Friday, 20 November 2015

कुरान में बिस्मिल्लाह पर आपत्ति का जवाब ..@

एक बडी ही अजीब बात है! कि पंडित कहलाने वाले आर्य समाज के आलीम हजरात अपने वेदों को पढ़ते नही पर दुसरों पर इल्जाम लगाने की बडी जल्दी मचाते है….. े 
पंडित चमूपति की किताब “चौदहवीं का चाँद ” का बडा प्रचार किया मे उन लोगो को और भी बेवकुफ मानता हुँ !जो महज ऐसी बिना तहकीक के लिखी किताबों पर फैसला ले कर आर्य समाजी बन जाते हे , गौर से वेद पढ़े तो नजरा ये सामने था..चमूपति जी दयानंनद सरस्वती की वकालत करते हुए लिखते है!बिस्मिल्लाह से दयानंनद को २आपत्ति है!

(१)बिस्मिल्लाह यह कि अल्लाह किस अल्लाह के नाम से शुरु करेगा….? बहरहाल इसका जवाब मौलाना सनाउल्लाह ने हक प्रकाश मे दे दिया..
(२)यह कि जब पहली आयात कुरान की सुरह अलक की है तो वर्तमान कुरान मे शुरु मे बिस्मिल्लाह किसने लगाई इससे कुरान की हिफाजत मे शक होगा… 

जवाब:-सबसे पहली आयते नुजूल सुरह इकरह की शुरु की पाँच आयात है! जबकी कुरआन के माने करा या करिहा से लिया है..यानी जहां लोग जमा हो कर रहे..इस तरह अल्लाह कि आयते जिसमे जमा किया जाना है यानी हिकमती तरतीब है! जिसे कुरान कहा है..बिस्मिल्लाह तो क्या कोई आयत जब तक आयाते कुरान मे गिनी न जाये..
वह कुरान नही फिर कुरान के साथ एक करोड़ बार पढी जाये…..अब…जिस तरह से रिग वेद के पहले ही मंत्र में अग्नि की तारीफ है…उसी तरह से अरेबी तहजीब मे तारीफ शक्र से भी होती है!

वही हम्द से भी वही..बिस्मिल्लाह अपने आप मे खुदा की तारीफ है…क्योकि जिसने कुरान नाजिल किया वह हस्ती इस काबिल है कि कुरान की तिलावत उसी के नाम से शुरु हो..इस कारण हर सुरह से पहले पढी़ जाती है पर गिनी नही जाती..सिवा एक बार के..वही चुँकि अजाब इनसान की गलत हरकात का नतीजा है…

जैसे पहले मक्का के मुश्रीको ने समझौता किया फिर खुद ही उसे तोड दिया…तो समझौते के कानुन के तहत उनको सुधरने के लिये चार माह की मोहलत दी! जब वे न सुधरे तब सुरह तौबा की तारीखी आयात नाजिल हुई ! जो युद्ध नही चाहते थे उनको अबु सुफीयान के घर जाने को कहा ताकी जब मक्का पर मुसलीम मैदान मे आये तो जो अबु सुफीयान के घर जाने वालों से न लडे़! तो इस सुरह के पहले बिस्मिल्लाह न पढी़ ताकी जान लिया जाये की बिस्मिल्लाह केवल नेक काम की शुरुआत पर है!…

इससे यह भी संकेत है..इसलाम मे हुकुमत हासिल करने को लडाई मना है…बल्की जुल्म के खिलाफ या अपनी हीफाजत मे लडे…

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