यही अल्लाह (जिसके यह
काम हैं ) तुम्हारा रब है। बादशाही उसी की है
कोई मांबूद (पूजनीय) उसके अतिरिक्त नहीं है‘‘।
(अल-क़ुरआन सूर 39 आयत 6)
प्रोफ़ेसर डॉ. कैथमूर के अनुसार पवित्र क़ुरआन
में अंधेरे के जिन तीन परदों की चर्चा की गई है
वह
निम्नलिखित हैं :
1- मां के गर्भाशय की अगली दीवार
2- गर्भाशय की मूल दीवार
3- भ्रूण का खोल या उसके
ऊपर लिपटी झिल्ली भ्रूणीय अवस्थाएं
‘‘हम ने मानव को मिट्टी के, रस: ‘सत से
बनाया फिर उसे एक सुरक्षित स्थल पर टपकी
हुई बूंद में परिवर्तित किया, फिर उस बूंद
को लोथडे का स्वरूप दिया, तत्पश्चात लोथड़े
को बोटी बना दिया फिर
बोटी की हडिडयां बनाई, फिर हड्ऱड़यों पर
मांस चढ़ाया फिर उसे एक
दूसरा ही रचना बना कर खडा किया बस बड़ा
ही बरकत वाला है अल्लाह: सब कारीगरों से
अच्छा कारीगर‘‘ ।(अल-क़ुरआन:
सूर:23 आयात .12 से 14 )
इन पवित्र आयतों में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं
कि मानव को द्रव की बहुत ही सूक्ष्म मात्रा
से बनाया गया अथवा सृजित किया गया है,
जिसे विश्राम:Rest स्थल में रख दिया जाता है
यह द्रव उस स्थल पर मज़बूती से
चिपटा रहता है। यानि स्थापित अवस्था में,
और इसी अवस्था के लिये पवित्र क़ुरआन में
‘क़रार ए मकीन‘ का गद्यांश अवतरित हुआ है।
माता के गर्भाशय के पिछले हिस्से को रीढ की
हडड़ी और कमर के पटठों की बदौलत काफ़ी
सुरक्षा प्राप्त होती हैं उस भ्रूण
को अनन्य सुरक्षा‘‘ प्रजनन थैली:
से प्राप्त होती है जिसमें प्रजनन
द्रवः Amnioic Fluid भरा होता है
अत: सिद्ध हुआ कि माता के गर्भ में एक ऐसा
स्थल है
जिसे सम्पूर्ण सुरक्षा दी गई है। द्रव की
चर्चित न्यूनतम मात्रा ‘अलक़ह‘ के रूप में होती
है यानि एक ऐसी वस्तु के स्वरूप में जो ‘‘चिमट
जाने‘‘ में सक्षम है।
इसका तात्पर्य
जोंक जैसी कोई वस्तु भी है।
यह दोनों
व्याख्याएं
विज्ञान के आधार पर
स्वीकृति के योग्य हैं क्योंकि बिल्कुल
प्रारम्भिक अवस्था में भ्रूण वास्तव में माता के
गर्भाशय की भीतरी दीवार से चिमट जाता है
जब कि उसका बाहरी स्वरूप भी किसी जोंक के
समान होता है।
इसकी कार्यप्रणाली जोंक की तरह ही होती
है
क्योंकि, यह ‘आवल नाल‘‘ के मार्ग से अपनी
मां के शरीर से रक्त प्राप्त करता और उससे
अपना आहार लेता है।
‘अलक़ह‘ का तीसरा अर्थ रक्त का थक्का है।
इस अलक़ह
वाले अवस्था से जो गर्भ ठहरने के तीसरे और
चौथे सप्ताह पर आधारित होता है बंद
धमनियों में रक्त जमने लगता है।
अतः भ्रूण का स्वरूप केवल जोंक जैसा ही नहीं
रहता बल्कि वह रक्त के थक्के
जैसा भी दिखाई देने लगता है।
अब हम पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रदत्त ज्ञान
