Saturday, 1 August 2015
इस्लाम भ्रूण हत्या करने की इजाजत नही देता ..@
बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि एक नए
अनुसंधान के मुताबिक भारत में पिछले 30 सालों
में कम से कम 40 लाख बच्चियों की भ्रूण हत्या
की गई है.
अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका 'द लैन्सेट' में छपे इस
शोध में दावा किया गया है कि ये अनुमान
ज़्यादा से ज़्यादा 1 करोड़ 20 लाख भी हो
सकता है.
सेंटर फॉर ग्लोबल हेल्थ रिसर्च के साथ किए
गए इस शोध में वर्ष 1991 से 2011 तक के
जनगणना आंकड़ों को नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे
के आंकड़ों के साथ जोड़कर ये निष्कर्ष निकाले
गए हैं.
शोध में ये पाया गया है कि जिन परिवारों में
पहली सन्तान लड़की होती है उनमें से ज़्यादातर
परिवार पैदा होने से पहले दूसरे बच्चे की लिंग
जांच करवा लेते हैं और लड़की होने पर उसे मरवा
देते हैं. लेकिन अगर पहली सन्तान बेटा है तो
दूसरी सन्तान के लिंग अनुपात में गिरावट नहीं
देखी गई.शिक्षित और समृद्ध परिवारों में
कन्या भ्रूण हत्या की दर निर्धन और
अशिक्षित परिवारों से कहीं ज्यादा पाई गई ।
कन्या शिशु हत्या के इतिहास की ओर हम ध्यान
करें तो पाते हैं कि पहले तो समाज ने स्त्री को
हवस पूर्ति का सुलभ साधन बनाया, दहेज लेकर
स्त्री और उसके अभिभावकों का आर्थिक
शोषण किया और मां-बाप के लिए बेटी के
ससुराल का पानी तक पीना पाप बनाकर लड़की
को उसके माता पिता के सानिध्य के सुख से भी
वंचित कर दिया ताकि ससुराल मे लड़की से
मनचाहा फायदा उठाया जाए और लड़की का
पक्ष लेने वाला और उसे अन्याय से बचाने वाला
कोई न हो ....
इस तरह स्वार्थी समाज ने दूसरों की बेटियों से
तो खूब आनंद उठाया, पर जब उन्होंने अपनी
बेटियों के साथ यही सब अन्याय होता देखा तो
उनकी झूठी शान को बहुत ठेस पहुंची.... और
अपनी तथाकथित शान और सम्मान बचाने के
लिए उन दुष्ट लोगों ने अपनी नवजात बेटियों की
हत्या करने का रास्ता निकाला बजाय इसके कि
नग्नता, दहेज और विवाह से जुड़े गलत रिवाज़ो
को खत्म करते ।
ये रिवाज़ वो लोग इसलिए मिटाना नहीं चाहते थे
क्योंकि दूसरों की बेटियों के शरीर और सम्पत्ति
से खेलने का लोभ तो वो संवरण कर ही नहीं
सकते थे ॥
इस तरह भारत से लेकर प्राचीन अरब तक हर
जगह अबोध, निर्दोष और निरीह कन्याओं को
जन्म लेने ही मार डालने का दुर्दान्त खूनी
रिवाज सदियों तक चलता रहा ...
अब से 1400 वर्ष पूर्व अरब मे तो इस्लाम
आया, और नबी स. ने निर्दोष बेटियों की हत्या
की कड़ी भर्त्सना की और आप स. ने बेटी को
जीवित रखने और उसका अच्छा पालन पोषण
करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हुए
अनेक भली भली शिक्षाएं दीं .... आपने
फरमाया-
"बेटी होने पर जो कोई उसे जिंदा नहीं दफनाएगा
और उसे अपमानित नहीं करेगा और अपने बेटे को
बेटी पर तरजीह नहीं देगा तो अल्लाह ऐसे शख्स
को जन्नत में जगह देगा।"
(इब्ने हंबल)
इसी तरह हजऱत मुहम्मद सल्ल. ने ये भी
फरमाया -
"जो कोई दो बेटियों को मोहब्बत और इनसाफ
के सुलूक के साथ पाले, यहां तक कि वे बेटियां
बालिग हो जाएं और उस शख्स की मोहताज न
रहें ( यानि आत्म निर्भर हो जाएं ) तो वह
व्यक्ति मेरे साथ स्वर्ग में इस प्रकार रहेगा
(आप सल्ल. ने अपनी दो अंगुलियों को एक साथ
मिलाकर बताया कि ऐसे )।"
और नबी करीम मुहम्मद सल्ल. ने फरमाया-
"जिस शख्स के तीन बेटियां या तीन बहनें हों या
दो बेटियां या दो बहनें हों (यानी जितनी भी
लड़कियों के पालन पोषण का जिम्मा उस पर
हो) और वह उन सबकी अच्छी परवरिश और
देखभाल करे और उनके मामले में (अन्याय करने
से) अल्लाह से डरे तो उस शख्स के लिए जन्नत
है !"
(तिरमिजी)
इस्लाम ने बेटी के लिए ऐसे नियम बनाए जिनसे
बेटी का जीवित रहना, इज्जत और सुख से
जीवन जीना सम्भव हो सका.... पर बड़े दुख की
बात है कि भारत मे आज तक बेटी की हत्या
जारी है....
मासूम बच्चियों की हत्या करने वाले ऐसे लोगों
से मेरी इतनी ही गुज़ारिश है , कि जीवन बड़ा
अनमोल उपहार है ईश्वर का....
अपनी औलाद से जीवन का वरदान छीनने की
बजाय अगर आप समाज मे व्याप्त कुरीतियों को
मिटाने का प्रयास करें तो आपके साथ साथ
समाज का भी बडा उपकार हो सकेगा
.... इस्लाम ने बेटी के जीने के लिए जो उपाय
दिए, वो मैं बता देता हूँ, हो सके तो इन उपायों
को अपनाने का प्रयास कीजिएगा
1- इज्जत के डर से लोग अपनी बच्चियों की
जान सबसे ज्यादा लेते हैं लेकिन अगर वो अपनी
बेटी को शालीन कपड़े पहनाएं , बेटियों को
मजबूत चरित्र वाली बनाएं तो बेटियों का शील
भंग होने का कोई भय नहीं रह जाएगा
2- इस्लाम मे दहेज प्रथा नही है, अन्य समाजो
की देखादेखी आज भले ही भारत और आस
पड़ोस के कुछ अशिक्षित मुस्लिम दहेज का
लेनदेन करने लगें हों, पर गैरमुस्लिमों की तरह
दहेज की मांग मुस्लिम समाज मे अब भी नहीं है
... इस्लाम के अनुसार वधू पक्ष का वर को दहेज
देना आवश्यक नही, पर वर का वधू को दहेज
(मेहर) देना नितान्त आवश्यक है, मेहर से बेटी
का भविष्य सुरक्षित होता है, और दहेज की
अनिवार्यता न होने से वर पक्ष वाले वधू का
आर्थिक शोषण करने की बात भी नहीं सोच
सकते ।
3- सम्भवत: इस्लाम ही एकमात्र ऐसा धर्म है
जिसने पिता की सम्पत्ति मे बेटी को भी
हिस्सेदार बनाया है .. क्योंकि ये सम्पत्ति दहेज
की तरह हस्तांतरणीय नहीं होती जिसे हड़प के
बहू को जला दिया जा सके बल्कि ये जायदाद
जीवन भर लड़की का आर्थिक सम्बल बनी रहेगी
और उसकी इच्छा के विरुद्ध इसका उपयोग
कोई और न कर सकेगा... !!!
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