसर्ग न करो....
हिन्दू समेत अनेक समुदायों मे मासिक धर्म के
समय स्त्री को एकदम अछूत बना दिया जाता
है, लेकिन इस्लाम केवल हाइजीन के कारण से
इस समय सम्भोग की मनाही करता है इसके
अतिरिक्त मासिक धर्म के समय भी स्त्री को
पूरे प्रेम, सम्मान और अधिकारों की अधिकारी
ठहराता है
ऊपर बताई हुई दूसरी रिवायत से मिलती जुलती
अन्य कई हदीस भी हैं कि मां आइशा जब मासिक
धर्म मे होती थीं तो भी जिस टब से पानी
निकाल कर मां आइशा नहाती थीं, उसी टब से
पानी निकाल कर नबी सल्ल. भी नहाते, मां
आइशा नबी सल्ल. के सर की मालिश करती थीं,
और प्यारे नबी सल्ल. मां आइशा रज़ि. से प्रेम
प्रदर्शन भी करते उन्हें छूते भी, बस केवल
मासिक धर्म के समय शारीरिक सम्बन्ध न
बनाते .... कहना न होगा कि
अज्ञानी लोग इन
रिवायतों को भी इस्लाम का अपमान करने के
लिए प्रस्तुत किया करते हैं
लेकिन वास्तव मे ये रिवायतें इस्लाम के अपमान
की नहीं बल्कि इस्लाम द्वारा स्त्रियों को दिए
सम्मान की हैं, कि इस्लाम के अनुसार मासिक
धर्म के समय भी स्त्री घर के किसी हिस्से या
किसी सदस्य के लिए अछूत नहीं हो जाती
और इस रिवायत कि मां आइशा जिस समय
मासिक धर्म मे होती थीं, और प्यारे नबी सल्ल.
उनकी गोद मे सर रखे रखे कुरान का पाठ करते
थे ( यानि कुछ आयतें मुंह जुबानी पढ़ लेते थे , न
कि किताब हाथ मे लेते थे....
और कुरान का पाठ
करने वाले प्यारे नबी सल्ल. पवित्रता की ही
हालत मे होते थे क्योंकि किसी का शरीर छू लेने
से अपवित्र हो जाने का अमानवीय नियम
इस्लाम मे नहीं है ..) से ये भी सिद्ध कर दिया
गया कि मासिक धर्म की स्थिति मे भी स्त्री
पवित्र कुरान का पाठ सुन सकती है ॥
देखिए इस्लाम का कानून जो हाईज़ा(period) स्त्री को
भी पवित्र कुरान सुनने से नही रोकता और
स्त्री को पूरा सम्मान देता है, वहीं दूसरी ओर
ऐसे भी धर्म सूत्र रहे हैं जो अच्छी भली साफ
सुथरी स्त्री और शूद्र पुरुष के कान मे वेद का
एक भी मन्त्र पड़ जाने पर उन स्त्री पुरूष को
नरकगामी ठहरा देते और उनके कानों मे पिघलता
सीसा डाल देने का आदेश देते थे
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