और सदियों के
संधंर्ष के बाद विज्ञान द्वारा प्राप्त आधुनिक
जानकारियों की तुलना करेंगे।
1677 ई0 हेम और ल्यूनहॉक ऐसे दो प्रथम
वैज्ञानिक थे
जिन्होंने खुर्दबीन: Microscope से वीर्य
शुक्राणुओं का अध्ययन किया था।
उनका
विचार था कि शुक्राणुओं की प्रत्येक कोशिका
में एक
छोटा सा मानव मौजूद होता है जो गर्भाशय में
विकसित होता है और एक नवजात शिशु के रूप
में
पैदा होता है। इस दृष्टिकोण को ,छिद्रण
सिद्धान्त:Perfo ration Theory भी कहा
जाता है।
कुछ दिनों के बाद जब
वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला कि महिलाओं
के अण्डाणु, शुक्राणु कोशिकाओं से कहीं अधिक
बडे
होते हैं तो प्रसिद्ध विशेषज्ञ डी ग्राफ़ सहित
कई वैज्ञानिकों ने यह समझना शुरू कर दिया कि
अण्डे के अंदर ही मानवीय अस्तित्व सूक्ष्म
अवस्था में पाया जाता है।
इसके कुछ और
बाद, 18 वीं सदी ईसवी में
मोपेशस:उंनचमपजप नेण् नामक वैज्ञानिक ने
उपरोक्त दोनों विचारों के प्रतिकूल इस
दृष्टिकोण का प्रचार शुरू किया कि, कोई बच्चा
अपनी माता और पिता दोनों की ‘संयुक्त
विरासत:Joint inheritance
का प्रतिनिधि होता है ।
अलक़ह परिवर्तित
होता है और ‘‘मज़ग़ता‘‘ के स्वरूप में आता है,
जिसका अर्थ है कोई वस्तु जिसे चबाया गया हो
यानि जिस पर दांतों के
निशान हों और कोई ऐसी वस्तु हो जो
चिपचिपी (लसदार) और सूक्ष्म हों, जैसे
च्युंगम की तरह मुंह में रखा जा सकता हो।
वैज्ञानिक आधार पर यह दोनों व्याख्याएं
सटीक हैं।
प्रोफ़ेसर कैथमूर ने प्लास्टो सेन: रबर
और च्युंगम जैसे द्रव ,का एक टुकड़ा लेकर उसे
प्रारम्भिक अवधि वाले भ्रूण का स्वरूप दिया
और दांतों से चबाकर ‘मज़गा‘ में
परिवर्तित कर दिया। फिर उन्होंने इस
प्रायोगिक ‘मज़ग़ा‘
की संरचना की तुलना प्रारम्भिक
भू्रण:Foetus के चित्रों से की इस पर मौजूद
दांतों के निशान मानवीय ‘मज़ग़ा पर पड़े
कायखण्ड: Somites के समान थे जो गर्भ में
‘मेरूदण्ड:Spina l Cord के प्रारिम्भक स्वरूप
को दर्शाते हैं।
अगले चरण में यह मज़ग़ा परिवर्तित होकर
हड़डियों का रूप धारण कर लेता है।
उन हड्डियों के गिर्द नरम और बारीक मांस या
पटठों का ग़िलाफ़ (खोल) होता है फ़िर अल्लाह
तआला उसे एक बिल्कुल ही अलग जीव
का रूप दे देता है।
' ये जानकारी ना योग और ना वैदिक
वैज्ञानिक किताबो मे ना युनानी वैज्ञानिक
किताबो मे है । '
आधुनिक विज्ञान को भी इस जानकारी का
इल्म पवित्र कुरआन कि आयतो से
पहले नहीँ था ।
एक बार फिर साबित
हो गया आधुनिक विज्ञान इस्लाम से बहुत पिछे
है !
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